गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Thursday, March 28, 2013

बुंदेलखंड में तैयार होते हैं गुलाबी शहर के घरानेदार कलाकार

संदीप रिछारिया,महोबा

अकल्पनीय है पर बिलकुल सत्य. बुंदेलखंड की इस वीर भूमि अब तलवारों की जगह घुंघरुओं की झनकार और अलापों के स्वर शांति और सद्भाव का संदेश देते हैं। चक्करदार परनों और आरोह अवरोध के बीच यहां पर देश भर से आने वाली प्रतिभाओं को विश्व आकाश रूपी रंगमंच पर उड़ने को तैयार किया जा रहा है। यह काम पिछले तीस सालों से अनवरत जारी है शहर के किशोर कला मंच में। देश के विभिन्न भागों से आकर बेटियां इस गुरुकुल पर शास्त्रीय संगीत के साथ ही लोक संगीत की शिक्षा लेकर विश्व भर में अपनी खुशबू फैलाने का काम कर रही हैं।

छतरपुर की रिंकी चौरसिया, गुजरात के सूरत शहर की कृष्णा राजपूत, मध्य प्रदेश के शिवपुरी की सोनम कुलश्रेष्ठ, पनवाड़ी की चंचल राजपूत महोबा की राम जानकी व अभिलाषा सिंह कहती हैं कि शिक्षा के साथ संस्कार और संगीत की यह शिक्षा उन्हें मामूली से विशेष बनाने का काम कर रही है।

जयपुर घराने से एमम्यूज नवल महाराज कहते हैं बालिकाओं को यहां पर नि:शुल्क आश्रम पद्धति से संगीत का शिक्षण दिया जाता है। अभी तक 8 बैच यहां से शिक्षण पूरा कर जा चुके हैं। यहा से निकले छात्र कनाड़ा के साथ ही देश के तमाम हिस्सों में जाकर कला के जरिए नाम कमा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि छात्राएं उनके पास देश भर से आती हैं। वह यहां पर रहकर संगीत भूषण, विशारद, भास्कर व एम म्यूज की शिक्षा ग्रहण करती हैं। तमाम बेटियां जवाहर नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, संगीत विद्यालय, महाविद्यालयों में संगीत की शिक्षा प्रदान कर रही हैं।

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