गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Monday, April 26, 2010

अपनों के लिये भी है बेगाना अद्वितीय शिल्प का नमूना गणेश बाग

चित्रकूट। इस परिक्षेत्र का आध्यात्मिक, धार्मिक के साथ ही सांस्कृतिक वैभव अपने आपमें अनूठा है। धर्म नगरी का दर्शन जहां शांति और वैराग्य का संदेश देता है वहीं कर्वी नगर में स्थापत्य कला पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के स्वरुप दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक स्थान जिला मुख्यालय से लगे सोनेपुर गांव के समीप 'गणेश बाग' है। भले ही अभी भी इस विशिष्ट स्थान पर देशी और विदेशी पर्यटकों की आवक उतनी न बन पाई हो जितनी की उम्मीद की जाती है पर इतना तो साफ है कि सांस्कृतिक विरासत का धनी स्थान अपने आपमें काफी विशिष्टतायें समेटे हुये है। भले ही इस स्थान का नाम गणेश बाग हो पर यहां पर श्री गणेश की स्थापित एक भी मूर्ति नही है। मूर्ति चोरों की बुरी नजर का परिणाम श्री गणेश की प्रतिमा ही नही बल्कि अन्य विशेष स्थापत्य कला की मूर्तियां बाहर जा चुकी है।

जिला चिकित्सालय के ठीक पीछे को कोटि तीर्थ जाने के मार्ग पर स्थित गणेश बाग के बनने की कहानी भी कम रोचक नही है। मराठा राजवंश की बहू जय श्री जोग बताती हैं कि उनका खानदान प्लासी के युद्ध के बाद बेसिन की संधि में यह क्षेत्र में मिलने के बाद यहां पर आया था। उनके पुरखे पेशवा अमृत राव को कुआं तालाब बाबड़ी आदि बनवाने का काफी शौक था। वैसे उस समय इस शहर का नाम अमृत नगर हुआ करता था। पानी की विशेष दिक्कत होने के कारण भी पानी की व्यवस्था सुचारु रूप से किये जाने के प्रबंध किये गये थे।
महाराष्ट्र से लाल्लुक रखने के कारण श्री गणेश की आराधना उनके खानदान में होती थी। यहां पर इस मंदिर के साथ ही तालाब व बावड़ी का निर्माण कराने के साथ ही विशाल अस्तबल का भी निर्माण कराया गया था।
महात्मा गांधी चित्रकूट गांधी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. कमलेश थापक कहते हैं कि बेसिन की संधि के बाद मराठों ने बांदा और चित्रकूट में आकर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनके आने से जहां कुछ नई परंपरायें समाप्त हुयी वहीं मंदिरों, कुओं, तालाबों व बाबडियों का भी निर्माण हुआ।
गणेश बाग भी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। यहां पर स्थापित मूर्तियां खजुराहो शिल्प की तरह ही हैं। पांच मंदिरों के समूह के साथ ही तालाब व अन्य भवन कभी अपने वैभव रहने की की कहानी कहते हैं, पर समय बदलने और आधुनिकता का रंग चढ़ने पर आज यह विशेष स्थान दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है। सरकारी स्तर पर किये गये प्रयास नाकाफी है और किसी भी जन प्रतिनिधि को यहां के सांस्कृतिक गौरवों के उत्थान की याद ही नही आती।
सामाजिक चिंतक आलोक द्विवेदी कहते हैं कि सरकार के पास पैसा बेकार के कामों के लिये बहाने को तो है पर गणेश बाग के विकास के लिये शायद नही है। भारतीय पुरातत्व विभाग का एक बोर्ड और चंद चौकीदार ही इसके संरक्षण और संर्वधन के जिम्मेदार बने हुये हैं। सरकारी योजनायें इसके उत्थान के लिये तो बनी पर उनसे गणेश बाग की दशा और दिशा के साथ ही पर्यटकों की आवक नही बढ़ सकी। अगर वास्तव में सही मंशा से गणेश बाग का विकास किया जाये तो पर्यटक यहां पर भी आकर आनंदित महसूस करेंगे। खजुराहो शिल्प की तरह ही इस मंदिर का इतिहास अपने आपमें स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी चंद्र शेखर आजाद के यहां पर कई बार रहने का भी गवाह है, पर दुर्भाग्य इस बात का है कि कभी भी किसी ने इस तरह का जिक्र गणेश बाग की इमारत के अंदर बोर्ड लगाकर किया ही नही। पेशवाओं के बनवाये तमाम मकान खंडहर होते रहे और पर्यटक विभाग भी मूक दर्शक की भांति अपनी कार्य कुशलता सिद्ध करता रहा।

