गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Tuesday, September 29, 2009

पर्यावरण से खिलवाड़ न करें

Sep 29, 11:20 pmबताएं
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चित्रकूट। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नही दी जा सकती। चाहे वह कोई भी हो। पर्यावरण बचाने के लिए हर व्यक्ति को अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी। इसके लिये सरकार के साथ ही सभी जिम्मेदार लोगों को आगे आना पड़ेगा। यह बातें काशी से एक दिवसीय दौरे पर यहां आये विश्व व्यापी गंगा सेवा अभियान के संयोजक स्वामी अविमुक्तानंद सरस्वती जी महाराज ने पर्यटक आवास गृह पर कहीं।

उन्होंने कहा कि गंगा व्यापार की वस्तु नही है। इसका व्यापार किसी भी दशा में उत्तरांचल सरकार को नही करने दिया जायेगा। कुंभ के समय बोतलों में बंद पानी को बेचने की उनकी योजना का हर स्तर पर साधू समाज विरोध करेगा। उत्तरांचल सरकार पर आरोप लगाते हुये कहा कि एक तरफ बांध बनाकर सरकार पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है दूसरी तरफ गंगा के पानी को बेचने की योजना बना रही है। उन्होंने मंदाकिनी को गंगा का ही स्वरुप करार देते हुये कहा कि देश की समस्त नदियों व जलाशयों की हिफाजत करना हर एक व्यक्ति का नैतिक दायित्व है। उन्होंने गंगा को राष्ट्र नदी घोषित करने के लिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बधाई देते हुये कहा कि आगामी पांच अक्टूबर को गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की प्रथम बैठक में गंगा के संरक्षण के लिये ठोस निर्णय लेने चाहिये।

Sunday, September 27, 2009

हिंदी की सबसे बड़ी सेवा हिंदी में छपने वाले अखबार कर रहे हैं

चित्रकूट। भले ही पूरे देश में हिंदी, हिंदु और हिंदुस्तान का नारा वर्षो से जोरों से लगाया जा रहा हो पर सच्चाई यह है कि इसकी सेवा करने का दावा करने वालों पर भी अंग्रेजियत का भूत सवार है। न तो अब कवि सम्मेलन ही ज्यादा होते दिखाई देते हैं और न ही युवा पीढ़ी को हिंदी से कोई ज्यादा सरोकार समझ में आता है। इसका साफ कारण यह है कि हिंदुस्तान की बिंदी कहे जाने वाली हिंदी को भले ही राष्ट्रभाषा का दर्जा पूर्ण रूप से मिला हो पर लगभग हर कार्यालय के साथ घरों में अंग्रेजी का प्रयोग व अंग्रेजियत की बयार बहती दिखाई देती है। ज्यादातर लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते देखे जाते हैं।

