गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Sunday, August 22, 2010

मानवीय गुणों को दर्शाता महामानव का आचरण

चित्रकूट। प्राकृतिक सुषमा में रची बसी तपोस्थली पर त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि ने एक ऐसा महाकाव्य रच दिया, जिसने एक साधारण मानव अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। आज भी इस भूमि की धूल को साधारण न समझकर रामरज कहा जाता है और उसका वंदन कर पापों के नष्ट होने जैसी मान्यता विद्यमान है। सोलह कलाओं से युक्त जिस महामानव की कल्पना का यथार्थ महर्षि वाल्मीकि ने इस धरती पर देखा था, उसको साकार रूप देने का काम युग ऋषि नानाजी देशमुख की इच्छा पर यहां राम दर्शन के रूप में फलीभूत हुआ। सेठ मंगतूराम जयपुरिया के पुत्र डॉ. राजाराम जयपुरिया के आर्थिक सहयोग से जब नानाजी की कल्पना ने उड़ान भरी तो पांच मंदिरों का समूह कुछ ऐसे रूप में सामने आया कि मानो परब्रह्म पूर्णतम् परमेश्वर का रूप यहां पर पुरुषोत्तम, समाजसुधारक और समाज को नयी दिशा देने के साथ नये युग की शुरूआत करनेवाले श्रीराम नजर आने लगे।
महर्षि वाल्मीकि और बाबा तुलसीदास जी के लिखे रामचरित से नाना जी ने वह प्रसंग और दृश्य निकाले जो श्रीराम को महामानव व युग उद्धारक के रूप में सीधे तौर पर परिभाषित करते हैं। पहले मंदिर में जहां विश्व में रामलीला आयोजित किये जानेवाले देशों के साथ ही वहां के निमंत्रण पत्र व मुखौटों के साथ ही अन्य विवरण मिलते हैं। यहां यह देख कर आश्चर्य होता है कि चीन और सोवियत रूस जैसे कम्युनिस्ट शासन वाले देशों में भी श्रीरामचरित का विस्तार इतने मार्मिक तरीके से किया जा रहा है। कोरिया के राजकुमार का विवाह अयोध्या की राजकुमारी के साथ का दुर्लभ चित्र भी यहां मौजूद है। इसके साथ ही रूस, जापान, वर्मा, कनाड़ा, लाओस, वियतनाम, फ्रांस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशों की भाषाओं में लिखी रामायणों के साथ ही वहां पर आयोजित होने वाली रामलीलाओं के दृश्यों को संयोजित किया गया है।
दूसरे मंदिर की शुरुआत श्रीराम के शिक्षा व अध्ययन से होती है। यहां पर शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए बताया गया है कि विश्वविद्यालय से उपाधियां पाकर या आजीविका की क्षमता अर्जित कर स्वयं को शिक्षित मानना अपने आपको धोखा देना है। मुनि विश्वामित्र द्वारा यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम लक्ष्मण को मांगना, अहल्या का पुर्नमिलन, राक्षसी ताड़का का वध, उच्च पदाधिकारी बहुलाश्व को प्राणदंड, पीडि़त युवतियों को समाज में उचित स्थान दिलाना, विनयशीलता की कुशलता से परशुराम का क्रोध शांत करना, मां की आज्ञा से भाई को राजपाट देकर खुद चौदह वर्ष के लिए वन में प्रस्थान, ऊंच-नीच का भेद मिटाकर निषादराज को गले लगाने के साथ ही भीलनी शबरी के हाथों से बेर खाना, चित्रकूट में मुनि वशिष्ठ और मां अनुसूइया से मिलन, भरत के चित्रकूट आने पर उन्हें स्नेह तो दिया पर राज्याभिषेक से इंकार कर वापस उन्हें अयोध्या भेजना, दानवी प्रकृति वाले राक्षसराज रावण से वानर और भालुओं के सहयोग से विजय प्राप्त करने जैसे दृश्य काफी मार्मिक हैं।

