गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Sunday, June 21, 2009

पानी के लिए होने लगे यज्ञ व भजन

Jun 21, 02:45 am
चित्रकूट। 'उज्जवर मौला पानी दे पानी दे गुड़ धानी दे'। 'अब तौ दैवौ धोखा देह लाग' कुछ इसी तरह के जुमले अब आम आदमी के मुंह से सुनायी दे रहे हैं। सरकारी कैलेंडर भी बेमानी साबित सा दिखाई पड़ने लगा है। बाढ़ की समीक्षा बैठक अप्रैल के महीने में ही निपटा चुका प्रशासन अब इस इंतजार में है कि 15 जून तो कब का निकल गया पर अभी तक इन्द्र देव ने पानी नहीं बरसाया है। वैसे लोगों ने उनको मनाने के लिए मंदिरों में भजन कीर्तन के साथ यज्ञ व हवन का कार्यक्रम शुरू कर दिया है।
पांच सालों से पानी के लिए तरस रही बुंदेली जमीन पर पिछले साल पहली बरसात 8 जून को हुई थी, पर इस बार अभी तक बारिश न होने से बुंदेलखंड की धरा तप रही है। लोगों का कहना है कि मार्च महीने से सूर्य देव का प्रकोप झेल रहे वह लोग इस इंतजार में हैं कि कब मौसम अंगड़ाई ले और झमाझम बरसात हो पर मौसम अभी तक रूठा हुआ है। फिलहाल क्षेत्र के बरहा के हनुमान जी, लैना बाबा, श्री कामतानाथ जी महाराज, स्वामी मत्स्यगयेन्द्र नाथ जी महाराज, नांदी के हनुमान जी, सूर्य कुड़ समेत तमाम और भी देव मंदिरों में लोग पानी के बरसने की आस के साथ हवन, पूजन व कीर्तन व भंडारा करने में जुट गये हैं। बरहा के हनुमान मंदिर के पुजारी विजय तिवारी बताते हैं कि पानी का बरसना अब बहुत जरूरी है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु भगवान से केवल पानी ही मांग रहा है। मंदिर में कीर्तन, भजन और भंडारा कार्यक्रम लगातार चल रहा है। सबको उम्मीद है कि पानी जल्द ही बरसेगा।

Thursday, June 18, 2009

नान ने फिर ली एक जांबाज की जान

Jun 17, 02:23 am
चित्रकूट। बहादुर एसओजी सिपाही की शहादत ने एक बार फिर गत वर्ष शहीद हुए सिपाही अभयराज राय की यादें ताजा कर दी हैं। घटना के बाद दस्यु नान की क्रूरता भी उजागर हो गयी है।
मंगलवार को पचास हजार के इनामी दस्यु नान की गोली का शिकार हुए बहादुर सिपाही शमीम की मौत से पुलिस महकमा सदमे में है। गौरतलब है कि गत वर्ष 23 मई को इसी इलाके में दस्यु नान के साथ एसओजी टीम की मुठभेड़ हुई थी। जिससे कांस्टेबिल अभयराज राय दस्यु नान की गोली का शिकार होकर शहीद हुए थे। इस घटना के बाद जहां पुलिस ने दस्यु नान केवट पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था, वहीं मुठभेड़ में बदमाशों का सहयोग करने के आरोप में उसके दर्जन भर रिश्तेदारों को जेल भेजा था। इसके बाद दस्यु नान यमुना पट्टी में रहकर आपराधिक वारदातें करता रहा, किंतु पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका। लगभग एक साल बाद दस्यु नान ने लगभग उसी अंदाज में फिर दुस्साहस पूर्ण वारदात को अंजाम दे दिया। इस घटना ने जिले में पहले हुए शहीद जवानों की याद ताजा कर दी हैं। गौरतलब है कि 22 जुलाई 07 को कुख्यात दस्यु ठोकिया ने भी 6 एसटीएफ सिपाहियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने दस्यु ठोकिया के सफाये के निर्देश दिये थे। जिसकी परिणित में दस्यु ठोकिया हलाक भी हुआ। वैसे दस्यु ठोकिया ने वर्ष 04 में भी सीतापुर चौकी के दो सिपाहियों की हत्या कर रायफलें लूटी थीं। इसके पूर्व दस्यु भोला ने बहिलपुरवा थाना क्षेत्र में दो जीआरपी सिपाहियों की ट्रेन में हत्या कर रायफलें लूट ली थीं। हालिया घटना ने कुख्यात दस्यु नान केवट की क्रूरता भी उजागर की है। लगातार दो बहादुर सिपाहियों की शहादत का जिम्मेदार यह बदमाश आखिर कब तक पुलिस के हाथों ढेर होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