वर्षो से हिंदी की कविताओं के माध्यम से सेवा कर रही सावित्री श्रीवास्तव 'चित्रा' कहती हैं कि हमारे अपनों ने ही हिंदी को अपने देश में उपेक्षित कर रखा है। भले ही हिंदी का ढिंढोरा पूरे देश में पीटा जाता हो पर वास्तव में हिंदी के दर्शन साहित्य के सम्मेलनों में ही होते हैं। आज अंग्रेजी के छपे नावेल बाजारों में आराम से बिक जाते हैं जबकि हिंदी की छपी पुस्तकों को खाली वाचनालयों में ही जगह मिलती है।
चित्रकूट इंटर कालेज के प्रवक्ता आनंद राव तैलंग की मातृभाषा वैसे तो मराठी है पर वे यहां पर पूरी तरह से हिंदी में ही काम करते हैं। कहते है कि हिंदी से ज्यादा बेहतर भाषा दूसरी नही है। भले ही हम अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ायें पर मुख्य भाषा के रूप में उन्हें हिंदी की शिक्षा देना जरूरी है।
भारतीय साहित्यिक संस्थान के निदेशक बलबीर सिंह ने कहा कि वैश्वीकरण के इस हाई प्रोफाइल युग में अंग्रेजी को अनिवार्य मानकर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं। जबकि सच्चाई यह भी है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र कहीं पीछे नही रहते।
शिक्षक लल्लू राम शुक्ल ने कहा कि ऐसा नही है कि केवल अंग्रेजी ही लोगों के जीवन का स्तर सुधार सकती है। मंदी की मार से ग्रसित पूरे विश्व के सामने हिंदी भी एक ऐसे विकल्प के रूप में सामने आ रही है जिसको दूसरे देशों में सम्पर्क का बड़ा माध्यम माना जा रहा है।
जिला विद्यालय निरीक्षक सी एल चौरसिया ने कहा कि यूरोप के देशों के साथ ही एशिया, अफ्रीका के ही तमाम देशों में हिंदी के पठन व पाठन का काम काफी तेजी से चल रहा है। अब तो कम्प्यूटर में साफ्टवेयर भी हिंदी में आ चुका है और विदेशों में हिंदी अखबारों के नेट संस्करण भी काफी लोकप्रिय है। कई देशों में बसे भारतीय भले ही वहां पर अंग्रेजी को अपने संपर्क के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हो पर वे भारत के अखबारों में हिंदी के ही अखबारों को पढ़ना पसंद करते हैं। आज अगर हिंदी की सबसे ज्यादा सेवा कोई कर रहा है तो वह हिंदी में छपने वाले अखबार ही हैं।

भगवान राम के आर्शीवाद का फल इलेक्ट्रा चित्रकूटसिन्स

संदीप रिछारिया
चित्रकूट। 'धर्म न अर्थ न काम रुचि, गति न चहौं निर्वाण, जन्म-जन्म श्री राम पद यहि वर मागौं आन।' यह एक ऐसा वरदान जो किसी और ने नही बल्कि एक ऐसे राक्षस ने मांगा था जिसके कारण मां सीता के पैरों में चुभन के साथ ही रक्त निकला था, पर इसे क्या कहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने उसे वरदान तो दिया ही साथ ही उस तपस्थली को एक ऐसी जड़ी बूटी से भर दिया जिसको उपयोग कर लोग दमा, स्वांस और पुरानी खांसी जैसी असाध्य बीमारी से छुटकारा पा जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध तपोस्थली चित्रकूट पर शरद पूर्णिमा की रात देश व विदेश से आने वाले इन रोगों के रोगी इस बात के गवाह हैं कि उन्हें यहां पर दमा, स्वांस और पुरानी खांसी जैसी बीमारी से निजात मिली है।

देहाती भाषा में बोली जाने वाली मेढ़की पूरे देश में निर्गुन्डी के रूप में जानी जाती है पर यहां पर जमीन से अपने आप पैदा होने वाली निर्गुन्डी अपने आप में विलक्षण है। इसकी खोज तो वैसे परिक्षेत्र में रहने वाले ऋषि मुनियों ने सदियों पहले कर ली थी और वे इससे लोगों की बीमारी का इलाज किया करते थे। समय के बीतने और आयुर्वेद को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने में अग्रणी रहे वैद्यनाथ कंपनी के संस्थापक आचार्य स्व. राम नारायण शर्मा ने सबसे पहले आरोग्य प्रकाश में इस जड़ी बूटी का उल्लेख किया था। इस बात की पुष्टि बांदा जिले के नरैनी दिव्य चिकित्सा भवन नाम से आयुर्वेद केंद्र चला रहे आयुष के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैद्य डा. मदन गोपाल बाजपेई ने बताया कि सन् 1963 में आरोग्य प्रकाश में वैद्य जी ने इस अनोखी जड़ी का वर्णन करते हुये लिखा है कि यह ही चरक का मुख्य सूत्र है। इसका उपयोग करने से मनुष्य आजीवन निरोगी रह सकता है। अत्यंत पौष्टिक पीले रंग का यह कंद वीर्य वर्धक, वात नाशक होता है। चित्रकूट परिक्षेत्र के जंगलों में पाया जाना वाला यह कंद अत्यंत विलक्षण है।
इस बात की तस्दीक आधुनिक विज्ञान के लोगों ने भी दीन दयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत काम कर रहे आरोग्य धाम की रस शाला के प्रबंधक डा. विजय प्रताप सिंह कहते हैं नेशनल बाटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिकों ने इसको जांच परख कर नाम इलेक्ट्रा चित्रकूटसिन्स नाम दिया। निगुन्डी का सहजीवी यह पौधा केवल चित्रकूट परिक्षेत्र में मिलता है। बात रोग के साथ ही चर्म रोग में इसका मुख्य उपयोग किया जाता है। उन्होंने सितम्बर से फरवरी के मध्य पाये जाने वाले इस पौधे के बारे में बताया कि वैसे तो यह स्फटिक शिला के आसपास काफी मात्रा में होता है पर जिले में अनुसुइया आश्रम, सूर्य कुंड, बरगढ़ व लोढ़वारा आदि जगहों पर भी पाया जाता है। बताया कि इस जड़ी पर अभी दीन दयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। समय आने पर इसके और भी औषधीय प्रभावों की जानकारी हो सकेगी।