..और भी काफी खास है राम दर्शन
नव गृह के साथ ही सत्ताइस नक्षत्रों के पेड़ों के साथ ही रामदर्शन मंदिर समूह की विशेषता है कि यहां की किसी भी मूर्ति की न तो पूजा होती है और न ही कहीं प्रसाद या अगरबत्ती इत्यादि लगाने का प्रावधान है। मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार पर विनयवत श्री राम व जानकी को अपने हृदय में धारण करनेवाले बजरंगबली की विशालकाय प्रतिमा के दर्शन होते हैं तो आगे बढ़ने पर रामचरित के प्रथम प्रणेता महर्षि वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास जी की विशाल प्रतिमाएँ दिखायी देती हैं।
दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डॉ. भरत पाठक कहते हैं कि नानाजी देशमुख श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में ही पूजा करते थे। वे कहा करते थे कि श्रीराम विश्व के पहले समाजसुधारक थे। रामदर्शन का निर्माण भी इसी भावना के साथ किया गया था कि यहां आने वाले लोग श्रीराम के मानवीय गुणों को देखें और परखें और उसी अनुसारचित्रकूट। प्राकृतिक सुषमा में रची बसी तपोस्थली पर त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि ने एक ऐसा महाकाव्य रच दिया, जिसने एक साधारण मानव अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। आज भी इस भूमि की धूल को साधारण न समझकर रामरज कहा जाता है और उसका वंदन कर पापों के नष्ट होने जैसी मान्यता विद्यमान है। सोलह कलाओं से युक्त जिस महामानव की कल्पना का यथार्थ महर्षि वाल्मीकि ने इस धरती पर देखा था, उसको साकार रूप देने का काम युग ऋषि नानाजी देशमुख की इच्छा पर यहां राम दर्शन के रूप में फलीभूत हुआ। सेठ मंगतूराम जयपुरिया के पुत्र डॉ. राजाराम जयपुरिया के आर्थिक सहयोग से जब नानाजी की कल्पना ने उड़ान भरी तो पांच मंदिरों का समूह कुछ ऐसे रूप में सामने आया कि मानो परब्रह्म पूर्णतम् परमेश्वर का रूप यहां पर पुरुषोत्तम, समाजसुधारक और समाज को नयी दिशा देने के साथ नये युग की शुरूआत करनेवाले श्रीराम नजर आने लगे।

महिला किसानों को सिखाई गई उन्नतशील तकनीक

चित्रकूट। महिला किसानों को उन्नतशील खेती के माध्यम से खेतों से ज्यादा पैदावार लेने के गुरु कृषि विज्ञान केंद्र में सिखाये जा रहे हैं। परिसर में विभिन्न ग्रामों से आई 20 महिलाओं को केंद्र के वैज्ञानिक बदलते मौसम में किसान महिलाओं को खरपतवार से खेतों को सुरक्षित रखने के साथ ही उनसे फसलों को होने वाली हानियों के बारे में भी बता रहे हैं।

केंद्र के वैज्ञानिक विजय कुमार गौतम ने बताया कि खरपतवार जमीन से नमी एवं पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में अवशोषित करते हैं। जिससे फसलों की वृद्धि एवं उपज प्रभावित होती है। उन्होंने बताया कि निराई और गुड़ाई से फसल प्रभावित होती है। खरपतवार नियंत्रित होते हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नमी का संरक्षण होता है।
उन्होंने बताया कि फसलों की बुवाई के पन्द्रह से बीस दिन के अंदर एक निराई करनी चाहिये। खरपतवार नियंत्रण के लिये बाजार में तमाम प्रकार के रसायन उपलब्ध हैं पर उनसे फसल, मनुष्य, जानवर, मित्र, कीट और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। प्रसार वैज्ञानिक संत कुमार त्रिपाठी ने उन्नतशील कृषि यंत्रों व्हील हो, हैंड हो, बीडर और त्रिफाली की जानकारी दी और उनका प्रयोग मूंग और अरहर की फसल पर कराया।
कार्यक्रम समन्वयक डा. छोटे सिंह ने बदलते मौसम को लेकर इस तरह के कार्यशाला प्रशिक्षण लगातार आयोजित किये जाने की बात कही।

