चित्रकूट। एक बार फिर मरने को तैयार हो रहा है रावण! जी हां हर साल मरने का दर्द समेटने वाला दशानन इस बार भी पूरा ही कर लिया गया, हां अगर अब कुछ शेष है तो वह सिर्फ उस मजाक की वस्तु का सिर जिसे 'गधा' कहते हैं। भले ही पूरे विश्व के लिये रावण बुराई के प्रतीक के रूप में हो पर इनके लिये तो वह पूजा की वस्तु हैं क्योंकि साल में एक बार यह लगभग बीस दिनों तक केवल रावण के पुतले को ही पूरे मनोयोग से बनाने का काम करते हैं। पुश्तों दर पुश्तों से रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने वाले 90 वर्षीय राम रतन प्रजापति भले ही अब उम्र के उस पड़ाव में पहुंच चुके हो जहां से उनका उठना चलना फिरना बिलकुल बंद सा हो पर रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने के लिये उनकी बूढ़ी आंखों की रोशनी अपने आप बढ़ जाती है। वैसे अब इस काम को उनके पुत्र चंद्रपाल, बच्चा और हरिशंकर ने संभाल लिया हो पर उनके फाइनल टच के बिना काम नही होता।
राम रतन बताते हैं कि यह काम उनके पिता गुन्नू से उन्होंने सीखा। इसके पहले उनके बाबा यह काम करते थे। कहते हैं कि जब से कर्वी में रामलीला शुरू हुई तब वहां के पहले प्रबंधक बाबू बिहारी लाल रिछारिया व काशी नाथ गोरे उनके पिता बाबा के पास रावण बनवाने आये थे। तब उन्होंने रावण बनाने की दक्षिणा नही ली गई। हां यह बात और है कि लगभग पच्चीस सालों तक जो भी मिला वह मंच पर ही पुरस्कार मिला। बाद के वर्षो में रावण को बनाने के समान पर पैसा लगने के कारण रामलीला से थोड़ी बहुत धनराशि मिलने लगी। आज की तारीख में महंगाई काफी बढ़ चुकी है पर वे रावण को बनाने का काम पैसे के लिये नही बल्कि पूजा समझकर करते हैं।
इसके साथ ही रावण को जलाने में लगने वाली आतिशबाजी लगाकर जलाने का काम भी यहां पर एक ऐसा परिवार कर रहा है जिसे पैसे से नही बल्कि पूरी तरह से शहर की गंगा जमुनी तहजीब और आपसी भाई चारे की चिंता है। यह काम याकूब आतिशबाज का परिवार रामलीला की शुरूआत से ही करता चला आ रहा है। मुन्नन खां, जलील खा, सलीम भाई, शहजादे के साथ ही यह परंपरा अब हक्कू, मुनक्की, फिरोज और अब मोइन खान तक आ पहुंची है। मोइन कहता है कि रावण को आग में जलाने का काम तो गौरव का है। अच्छाई पर बुराई का प्रतीक रावण जलाने से उसे आर्शीवाद मिलेगा ऐसी उसकी मान्यता है।
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