रामलीला मैदान में लगे गंदगी के ढेर

चित्रकूट। भले ही मुख्यालय के तीन स्थानों पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र को लीलाओं के माध्यम से दिखाये जाने का कार्यक्रम शुरू हो चुका हो पर नगर पालिका परिषद अभी भी नींद में सो रही है। पालिका केवल शाम के समय लीला होने के कुछ घंटों पहले ही सफाई के नाम पर खाना पूरी करवा कर अपने काम की इतिश्री कर रही है।

यह नजारा एक नही बल्कि शंकर बाजार, पुरानी बाजार और नया बाजार तीनों जगहों की राम लीलाओं पर साफ दिखाई देता है। तीनों स्थानों पर अतिक्रमण होने से लीला देखने वालों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पुरानी बाजार राम लीला कमेटी के बसन्त राव गोरे कहते हैं कि गनीमत है कि कम से कम पुरानी बाजार की राम लीला कमेटी के पास अपना भवन और मैदान है। जहां पर अब सीमेंट के ईट लग चुके हैं जिसकी वजह से गंदगी ज्यादा नही होती पर अभी भी कुछ लोग नगर पालिका की जमीन के अंदर ही डिब्बा रखकर अतिक्रमण करे हैं। जानवरों को मैदान पर बांधकर लोग गंदा कर देते हैं। रामलीला कमेटी के महेन्द्र अग्रवाल कहते हैं कि पिछली बार राम लीला के ठीक सामने खुले देशी शराब के ठेके को लेकर तमाम विरोध किया गया जिस पर एसडीएम ने उसे हटाने के आदेश भी कर दिये थे पर आबकारी विभाग के इंसपेक्टर द्वारा उसे फिर से खुलवा दिया गया। अब हाल यह है कि लीला के समय तमाम शराबी पंडाल में घुस आते हैं और उत्पात मचाते हैं।

अतिक्रमण से छोटा हुआ मैदान, कैसे जलेगा रावण !