चित्रकूट में नहीं भूकंप का खतरा- डा. मिश्र

चित्रकूट। 'चित्रकूट भूकंप प्रभावी क्षेत्र नहीं'। इस बात की तस्दीक महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में मप्र प्रौद्योगिकी परिषद के विश्वविद्यालय प्रकोष्ठ द्वारा सुदूर संवेदी तकनीकी के प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन विषय पर व्याख्यान माला के दौरान भूगर्भ वैज्ञानिक डा. के एस मिश्र ने की। डा. मिश्र हाल ही में भारत सरकार के भूगर्भ सर्वेक्षण के उप निदेशक पद से सेवानिवृत हुये हैं।

उन्होंने कहा कि भूकंप एक ऐसी आपदा है जो बिना सूचना के आती है। गुजरात का कच्छ, हिमांचल प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्यों में भूकंप आने की अधिक संभावनायें हैं। हमारे देश में मैप तैयार हो चुका है। उसमें चित्रकूट परिक्षेत्र को भूकम्प प्रभावी क्षेत्र से मुक्त रखा गया है।
उन्होंने बताया कि भूकंप की सतह से नीचे 35 मीटर की गहराई से बेसमेंट की चट्टानें अचानक ऊपर उठती हैं और भूकम्प आता है। उन्होंने कहा कि 70 प्रतिशत उपयोगी जल समुद्र में बहकर बेकार चला जाता है। इसे रोकने के उपाय होने चाहिये। गुजरात राज्य में घर-घर में जल प्रबंधन के लिये कार्य किये जा रहे हैं।
कुलपति प्रो. ज्ञानेन्द्र सिंह ने कहा कि पानी की समस्या बुंदेलखंड की सबसे बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि यहां पर पानी के लिये शोध करने की आवश्यकता है।
इस दौरान विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरित किये गये। इस दौरान प्रकोष्ठ के समन्वयक डा. रमेश चंद्र त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत कर वैज्ञानिक गतिविधियों की जानकारी दी। विभिन्न संकायों के शिक्षक, डा. अरुप कुमार गुप्ता, डा. रवीन्द्र सिंह, डा. सूर्य कांत चतुर्वेदी, डा. साधना चौरसिया सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

Saturday, April 24, 2010

बहत्तर प्रतिशत धन खर्च कर बना दिये 219 आदर्श तालाब

चित्रकूट। सरकार की मंशा गांवो में रहने वालों के लिये पुराने सपनों का गांव बनाने की है और इसी मकसद से हर एक गांव में माडल तालाब बनाये जाने के मकसद से काम प्रारंभ की जब कवायत शुरु हुई तो एक बार फिर अतिक्रमण सामने आया। कई गांवों में तो अतिक्रमणकारी न केवल तालाब के भीटे बल्कि पूरा-पूरा तालाब ही निगल चुके थे। खैर सरकार की मंशा के अनुरुप जब जिले भर की तीन सौ तीस ग्राम सभाओं में आदर्श तालाब बनाने के लिये तलाश की गई तो 298 गांवों पुराने तालाब मिल ही गये। मनरेगा जैसी योजना और कड़ी मशक्कत के बाद भी कागजों पर तो अधिकारियों ने 219 तालाबों को आदर्श बनाये जाने की घोषणा कर दी पर वास्तविकता में जिले का एक भी तालाब आदर्श कहलाने लायक बना ही नही क्योंकि तो अभी किसी तालाब में पानी ही नही है और बरसात आने का इन्तजार पौधरोपण कराये जाने के लिये है। सभी तालाबों में तय मानक के अनुसार अभी काम भी पूरे नही हो पाये।