चित्रकूट में पुलिस की दस्यु नान केवट से मुठभेड़, सिपाही शहीद

Jun 17, 02:23 am
राजापुर (चित्रकूट)। पचास हजार के इनामी दस्यु नान केवट के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में एसओजी टीम का एक सिपाही शहीद हो गया। मुठभेड़ में दो सिपाही भी गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गये।
जानकारी के अनुसार राजापुर थाना क्षेत्र के जमौली गांव में एक केवट परिवार में सोमवार को बरहौं संस्कार कार्यक्रम था, जिसमें सुरवल निवासी इनामी बदमाश नान उर्फ घनश्याम केवट आया था। मुखबिर की सूचना पर दस्यु नान केवट की गिरफ्तारी के लिए एसओजी टीम के साथ राजापुर पुलिस ने मंगलवार को सुबह साढ़े दस बजे जमौली गांव निवासी राजकरन के घर में दबिश दी।
घर की तलाशी के दौरान पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा। इस पर पुलिस टीम बाहर आ गयी, किंतु मुखबिर ने दस्यु सरगना के घर के अंदर होने की ही बात कही। इस पर एसओजी टीम के सिपाही घर के पीछे की ओर से दीवार पर चढ़ने लगे। घर के अंदर छिपे दस्यु नान केवट ने सिपाहियों के नजदीक आने पर अपनी राइफल से कई फायर झोंक दिये, अचानक हुई फायरिंग से सिपाहियों को संभलने का मौका नहीं मिल सका।
गले में गोली लगने से कांस्टेबिल शमीम की मौके पर ही मौत हो गयी जबकि कांस्टेबिल दिलीप तिवारी व राजेंद्र सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये। इधर, घर के अंदर फायरिंग होने से बाहर खड़ी पुलिस टीम ने भी जवाबी फायरिंग करना शुरू कर दिया और घायल सिपाहियों को इलाज के लिए जानकीकुंड चिकित्सालय भेजा। बाद में हालत गंभीर होने पर घायल सिपाहियों को इलाहाबाद रिफर कर दिया गया।
पुलिस टीम की सूचना पर घटना स्थल पर भारी तादाद में पुलिस बल ने पहुंचकर दस्यु नान के छिपने वाले घरों की चारों ओर से घेरेबंदी कर ली थी। मौके पर पहुंचे डीआईजी के के त्रिपाठी व एएसपी जुगुल किशोर की मौजूदगी में देर शाम तक व पुलिस टीम के बीच रुक-रुक कर फायरिंग होती रही। बदमाश से मुठभेड़ की सूचना पर इलाहाबाद की एसटीएफ टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गयी थी। पुलिस ने गांव को चारों ओर से घेर कर शाम तक ग्रामीणों को बाहर निकाल दिया था। इस दौरान एक बार दस्यु नान ने पुलिस टीम पर हैंड ग्रेनेड भी फेंका, किंतु वह फट नहीं सका। खबर लिखे जाने तक देर रात तक पुलिस टीम की घेरेबंदी जारी थी।

