गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Sunday, August 14, 2011

..गुमनाम न जाने कितने हैं

रायबरेली, निज प्रतिनिधि: वे लोग जिन्होंने खून देकर हर फूल को रंगत बक्शी है, दो चार से दुनिया वाकिफ है गुमनाम न जाने कितने हैं.. किसान आंदोलन में शहीद बुधई पासी की लाट पर लिखी ये पंक्तियां उन गुमनाम शहीदों के दर्द को बयां करती हैं जिन्होंने देश की आजादी में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
नाना के घर फरवरी 1890 में जन्मे बुधई बचपन से ही स्वाभिमानी, सरल और दयालु प्रवृत्ति के थे। बदमाशों द्वारा परेशान किए जाने के चलते उनके पिता कल्लू परिवार सहित भांव के काटीहार गांव में आ बसे। निर्धनता के चलते वह पढ़ाई न कर सके, फिर भी अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति वे सजग थे। बाबा रामचंद्र दास, बाबा जानकी दास और ज्ञानानंद के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन में शामिल हो गये। सात जनवरी को मुंशीगंज पुल पर अंग्रेजों और ताल्लुकेदारों की दरिंदगी का सामना करते हुए उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
सात जनवरी 1993 को तत्कालीन विधायक अशोक कुमार सिंह ने उनके गांव में उनकी समाधि पर स्मारक की स्थापना की। शुरुआत में तो गांव में शहीद बुधई की पुण्यतिथि पर मेला लगता था, पर धीरे-धीरे वो भी विलुप्त हो गया। वर्तमान समय में गांव में उनके परिवार के लगभग सौ लोग निवास कर रहे हैं। सभी मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं। उनके नाती राम किशुन ने बताया कि विधायक अशोक सिंह के सहयोग से गांव में उनकी समाधि पर स्मारक बनवाया गया। इसके अलावा परिवार को आज तक कोई सहायता नहीं मिली।

बदहाल शहीद स्मारक
गांव में मेन रोड के किनारे स्थापित शहीद बुधई पासी का स्मारक देखरेख के अभाव में बदहाल होता जा रहा है। स्मारक के चारो ओर गंदा पानी और कीचड़ भरा रहता है। स्मारक की नींव के ईट निकल गये हैं। जन प्रतिनिधियों को भी शहीद की शहादत याद दिलाने वाले स्मारक की दयनीय हालत दिखायी नहीं दे रही है।

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