परियोजना निदेशक पी के श्रीवास्तव बताते हैं कि आदर्श तालाब योजना में जिले में कुल 298 तालाबों का चयन किया गया था। हर गांव के एक तालाब को आदर्श बनाया जाना मकसद था। इसमें प्रत्येक आदर्श तालाब में फेन्सिंग, आउट लेट, इनलेट, बैठने के लिये बेंचों की व्यवस्था, फलदार और उपयोगी पौधों का वृक्षारोपण, बोरिंग, गेट का निर्माण तथा विधवा या विकलांग जाब कार्ड धारक को तालाब की देखरेख के लिये तैनात कर उसका भुगतान मनरेगा से किया जाना जैसे काम थे।
उन्होंने बताया कि जिले भर की कुल 330 ग्रामसभाओं में 298 आदर्श तालाबों का रुप देना था। जिनमें से 219 को आदर्श तालाब का रुप दे दिया गया है। शासन से आये तिहत्तर प्रतिशत धन में से बहत्तर प्रतिशत धन को खर्च किया जा चुका है।
कर्वी ब्लाक के खंड विकास अधिकारी कहते हैं कि जब अभी तालाबों में पानी ही नही है तो आउटलेट का निर्माण क्यों कराया जायेगा। बरसात में जब पानी बरसेगा तभी तालाब भरेंगे और बरसात में ही पौधे भी लगाये जायेंगे। 94 ग्राम सभाओं में से कुल 86 तालाबों का ही निर्माण कराया जा रहा है। इनमें से पैंसठ ही पूरा हो पायें हैं। वैसे इस योजना में काम 60 प्रतिशत मजदूरों से कराया जाना था। यहां पर अधिकारी कहते हैं कि इस नियम का पालन तो किया गया पर पथरौंडी गांव के तालाब में तो जेसीबी से कराई गई खुदाई की शिकायत भी एक बार तहसील दिवस में सामने आई आ चुकी है।

युवराज से मिलने के बाद भी कुटुवा कोल की तो नही बदली किस्मत

चित्रकूट। भले ही कलावती की कहानी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भरी संसद में सुनाकर उसकी तकदीर की इबारत सुनहरे लफ्जों में लिख दी हो पर पाठा क्षेत्र के गांव जगन्नाथपुरम के कुटुवा कोल की किस्मत नही बदली। दो साल पहले राहुल गांधी जब उस गांव में आये थे तो उसने उन्हें अपनी समस्या बताई थी। उसका राशन कार्ड आज तक नही बना और उनके आने के बाद मनरेगा में भी कुल एक दिन की मजूदरी के सौ रुपये ही उसे मिल सके हैं। युवा कांग्रेस अध्यक्ष पंकज मिश्र जब इस गांव पहुंचे तो यह तस्वीर सामने आई। युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि गांव में लोगों ने अपनी समस्यायें बताई। इसी गांव के निवासी कुटुवा ने भी अपनी स्थिति बताई तो वे चौंक पड़े। उसने बताया कि न तो उसे नरेगा में एक दिन के अलावा काम मिला और न ही उसका राशन कार्ड बना। इसके साथ ही गांव के आनंदी प्रसाद, सुखनंदन, पचिनिया, कैरी, पंची आदि सैकड़ों मजदूरों को मनेरगा में आज तक औसतन केवल पांच दिनों की ही मजदूरी मिली है। सन् 2007 के बने जाब कार्ड धारकों सत्नेश, भैरम आदि को तो काम ही नही मिला। हिरिया व सुमित्रा जैसी तमाम महिलाओं के तो जाब कार्ड ही नही बनाये गये। विकलांगों और विधवाओं को पेंशन भी नही मिल रही है। इसके साथ ही राशन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी तमाम समस्यायें भी मिली। भ्रमण में संजय पांडेय, सुरेन्द्र वर्मा, गिरीश मिश्रा व डा. धर्म चौधरी आदि शामिल रहे।