Friday, June 12, 2009

..इन्हें तो सिर्फ निवालों की ही चिंता

Jun 12, 02:08 am
चित्रकूट। 'इन्हें न देश की चिंता है और न ही चिंता है समाज की इन्हें फिक्र है तो बस दो जून के निवालों की' वास्तव में ये बात भी करते हैं दो जून के निवालों की। सरकारें इनका साथ देती हैं अधिकारी चाहते हैं कि इन्हें दो जून की रोटी मिले। सौ दिन का काम भी पूरा मिले पर कभी जाति तो कभी धर्म तो कभी गांव की राजनीति तो कभी 'वोट' रोटी के बीच आ जाता है। फिर इन्हें लगता हैं कि शायद केंद्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना शायद इनके लिये बनी ही नही। एक महीने रोजगार जब गांव के प्रधान की चिरौरी-विनती करने के बाद नहीं मिला तो फिर ये सूरत और पंजाब का रुख कर लेते हैं। कुछ इस तरह की दास्तान है देश के सर्वाधिक दर्दीले इलाके बुंदेलखंड के इस पवित्र चित्रकूट जिले के उन राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना 'नरेगा' के पात्र कार्ड धारकों की। कार्ड धारकों के पास कार्ड नही अगर है भी तो वह प्रधान के पास है। कई बार शिकायतों और जी हजूरी के बाद काम मिला तो वह जीवन जीने के लिये नाकाफी। कई उदाहरण तो ऐसे कि काम किये हुये वर्षो बीते, मजदूरी पाने के लिये धरना, प्रदर्शन अनशन और अधिकारियों की सहानुभूति व दुत्कार भी सही, पर मामला ठाक के तीन पात रहा।
लगभग तीन सालों से चल रही नरेगा के कामों की पड़ताल करने जब यह संवाददाता मुख्यालय के लगभग अंदर ही बस चुके ग्राम माफी कर्वी में पहुंचा तो जिलाधिकारी इस अंबेडकर गांव में कामों का सत्यापन सभी जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ कर रहे थे। दो साल पहले कार्ड बनवाकर काम पाने की हसरत रखने वाले दुजिया को जिलाधिकारी के पास तक फटकने नही दिया गया। राम निहोरे, कैलाश, चंद्र भान और परवतिया ने बताया कि प्रधान नरेगा का काम उन्हीं से करवाता है जो उसकी जी हजूरी करते हैं। वैसे मुख्यालय के समीपवर्ती गांव होने का फायदा इसे मिला और तमाम काम यहां पर प्रधान ने संपादित करवाये। कामों की क्वालिटी भी इस लिये ठीक थी क्योंकि नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों की नजरों में रहने के साथ ही भ्रमण में आने वाले उच्चाधिकारियों को यहां का भ्रमण अधिकारी सुगमता से करा देते हैं।
संवाददाता ने दूसरा गांव अंबेडकर ग्राम भारतपुर ग्राम पंचायत के राजस्व ग्राम खपटिहा व रामपुर माफी को चुना। कभी डाकू ठोकिया के आतंक के कारण इस गांव में जाने की हिम्मत अधिकारियों क्या पुलिस की नही होती थी, पर आज उसकी मौत की बाद हालात काफी जुदा दिखाई दे रहे हैं। दबंग प्रधान व सचिव की त्रासना का शिकार सभी मजदूर हैं। दो साल पहले यहां पर रोजगार गारंटी से बनी सड़क की मजदूरी दर्जनों बार प्रदर्शन व अनशनों के बाद भी नही मिली। काम देने की हालत यह है कि वर्ष 2007 में बने तमाम कार्डो पर कही दस दिन तो कहीं पर पन्द्रह से बीस दिन की मजदूरी चढ़ी दिखाई देती है। गांव के मजदूर अधिकांश पंजाब जाकर कमाने या फिर अस्सी प्रतिशत लोग मौत के मुंह में घुसकर खदानों में पत्थर तोड़ने के काम का यकीन सिर्फ इस लिये करते हैं क्योंकि वहां पर काम करने के बाद पैसा चोखा मिलता है।
अधिकारी की जुबानी
नरेगा के मामले में परियोजना निदेशक राम किशुन साफ हैं। कहते हैं कि उनका काम ग्राम पंचायतों के काम के आधार पर पैसा देना है। इस वर्ष की कुल उपलब्ध धनराशि 1507.97 लाख में 136.54 लाख व्यय करके 6027 कामों को शुरु करवा दिया गया है। हर काम को देखने के लिये अधिकारी मौके पर लगातार जाते हैं। जहां कहीं भी शिकायतें मिलती है उन्हें दूर किया जाता है।
समस्यायें मजदूरों की
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के निर्देशों का पालन कोई भी ग्राम पंचायत नही करती। इस बात की तस्दीक अक्सर अधिकारी भी करते हैं। पानी, दवा या फिर बच्चों को खिलाने के लिये एक श्रमिक कहीं पर कभी मिला ही नहीं। मजदूरों को बैठकर सुस्ताने के लिये भी छाया की व्यवस्था कहीं होती दिखाई नही दी। मजदूर कहते हैं कि काम पूरा होने के बाद पैसा मिल जाये यही काफी है।