चित्रकूट। एक बार फिर लंकाधिपति रावण के दहन के लिए जगह छोटी हो चुकी है। शहर के धुस मैदान में अतिक्रमणकारियों ने अपने हाथ फैलाकर रावण को फूंकने लिए इस जगह को इतना छोटा कर दिया है कि शायद यहां पर विजयादशमी पर अब कुछ सैकड़ा लोग ही रावण दहन के गवाह बन पायें।
गौरतलब है कि लगभग बीस साल पहले मुख्यालय में खेलने व खेल तमाशों के साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव के अवसरों दशहरा में रावण दहन व मुहर्रम में ताजियों का मिलन का केंद्र धुस का मैदान ही हुआ करता था। यहां पर ही बड़े-बडे़ राजनैतिक दलों की सभायें भी हुआ करती थी। वैसे सभायें तो अभी भी होती हैं पर नगर पालिका परिषद द्वारा यहां पर सब्जी मंडी को लगवाने के बाद इस मैदान की हालत खराब हो गयी। सब्जी फरोशों ने अपनी-अपनी दुकानें जहां एक तरफ बना डाली वही अतिक्रमण के कारण मैदान बिल्कुल सिकुड़ सा चुका है। अभी हाल के दिनों में नगर पालिका परिषद ने इस मैदान के प्रमुख भाग को कूड़ा दान में तब्दील कर शहर भर के कूड़े को डालने का काम करना प्रारंभ कर दिया है। इसके साथ ही जल निगम अस्थायी खंड यहां पर विशालकाय पानी की टंकी का निर्माण भी कर रहा है। जिसकी वजह से बालू व अन्य सामग्री रावण के दहन में बाधक बन रही है। पुरानी बाजार राम लीला कमेटी के प्रबंधक श्याम गुप्ता व सचिव विजय मिश्र इस मामले पर तीखे नाराज है। उन्होंने नगर पालिका परिषद की कार्यप्रणाली पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा कि नगर पालिका परिषद के लोग सिर्फ कमाई देखते हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नही कि यहां कितने धार्मिक और ऐतिहासिक के साथ ही राजनैतिक जलसे होते रहे हैं, पर नगर पालिका परिषद ने इस मैदान को कमाई के चक्कर में छोटा कर दिया है।

