गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Monday, September 14, 2009

मुस्लिम लगाते परिक्रमा तो हिंदू पढ़ते नमाज

Sep 12, 11:14 pm
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चित्रकूट। ऐसा पौराणिक तीर्थ स्थल जहां पर कभी संत तुलसी के साथ ही अब्दुल रहीम खान खाना ने अपनी रचनाओं को जन्म दिया और भगवान की भक्ति की। यहां पर ऐसे इंसान आज भी रहते हैं जो मजहब की सीमाओं से नही बंधे। उनके लिए तो मानवता ही जुनून है और वे भाईचारे को कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
मुख्यालय के पुरानी बाजार के रहने वाले मो. आरिफ, हक्कल, अजहर हुसैन, सलीम व चीनी को इस बात का गर्व है कि वे भारतीय हैं और मजहब की सीमाओं ने नहीं बंधे। वे कहते हैं कि अयोध्या या गोधरा के दंगों से उन्हें नहीं मतलब। उन्हें तो चित्रकूट की मनोरमता भाती है। यहां पर त्योहार किसी का हो उनका काम तो भगवान की सेवा करना है। भगवान अल्लाह हो या राम इससे कोई मतलब नही। सुनील भारतीय के पिता का नाम सुलेमान है तो भाई फिरोज। इस शख्स की कहानी यह है कि इसे नमाज पढ़ने में भी उतना ही आनंद आता है जितना स्वामी कामतानाथ की परिक्रमा लगाने में। वह कहता है कि आंतरिक सुकून पाने के लिए रास्ते बना दिये गये हैं। दोनो रास्ते आंतरिक सुकून के साथ ही नेकी का पाठ पढ़ाते हैं। रमा दत्त मिश्र तो लगभग 30 सालों से ईद व बकरीद की नमाज एक साथ पढ़ रहे हैं। नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया तरौंहा की मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष हैं तो मोहम्मद सिद्दीकी तरौंहा की रामलीला कमेटी के मुख्य कर्ताधर्ता हैं। पुरानी बाजार की रामलीला में रावण को वर्षो से जलाने का काम मो. लतीफ का परिवार कर रहा है तो यहां की कमेटी में मु. इस्माइल की मुख्य भागीदारी रहती है। मुहर्रम के जुलूस में वैसे तो ढोल बजाते तमाम हिंदू युवा दिखाई दे जाते हें पर चालीस बसंत पार कर चुके महेन्द्र अग्रवाल, राज कुमार केशरी, प्रेम केशरवानी, राजेश सोनी, शरद रिछारिया सहित तमाम ऐसे नाम हैं जो छबील आदि लगाकर लोगों को शरबत, चाय व खिचड़ा खिलाने का काम करते हैं। यहां पर ब्राह्मण गौतम परिवार मुहर्रम के मौके पर नाथ बाबा की सवारी रखता है। इसे मुख्यालय में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। इस सवारी की सेवा करने वाले भी हिंदू हैं। जिनमें छाऊ लाल व प्रमोद कुमार प्रमुख हैं। ऐसा नही है कि खाली तीज त्योहारों तक ही यहां पर भाई चारे की मिशाल हो। किसी भी मृत आदमी की मिट्टी न बरबाद होने पाये इसके लिये लगभग पन्द्रह साल पहले पुरानी बाजार में मुक्ति धाम समिति बनाई गई थी। जिसमें हिंदुओं के साथ ही मुसलमानों की भी भागीदारी अच्छी संख्या में हैं। कोई भी लावारिस लाश के मिलने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार कर दिया जाता है।

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