गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Sunday, August 14, 2011

मानव स्वास्थ्य से खेले तो भुगतोगे

संदीप रिछारिया, रायबरेली : मिलावटखोर दुकानदारों के लिये बुरी खबर है! अब मानव स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना दुकानदारों को मंहगा पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश शासन ने भी खाद्य पदार्थो में मिलावट की रोकथाम के लिये केंद्र के द्वारा प्रस्तावित कानून को लागू करने की अनुमति दे दी है। शुक्रवार को इस कानून के गजट हो जाने के बाद अब न केवल जिला खाद्य निरीक्षकों का पद नाम बदल गया बल्कि अब उन्हें और भी ज्यादा अधिकार दे दिये गये हैं। खाद्य पदार्थो के नमूने की जांच रिपोर्ट अब चौदह दिनों में आनी जरूरी होगी। जबकि गंभीर मामलों को कमिश्नरी लेबल पर स्पेशल मजिस्ट्रेट की अदालत में चलाया जायेगा जिसमें अधिकतम सजा आजीवन कारावास करना मुकर्रर की गई है। वैसे स्थानीय स्तर पर भी मुकदमें अपर जिलाधिकारी सुनेंगे और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना व जेल भेजने का अधिकार उन्हें प्राप्त होगा।
मुख्य खाद्य निरीक्षक संदीप कुमार चौरसिया ने बताया कि अब न केवल उनका पदनाम बदल गया है बल्कि मिलावटखोरों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये विभागीय कर्मचारियों के हाथ और भी ज्यादा खुल चुके हैं। बताया कि पहले प्रदेश में खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 के अनुसार काम होता था पर पिछली 4 अगस्त को प्रदेश सरकार ने उसे निरस्त कर 5 अगस्त से खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 को लागू कर दिया है। वास्तव में यह केंद्रीय कृत कानून है। इसमें एक आईएएस अधिकारी को खाद्य सुरक्षा कमिश्नर का पद दिया गया है। अब उनका पद खाद्य सुरक्षा अधिकारी का होगा जबकि उनके अधीनस्थ खाद्य सुरक्षा अभिहित अधिकारी के नाम से जाने जाते हैं। इस कानून के अनुसार अब किसी भी वस्तु के 4 नमूने लिये जायेंगे। एक नमूना दुकानदार ले सकता है। वह अपने खर्चे पर किसी लैब से अपने नमूने की जांच करवा सकता है। पहले नमूने की जांच में चालीस दिन का समय लगता था अब इसे घटाकर 14 दिन कर दिया गया है। जांच रिपोर्ट आने पर इसमें यह पता चलेगा कि मिलावट का स्तर क्या है। कम गंभीर मामले अपर जिलाधिकारी प्रशासन की अदालत में चलेंगे। वे पांच लाख तक का जुर्माना सुना सकेंगे। इसके अलावा गंभीर मामले खाद्य सुरक्षा कमिश्नर की स्वीकृत के बाद लखनऊ में अपर सत्र एवं जिला न्यायाधीश की अदालत में चलाये जायेंगे। वे अधिकतम सजा आजीवन कारावास की सुना सकेंगे।

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