Saturday, September 26, 2009

विलक्षण तपोस्थली आज भी छली जा रही हैं शबरी राम कहानी में

चित्रकूट। भले ही लोग अब चित्रकूट को धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के रूप में जान गये हों पर आज भी यह विलक्षण स्थान अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर जगह पाने को तरस रहा है। ऐसा नही है कि इसको अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने के प्रयास नही हुये पर दो प्रदेशों के बीच बंटे होने के कारण इस धर्मनगरी का समुचित विकास नही हो पाया। विशेष प्रकार की विशेषताओं को अपने अंत: स्थल में समेटे चित्रकूट आज भी खुद में एक किवदंतियों भरी जगह के रूप में अविरल खड़ा हुआ है।
वैसे यहां की नैसर्गिक प्राकृतिक सुषमा अपने आपमें विलक्षण ही है। कहीं घने जंगल है तो कहीं जल प्रपात, कहीं गिरि कानन हैं तो कहीं अनोखी प्रकृति चित्रण से भरपूर गुफायें। इसी परिक्षेत्र में बीस हजार साल पुराने भित्ति चित्र हैं तो भगवान कामतानाथ के साथ मां अनुसुइया के आश्रम व विलक्षण योगिनी शिला है। योगियों, तपस्वियों, संतों महात्माओं की तप स्थली इस भूमि पर वर्ष में करोड़ों लोग इस विलक्षण तीर्थ पर आकर दर्शन लाभ के साथ ही मां मंदाकिनी में स्नान का सुख उठाते हैं।
सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश संगम सीमा पर मौजूद इस विशेष क्षेत्र को विश्व पर्यटन में अब तक जगह क्यों नही मिल सकी। इसका साफ कारण इसका दो प्रदेशों में बंटा होना जान पड़ता है। आधे से ज्यादा सुरम्य तपोस्थल मध्य प्रदेश में हैं तो आधे के लगभग ही उत्तर प्रदेश में हैं।
लगभग दस साल पहले जब पद्म श्री नाना जी देशमुख के कहने पर उद्योगपति बसंत पंडित ने यहां पर हवाई पट्टी बनाने का प्रयास किया तो डाकुओं के चलते उन्हें काम बंद करना पड़ा। बाद में सपा शासन काल में दौरान यह अधूरा काम सरकार को दे दिया गया। सरकार ने भी इसमें रूचि ली और तीन किलोमीटर की हवाई पट्टी के निर्माण होने के बाद बिल्डि़ंग इत्यादि बनाने का ठेका राइट्स कम्पनी को दे दिया। इसे विकसित करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार को दी गई। मूलभूत आवश्यकताओं में बिजली, पानी और सड़क थी। जिलाधिकारी ने पहल कर सड़क व बिजली का प्रबंध तो तुरन्त करा दिया पर पानी के लिये जल संस्थान के अधिकारियों ने कहा कि जब तक कोई भी काम वहां पर चालू न हो जाये तब तक पाइप डालना उचित नही होगा। फिलहाल इस काम में कोई भी प्रगति नही हुई। गौर करने लायक बात यह है कि आज तक इस मामले को लेकर किसी भी जनप्रतिनिधि ने भी कोई पहल नही की।
दूसरा एक बड़ा काम एनडीए के कार्यकाल में हुआ। यहां से होकर गुजरने वाले मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दे दिया गया, पर उसको यह दर्जा देना न देना किसी काम का नही रहा। सरकारों की अदला बदली की भेंट यह सड़क चढ़ी। दो डिवीजनों में बंटी इस सड़क का हाल यह है कि सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालु परेशान हो कह उठते हैं कि इतनी विलक्षण जगह और इतनी खराब सड़क।
इस विलक्षण तीर्थ से केवल एक सौ पचहत्तर किलोमीटर दूर खजुराहो है। विदेशी पर्यटकों को खजुराहो से चित्रकूट लाने व ले जाने के साथ ही यहां के पर्यटकों को खजुराहो भेजने के लिये मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच वार्ता के बाद एक नई सड़क का प्रस्ताव हुआ था। जिससे दोनो पर्यटन स्थलों के बीच की दूरी केवल सौ किलोमीटर होने की आशा थी। लगभग दस सालों के बाद भी नही बनी। अगर यह सड़क बन जाती तो खजुराहों में आने वाले पर्यटक सीधे चित्रकूट से जुड़ जाते।
ऐसा नही है कि यहां पर विकास की घोषणायें नही हुई। लखनऊ, रायबरेली और पूर्वाचल को जोड़ने वाला राजापुर यमुना नदी पुल लटका पड़ा है तो सपा के कार्यकाल में हुई लगभग दो सौ करोड़ की विभिन्न योजनायें कागजों की शोभा बढ़ा रही है।
यहां पर विकास के मुद्दे पर लगभग सभी समाजसेवी व संत-महन्त एक राय हैं। प्रमुख समाजसेवी गया प्रसाद गोपाल कहते हैं यह धरती आज भी शबरी राम कहानी से उबर नही पाई। चिंतन के लिये मुफीद मानकर राष्ट्रीय पार्टियां यहां पर बैठकर चर्चा तो करती हैं और यहां के विकास के लिये बड़े-बडे दावे करते हैं पर सत्ता पर बैठते ही न तो उन्हें चित्रकूट याद आता है न ही यहां की भूमि का विकास।

