गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Saturday, September 26, 2009

विलक्षण तपोस्थली आज भी छली जा रही हैं शबरी राम कहानी में

चित्रकूट। भले ही लोग अब चित्रकूट को धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के रूप में जान गये हों पर आज भी यह विलक्षण स्थान अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर जगह पाने को तरस रहा है। ऐसा नही है कि इसको अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने के प्रयास नही हुये पर दो प्रदेशों के बीच बंटे होने के कारण इस धर्मनगरी का समुचित विकास नही हो पाया। विशेष प्रकार की विशेषताओं को अपने अंत: स्थल में समेटे चित्रकूट आज भी खुद में एक किवदंतियों भरी जगह के रूप में अविरल खड़ा हुआ है।
वैसे यहां की नैसर्गिक प्राकृतिक सुषमा अपने आपमें विलक्षण ही है। कहीं घने जंगल है तो कहीं जल प्रपात, कहीं गिरि कानन हैं तो कहीं अनोखी प्रकृति चित्रण से भरपूर गुफायें। इसी परिक्षेत्र में बीस हजार साल पुराने भित्ति चित्र हैं तो भगवान कामतानाथ के साथ मां अनुसुइया के आश्रम व विलक्षण योगिनी शिला है। योगियों, तपस्वियों, संतों महात्माओं की तप स्थली इस भूमि पर वर्ष में करोड़ों लोग इस विलक्षण तीर्थ पर आकर दर्शन लाभ के साथ ही मां मंदाकिनी में स्नान का सुख उठाते हैं।
सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश संगम सीमा पर मौजूद इस विशेष क्षेत्र को विश्व पर्यटन में अब तक जगह क्यों नही मिल सकी। इसका साफ कारण इसका दो प्रदेशों में बंटा होना जान पड़ता है। आधे से ज्यादा सुरम्य तपोस्थल मध्य प्रदेश में हैं तो आधे के लगभग ही उत्तर प्रदेश में हैं।
लगभग दस साल पहले जब पद्म श्री नाना जी देशमुख के कहने पर उद्योगपति बसंत पंडित ने यहां पर हवाई पट्टी बनाने का प्रयास किया तो डाकुओं के चलते उन्हें काम बंद करना पड़ा। बाद में सपा शासन काल में दौरान यह अधूरा काम सरकार को दे दिया गया। सरकार ने भी इसमें रूचि ली और तीन किलोमीटर की हवाई पट्टी के निर्माण होने के बाद बिल्डि़ंग इत्यादि बनाने का ठेका राइट्स कम्पनी को दे दिया। इसे विकसित करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार को दी गई। मूलभूत आवश्यकताओं में बिजली, पानी और सड़क थी। जिलाधिकारी ने पहल कर सड़क व बिजली का प्रबंध तो तुरन्त करा दिया पर पानी के लिये जल संस्थान के अधिकारियों ने कहा कि जब तक कोई भी काम वहां पर चालू न हो जाये तब तक पाइप डालना उचित नही होगा। फिलहाल इस काम में कोई भी प्रगति नही हुई। गौर करने लायक बात यह है कि आज तक इस मामले को लेकर किसी भी जनप्रतिनिधि ने भी कोई पहल नही की।
दूसरा एक बड़ा काम एनडीए के कार्यकाल में हुआ। यहां से होकर गुजरने वाले मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दे दिया गया, पर उसको यह दर्जा देना न देना किसी काम का नही रहा। सरकारों की अदला बदली की भेंट यह सड़क चढ़ी। दो डिवीजनों में बंटी इस सड़क का हाल यह है कि सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालु परेशान हो कह उठते हैं कि इतनी विलक्षण जगह और इतनी खराब सड़क।
इस विलक्षण तीर्थ से केवल एक सौ पचहत्तर किलोमीटर दूर खजुराहो है। विदेशी पर्यटकों को खजुराहो से चित्रकूट लाने व ले जाने के साथ ही यहां के पर्यटकों को खजुराहो भेजने के लिये मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच वार्ता के बाद एक नई सड़क का प्रस्ताव हुआ था। जिससे दोनो पर्यटन स्थलों के बीच की दूरी केवल सौ किलोमीटर होने की आशा थी। लगभग दस सालों के बाद भी नही बनी। अगर यह सड़क बन जाती तो खजुराहों में आने वाले पर्यटक सीधे चित्रकूट से जुड़ जाते।
ऐसा नही है कि यहां पर विकास की घोषणायें नही हुई। लखनऊ, रायबरेली और पूर्वाचल को जोड़ने वाला राजापुर यमुना नदी पुल लटका पड़ा है तो सपा के कार्यकाल में हुई लगभग दो सौ करोड़ की विभिन्न योजनायें कागजों की शोभा बढ़ा रही है।
यहां पर विकास के मुद्दे पर लगभग सभी समाजसेवी व संत-महन्त एक राय हैं। प्रमुख समाजसेवी गया प्रसाद गोपाल कहते हैं यह धरती आज भी शबरी राम कहानी से उबर नही पाई। चिंतन के लिये मुफीद मानकर राष्ट्रीय पार्टियां यहां पर बैठकर चर्चा तो करती हैं और यहां के विकास के लिये बड़े-बडे दावे करते हैं पर सत्ता पर बैठते ही न तो उन्हें चित्रकूट याद आता है न ही यहां की भूमि का विकास।

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