Sunday, August 8, 2010

केवल चार महीनों में ही लिख डाला चार करोड़ राम नाम

चित्रकूट। जहां एक तरफ गुरुपूर्णिमा के मौके पर पूरे देश में लोग अपने गुरु की वंदना करने का काम करेंगे वहीं तीर्थ नगरी चित्रकूट के प्रवेश द्वार जिला मुख्यालय में सैकड़ों लोगों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम को ही गुरु मान लिया है। 25 जुलाई को सैकड़ों भक्त न केवल श्री राम के नाम से लिखे पन्नों पर अपने शीश नवायेंगे बल्कि अब उन्होंने अपना गुरु राम के नाम को ही मान लिया है। वैसे भगवान राम की कर्मभूमि तीर्थ नगरी चित्रकूट में यो तो उनके नाम का गुणगान हमेशा से होता चला आ रहा है, एक सौ आठ क्या दस हजार तुलसी के मनकों से जाप करने वाले दर्जनों की संख्या में लोग यहां पर आसानी से मिलते हैं पर जब तारक मंत्र राम नाम के लेखन का काम कार्तिक पूर्णिमा दिन से यहां प्रारंभ किया गया तो पांच साल के बच्चे से लेकर नब्बे साल के बुजुर्ग इस काम में इतनी तन्मयता के साथ जुटे कि आषाढ़ माह की तृतीय तक चार करोड़ राम नाम महामंत्र का लेखन कर डाला।

श्री राम नाम के मंत्र लेखन के काम को आगे बढ़ाने का काम करने वाले हरिश्चंद्र अग्रवाल
कहते हैं कि श्री राम का नाम तो तारक मंत्र हैं। इसके जप करने से जहां आत्मा को सुखानुभूति होती है वहीं परमात्मा के पास जाने का रास्ता भी सुगम होता जाता है। केवल कुछ महीनों में चार करोड़ मंत्र लेखन का काम सभी लोगों के भागीरथ प्रयास से हुआ है। इसमें पांच साल के बच्चों से लेकर नब्बे साल के वृद्ध शामिल हैं। अभी मंत्र लेखन के काम में मुख्यालय के लगभग सौ स्त्री पुरुष जुड़े हुये हैं।
श्री राम लीला भवन के प्रबंधक श्याम गुप्ता कहते हैं कि श्री राम मंत्र लेखन बैंक की स्थापना भवन में कर दी गई है। यहां पर कापियों को जमा करने और देने का प्रभारी बसंत राव गोरे को बनाया गया है। कापियां लोगों को निशुल्क दी जायेंगी।

. तो ये है चित्रकूट घोषणा पत्र

चित्रकूट। उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायतों के चुनाव के लिये अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के भारत जननी परिसर के सभागार में लगभग 120 प्रतिनिधियों के विचार मंथन से जब चित्रकूट घोषणा पत्र सामने आया तो यह भारी भरकम दस्तावेज दो भागों में बनाया गया। पहला भाग पंचायती राज सही अर्थो में कैसे मजबूत हो और दूसरे भाग में चुनाव के दौरान जरुरी सावधानियों पर नजर रखी गई है।

पहले भाग के 32 बिंदुओं में गांव की एकता, दलित आदिवासियों का सम्मान, महिलाओं की भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास के साथ ही गांव की गुटबाजी, भ्रष्टाचार, पंचायत प्रतिनिधियों के वेतन भत्ते, नशे को रोकने, स्वदेशी को बढ़ावा देने जैसे विषयों को उठाया गया है।
चित्रकूट घोषणा पत्र के दूसरे भाग में पंचायत चुनावों की शुरुआती प्रक्रिया से अंतिम प्रक्रिया तक की बातें साफ की गई हैं। घोषणा पत्र के अनुसार चुनाव की खर्च सीमा निर्धारित रखने, मतदाताओं को धन, शराब, भय आदि से दूर रखने के उपायों व निष्पक्ष मतदान कराने के लिये सभी उपायों को किये जाने की चर्चा की गई है।
वैसे अभी गोरखपुर, बनारस, सहारनपुर और लखनऊ में होने वाले विचार मंथन के बाद इसके वास्तविक रुप में सामने आने की बात पत्रकार भारत डोगरा ने कही।