आपसी भाई चारे की मिशाल है रावण का निर्माण

चित्रकूट। एक बार फिर मरने को तैयार हो रहा है रावण! जी हां हर साल मरने का दर्द समेटने वाला दशानन इस बार भी पूरा ही कर लिया गया, हां अगर अब कुछ शेष है तो वह सिर्फ उस मजाक की वस्तु का सिर जिसे 'गधा' कहते हैं। भले ही पूरे विश्व के लिये रावण बुराई के प्रतीक के रूप में हो पर इनके लिये तो वह पूजा की वस्तु हैं क्योंकि साल में एक बार यह लगभग बीस दिनों तक केवल रावण के पुतले को ही पूरे मनोयोग से बनाने का काम करते हैं। पुश्तों दर पुश्तों से रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने वाले 90 वर्षीय राम रतन प्रजापति भले ही अब उम्र के उस पड़ाव में पहुंच चुके हो जहां से उनका उठना चलना फिरना बिलकुल बंद सा हो पर रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने के लिये उनकी बूढ़ी आंखों की रोशनी अपने आप बढ़ जाती है। वैसे अब इस काम को उनके पुत्र चंद्रपाल, बच्चा और हरिशंकर ने संभाल लिया हो पर उनके फाइनल टच के बिना काम नही होता।
राम रतन बताते हैं कि यह काम उनके पिता गुन्नू से उन्होंने सीखा। इसके पहले उनके बाबा यह काम करते थे। कहते हैं कि जब से कर्वी में रामलीला शुरू हुई तब वहां के पहले प्रबंधक बाबू बिहारी लाल रिछारिया व काशी नाथ गोरे उनके पिता बाबा के पास रावण बनवाने आये थे। तब उन्होंने रावण बनाने की दक्षिणा नही ली गई। हां यह बात और है कि लगभग पच्चीस सालों तक जो भी मिला वह मंच पर ही पुरस्कार मिला। बाद के वर्षो में रावण को बनाने के समान पर पैसा लगने के कारण रामलीला से थोड़ी बहुत धनराशि मिलने लगी। आज की तारीख में महंगाई काफी बढ़ चुकी है पर वे रावण को बनाने का काम पैसे के लिये नही बल्कि पूजा समझकर करते हैं।
इसके साथ ही रावण को जलाने में लगने वाली आतिशबाजी लगाकर जलाने का काम भी यहां पर एक ऐसा परिवार कर रहा है जिसे पैसे से नही बल्कि पूरी तरह से शहर की गंगा जमुनी तहजीब और आपसी भाई चारे की चिंता है। यह काम याकूब आतिशबाज का परिवार रामलीला की शुरूआत से ही करता चला आ रहा है। मुन्नन खां, जलील खा, सलीम भाई, शहजादे के साथ ही यह परंपरा अब हक्कू, मुनक्की, फिरोज और अब मोइन खान तक आ पहुंची है। मोइन कहता है कि रावण को आग में जलाने का काम तो गौरव का है। अच्छाई पर बुराई का प्रतीक रावण जलाने से उसे आर्शीवाद मिलेगा ऐसी उसकी मान्यता है।

Monday, September 14, 2009

पुरानी कोतवाली को बनाया जायेगा पार्क

चित्रकूट। कभी जहां मराठा राजवंश के पेशवा लोगों को दर्शन देने के साथ ही उनके बीच सौहार्द विकसित करने का काम किया करते थे वह इमारत अब बदहाल हो चुकी है। हालांकि डीएम ने इस ऐतिहासिक इमारत को कब्जा धारकों से मुक्त कराने के आदेश दिये हैं।
इस बेशकीमती इमारत का इतिहास लगभग छह सौ साल पुराना बताया जाता है। कालिंजर में शेरशाह सूरी की मौत के बाद जब मुगलों व पेशवाओं के बीच बेसिन की संधि हुई तो चित्रकूट के मुहाने का क्षेत्र अमृत नगर उन्हें जागीर के रूप में मिला। जबकि चित्रकूट सहित आसपास की रियासतें कालिंजर राजवंश के नजदीकी रहे चौबे परिवार को मिली। यहां पर आने के बाद पेशवा राजवंश के अमृत राव ने तमाम बावलियों के साथ ही मंदिर व कुओं का निर्माण कराया। उन्होंने पुरानी कोतवाली वाली इमारत अपने आम जनता के दर्शन व मुकदमे सुनने के लिए बनायी। अंग्रेजों का समय आने पर जब पेशवाओं का पतन हुआ तो उनके रहने की जगह नदी किनारे के महल को छोड़कर सभी संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया। पुरानी बारादरी को अंग्रेजों ने कोतवाली बना दरोगा को बैठा दिया। कोतवाली का भवन बनने के बाद इस विशालकाय इमारत में सबसे पहले पुलिस फिर अध्यापकों और फिर राजस्व विभाग के लोगों ने अवैध कब्जे कर डाले। कब्जा धारकों ने इस ऐतिहासिक इमारत के साथ छेड़छाड़ कर मनमाने ढंग से निर्माण किया। कई अधिकारियों ने यहां के कब्जों को हटाने का प्रयास किया। पूर्व जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह ने यहां पर यात्री निवास का निर्माण करवाया, पर यहां पर यात्री निवास बनने के बाद यहां कुछ दिन बाद कब्जा हो गया। अब प्रशासन ने यहां कब्जे हटवा विकास प्राधिकरण को पार्क बनाने का प्रस्ताव दिया है जिससे लोगों में खुशी है।

