गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Wednesday, August 12, 2009

हिंदू और मुसलमान मिलकर ही जलाये राष्ट्र ज्योति

Aug 11, 10:17 pm
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चित्रकूट। 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुबे कातिल में हैं' से होते हुये भले ही उनके विचार 'भज मन राम चरन सुखदायी' तक आ चुके हों पर आज भी सतहत्तर वर्ष के हो चुके गोपाल कृष्ण करवरिया के दिल में वही प्रेम का जज्बा मौजूद है जिसकी बदौलत उन्होंने चालीस सालों तक नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। देश की आजादी की लड़ाई में अगुवा रहे तरौंहा के करवरिया परिवार का यह वारिस आज देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फैलाई जा रही वैमस्यता से खासे व्यथित होकर एक खून और एक तासीर की बात ही नही करते बल्कि खुद ही कई मुसलमानों को श्री रामलीला, गंगा आरती व देश विदेश में चित्रकूट की विशेष पहचान बन चुके 36 सालों से लगातार आयोजित होने वाले राष्ट्रीय रामायण मेला से बड़ी ही शिद्दत से जोड़े हुये हैं। भले ही उनका साथ शुरुआती दौर के साथी मो. दद्दा छोड़ चुके हो पर मुहम्मद सिद्धीकी के साथ उनकी दोस्ती की मिसालें देते हजारों लोग इस शहर में घूम रहे हैं।
पिछले पचास सालों से मुहर्रम कमेटी की अध्यक्षता व श्री राम लीला व रामायण मेला में मुस्लिम बिरादरी की सहभागिता इस बात का खुला सबूत है।
उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंच चुके श्री करवरिया कहते हैं कि सन् 1955 में जब पहली बार कर्वी में नगर पालिका की स्थापना हुई तो वे अपने वार्ड से सभासद बन कर आये थे और तक से लगातार पिछले सत्र तक नगर पालिका परिषद का हिस्सा रहे। चार बार अध्यक्ष रहने के साथ ही दो बार सभासद रहे। शहर में जितने भी विकास के काम हुये वे सब उन्होंने शासन और प्रशासन के बीच सेतु बनकर करवाये। राष्ट्रीय रामायण मेले की परिकल्पना तो डा. लोहिया ने सन् 1966 में की थी पर इसकी शुरुआत स्थानीय लोगों के सहयोग से सन् 1974 में हुई और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में इसमें सक्रिय योगदान दे रहे हैं। वहीं तरौंहा में रामलीला की शुरुआत लगभग पचास साल पहले हुई। जो ददरी अखाड़े में बंद हो जाने के शुरु की गई।
उन्होंने कहा कि रामलीला को आयोजित करने के लिये किसी से चंदा नही लिया जाता लेते हैं और ना ही कोई कमेटी आज तक बनी है। यहां पर सब का काम बंटा हुआ है और हिंदू और मुसलमान सभी मिल कर हर साल इसे आयोजित करते हैं।
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुये बताते हैं कि आजादी के गीतों को सुनकर वे बड़े हुये। पिता राम बहोरी करवरिया व बड़े भाई जगदीश प्रसाद करवरिया के साथ ही चाचा मुरलीधर करवरिया, दीन दयाल करवरिया, जगन्नाथ करवरिया, जुगुल किशोर करवरिया व स्वामी महादेव के क्रांतिकारी होने के कारण देश भर के आजादी के दीवानों का उनके घर में मेला लगा रहता था। अंग्रेजों द्वारा उत्पीड़न झेला और यातनायें सहीं और धरना प्रदर्शन अनशन सब कुछ उन्होंने किया पर कभी किसी ईनाम या पुरस्कार का लालच नही किया। बताया कि मो. दद्दा का रामलीला व रामायण मेला में योगदान मे वे भुला नही सकते। खालिस हिंदू भी यहां उनके हाथों से ही रोटी खाया करते थे। आज यही काम यूसुफ मोहम्मद और मिर्जा कलीमुद्ीन बेग कर रहे हैं।
वैसे विधान सभा का चुनाव दो बार लड़ने वाले श्री करवरिया 22 वर्ष तक जिला सहकारी समिति के अध्यक्ष रहने के साथ ही क्रय विक्रय समिति व क्षेत्रीय सहकारी समिति से भी जुड़े रहे। तत्कालीन जिला बांदा में आईटीआई कालेज खुलने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास ने उन्हें पहला अध्यक्ष बनाया था। हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष के साथ ही नगर की गौरवशाली संस्था चित्रकूट इंटर कालेज की प्रबंध समिति के भी सदस्य रहे।
उन्होंने कहा कि अब उनका चौथापन है और वे चाहते हैं कि किसी प्रकार से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्यता समाप्त हो जाये और फिर से सब अपने पुराने दिनों की तरह देश के निर्माण में सक्रिय भागीदारी करें।

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