. और जनता ने तय किया घोषणा पत्र

चित्रकूट। विचार मंथन की दिव्य भूमि पर दो दिनों के तगड़े विचार मंथन की प्रक्रिया और लगभग 120 जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों की सहमति के बाद 'पंचायत राज सही अर्थो में कैसे मजबूत व सार्थक होगा' को लेकर चित्रकूट घोषणा पत्र का मसौदा तय हो गया। अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के भारत जननी परिसर में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन प्रख्यात पत्रकार भारत डोगरा ने कहा कि वास्तव में पंचायती राज की कल्पना को लेकर जो मसौदे तय किये गये थे वह आज बेमानी सिद्ध हो रहे हैं। धन बल, जन बल और बाहुबल के सहारे चुनाव लड़े जा रहे हैं। इन्हें रोकने का काम करना होगा।

समाजसेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने कहा कि वास्तव में पंचायत प्रतिनिधि को कच्चे घड़े के समान होता हे। भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे की ओर आता है। इसलिये सामंतवादी ताकतों का मुकाबला कर सही ढंग से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की मदद की जानी चाहिये।
संस्थान के निदेशक भागवत प्रसाद ने कहा कि पंचायतों में अगर भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो निष्पक्ष छवि वाले इमानदार प्रत्याशी को ही चुनाव में उतरना व उसे विजयी बनाने के प्रयास करना चाहिये। इस विचार मंथन की प्रक्रिया के दौरान प्रदेश भर से आये जनप्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने कष्ट भरे अनुभव सुनाये। सामाजिक विज्ञान संस्थान की डा. संतोष सिंह, पंचायती राज व्यवस्था के विशेषज्ञ देवराज भट्टाचार्य के साथ ही सरस्वती,शशि निगम,अर्चन, संजय सिंह, राजा भइया, अभिषेक, संजो प्रधान आदि लोग मौजूद रहे।

सावन के रंग में रंगे स्वामी कामतानाथ

चित्रकूट। धर्मनगरी में इन दिनों सावन की धूम चल रही है। जहां हर छोटे बड़े मंदिर मे शाम होते ही संगीत के साथ सावन के गीत देवताओं को सुनाने के लिए गायकों का जमावड़ा लग रहा है। वहीं दर्शन मात्र से कष्टों को हरने वाले श्री कामतानाथ स्वामी का अंदाज भी इन दिनों सावन के रंग में रंगा है। उनकी पोशाक तो हरे रंग की है ही, पुष्पों और माला भी इसी रंग में रंगी है। जहां बेल की पत्तियों का श्रंगार विग्रह के चारों ओर दिख रहा है। वहीं श्यामा और रामा तुलसी दल की माला रोज चढ़ायी जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि करीब बारह से पंद्रह फिट लंबी तुलसी दल की माला के हर पत्ते पर मलयागिरि चंदन से श्री राम भी लिखने का काम खुद पुजारी करते हैं।

कामदगिरि प्रमुख द्वार के पुजारी प्रेम चंद्र मिश्र बताते हैं कि सवन की शुरुआत होते ही कामतानाथ स्वामी का श्रंगार पुष्पों से ज्यादा पत्तियों से किया जाता है। श्रंगार में इसका विशेष ध्यान रखा जाता है कि वस्त्रों के साथ ही आसपास का वातावरण हरे रंग का ही हो। ठाकुर जी के विग्रह पर सावन के पूरे महीने तुलसी दल की एक माला प्रतिदिन चढ़ायी जाती है। माला चढ़ाने के पहले उसके हर पत्ते पर मलयागिरि चंदन से श्री राम नाम लिखा जाता है। कई भक्त खुद माला बनाकर लाते हैं। भगवान को तीन बार श्रंगार के बाद तुलसी माला चढ़ायी जाती है। स्थानीय भक्त विवेक अग्रवाल कहते हैं श्री कामतानाथ स्वामी विलक्षण देव हैं। वो मानव के कष्टों को हरने के साथ ही इस लोक से उस लोक तक की यात्रा भी मंगलमय बनाते हैं। सावन में तुलसी माला चढ़ाने का महत्व काफी गूढ़ रहस्यों को छिपाये है।