मुस्लिम लगाते परिक्रमा तो हिंदू पढ़ते नमाज

Sep 12, 11:14 pm
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चित्रकूट। ऐसा पौराणिक तीर्थ स्थल जहां पर कभी संत तुलसी के साथ ही अब्दुल रहीम खान खाना ने अपनी रचनाओं को जन्म दिया और भगवान की भक्ति की। यहां पर ऐसे इंसान आज भी रहते हैं जो मजहब की सीमाओं से नही बंधे। उनके लिए तो मानवता ही जुनून है और वे भाईचारे को कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
मुख्यालय के पुरानी बाजार के रहने वाले मो. आरिफ, हक्कल, अजहर हुसैन, सलीम व चीनी को इस बात का गर्व है कि वे भारतीय हैं और मजहब की सीमाओं ने नहीं बंधे। वे कहते हैं कि अयोध्या या गोधरा के दंगों से उन्हें नहीं मतलब। उन्हें तो चित्रकूट की मनोरमता भाती है। यहां पर त्योहार किसी का हो उनका काम तो भगवान की सेवा करना है। भगवान अल्लाह हो या राम इससे कोई मतलब नही। सुनील भारतीय के पिता का नाम सुलेमान है तो भाई फिरोज। इस शख्स की कहानी यह है कि इसे नमाज पढ़ने में भी उतना ही आनंद आता है जितना स्वामी कामतानाथ की परिक्रमा लगाने में। वह कहता है कि आंतरिक सुकून पाने के लिए रास्ते बना दिये गये हैं। दोनो रास्ते आंतरिक सुकून के साथ ही नेकी का पाठ पढ़ाते हैं। रमा दत्त मिश्र तो लगभग 30 सालों से ईद व बकरीद की नमाज एक साथ पढ़ रहे हैं। नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया तरौंहा की मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष हैं तो मोहम्मद सिद्दीकी तरौंहा की रामलीला कमेटी के मुख्य कर्ताधर्ता हैं। पुरानी बाजार की रामलीला में रावण को वर्षो से जलाने का काम मो. लतीफ का परिवार कर रहा है तो यहां की कमेटी में मु. इस्माइल की मुख्य भागीदारी रहती है। मुहर्रम के जुलूस में वैसे तो ढोल बजाते तमाम हिंदू युवा दिखाई दे जाते हें पर चालीस बसंत पार कर चुके महेन्द्र अग्रवाल, राज कुमार केशरी, प्रेम केशरवानी, राजेश सोनी, शरद रिछारिया सहित तमाम ऐसे नाम हैं जो छबील आदि लगाकर लोगों को शरबत, चाय व खिचड़ा खिलाने का काम करते हैं। यहां पर ब्राह्मण गौतम परिवार मुहर्रम के मौके पर नाथ बाबा की सवारी रखता है। इसे मुख्यालय में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। इस सवारी की सेवा करने वाले भी हिंदू हैं। जिनमें छाऊ लाल व प्रमोद कुमार प्रमुख हैं। ऐसा नही है कि खाली तीज त्योहारों तक ही यहां पर भाई चारे की मिशाल हो। किसी भी मृत आदमी की मिट्टी न बरबाद होने पाये इसके लिये लगभग पन्द्रह साल पहले पुरानी बाजार में मुक्ति धाम समिति बनाई गई थी। जिसमें हिंदुओं के साथ ही मुसलमानों की भी भागीदारी अच्छी संख्या में हैं। कोई भी लावारिस लाश के मिलने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार कर दिया जाता है।