Saturday, June 6, 2009

घाघरा पलटन के नाम से ही खौफ खाते थे अंग्रेज

Jun 06, 02:22 am
चित्रकूट। 'चमक उठी थी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।' एक ऐसी बुंदेली महिला जिसे कलम की ताकत ने वह बुलंदी दी कि वह आजादी के दीवानों की फेहरिस्त में अमर हो गयी।
भगवान राम की कर्मभूमि की एक महिला ऐसी भी थी जिसके नाम से ही अंग्रेज डरते थे। इस वीरांगना का नाम था शीला देवी। घाघरा पलटन की इस नायिका के कारनामों का यह हाल था कि सन 1857 के पन्द्रह साल पहले कोई भी महिला घाघरा चोली पहने सड़क पर निकलती थी तो उसे पहले पुलिस की तफ्शीस से होकर गुजरना पड़ता था और थोड़ा भी शक होने पर उसे जेल भी जाना पड़ता था। अंग्रेजों का बनाया बांदा गजट इस बात की पुष्टि करता है कि उन दिनों जेलों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं बंद हुई थी। इस पलटन ने 6 जून 1842 में ऐसा कारनामा दिखाया कि अंग्रेजी सेना के पैर बुंदेलखंड के इस भूभाग से उखड़ से गये। 'राम रहीमा एक है, दो मत समझे कोय' का उद्घोष करने वाली शीला देवी की घाघरा पलटन जब अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तान के साथ इस मंदाकिनी के पावन तट पर गायों को काटकर बंगाल भेजे जाने की बात बतातीं तो महिलाएं घर का चूल्हा चौका छोड़कर उसके साथ हो लेती। पलटन में लगभग पन्द्रह सौ महिलाएं थीं। तुलसीदास महाविद्यालय के पूर्व प्रवक्ता डा. अजय मिश्र ने बुंदेलखंड के निवासियों का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रतिभाग पर पूरा अध्ययन करने के बाद बताया कि घाघरा पलटन में जितनी महिलाएं हिंदू थी उतनी ही मुस्लिम भी। दोनों का काम समाज को जगाना था। उन्होंने कहा कि आंदोलन की शुरुआत करने का काम शीला देवी की घाघरा पलटन ने ही किया था। वैसे तो इसमें शामिल अधिकतर महिलाएं अशिक्षित थीं पर वे युद्ध कौशल से भली भांति परिचित थी। तेज दिमाग की इन महिलाओं ने जब बुंदेली मस्तिष्क में जब अंग्रेजों के प्रति नफरत भरने का काम किया तो मर्द तो आगे आये ही यह भी घाघरा चोली के साथ तलवारें लेकर सामने आ गयीं। इतिहासकार बताते हैं कि 6 जून की घटना की पूरी रुप रेखा शीलादेवी की ही देन थी। इस अमर सेनानी ने ही मऊ तहसील में कार्यरत अंग्रेज अफसरों को उनके कार्यालयों व निवास से घसीटकर बाहर निकाला था। बाद में दस अंग्रेज पुरुषों को फांसी पर लटका दिया। बाद में सरकारी सामग्री की लूटपाट करते आजादी के दीवाने बबेरू से केन को पकड़कर बांदा पहुंचे और आंदोलन गतिशील हो गया।

अनाज के दानों पर बनाये वन व झरने

Jun 06, 02:22 am
चित्रकूट। धर्मनगरी के कलाकार एक बार फिर अपनी प्रतिभा की बानगी से लोगों को चमकृत करने का काम कर रहे हैं। मामला चुनाव का हो या आतंकवाद का या फिर पर्यावरण का। यहां की मिट्टी के कलाकार जमाने के साथ अपनी छाप छोड़ने का अवसर छोड़ना तो जैसे जानते ही नही। पेट की तिल्ली का दर्द सहने के कारण देश के राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले विनय कुमार साहू ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक बार फिर अपनी प्रतिभा की बानगी प्रस्तुत की।
अपने निवास लक्ष्मणपुरी में ही चौदह प्रकार के अनाजों के साथ प्रयोग कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प एक बार फिर दोहराया। उसकी कलाकृतियां प्राकृतिक दृश्यों से भरी हुई थी। इनमें नदी, पहाड़, झरने और वन व सुन्दर लताओं वाले पेड़ दिखाई दे रहे थे। प्रकृति के सौंदर्य को प्रस्तुत करने का तरीका उसने विभिन्न तरह के फूलों का चुना। दिन भर विनय की बनाई कलाकृतियों को देखने वालों का तांता लगा रहा। इसमें मुख्य रुप से ग्रामोदय विवि के कला प्राध्यापक डा. प्रसन्न पाटकर, भारतीय साहित्यिक संस्थान के अध्यक्ष बी बी सिंह, छेदी लाल तिवारी, आनंद राव तैलंग, पंकज अग्रवाल, जीतेन्द्र उपाध्याय आदि सैकड़ों लोग पहुंचे। कलाकृतियों को बनाने वाले कलाकार विनय साहू ने बताया कि यह काम उसने देश के मशहूर पर्यावरणविद् डा. जी डी अग्रवाल की प्रेरणा से किया है। इस काम में चना, गेंहू, चावल, मूंग दाल, मसूर दाल, चना दाल, इलायची, लौंग, सुपाड़ी, सरसों, तिल, मेथी, लहसुन, धनिया, नमक, अंडे के खोल के अंदर प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया।