गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Sunday, September 27, 2009

हिंदी की सबसे बड़ी सेवा हिंदी में छपने वाले अखबार कर रहे हैं

चित्रकूट। भले ही पूरे देश में हिंदी, हिंदु और हिंदुस्तान का नारा वर्षो से जोरों से लगाया जा रहा हो पर सच्चाई यह है कि इसकी सेवा करने का दावा करने वालों पर भी अंग्रेजियत का भूत सवार है। न तो अब कवि सम्मेलन ही ज्यादा होते दिखाई देते हैं और न ही युवा पीढ़ी को हिंदी से कोई ज्यादा सरोकार समझ में आता है। इसका साफ कारण यह है कि हिंदुस्तान की बिंदी कहे जाने वाली हिंदी को भले ही राष्ट्रभाषा का दर्जा पूर्ण रूप से मिला हो पर लगभग हर कार्यालय के साथ घरों में अंग्रेजी का प्रयोग व अंग्रेजियत की बयार बहती दिखाई देती है। ज्यादातर लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते देखे जाते हैं।

वर्षो से हिंदी की कविताओं के माध्यम से सेवा कर रही सावित्री श्रीवास्तव 'चित्रा' कहती हैं कि हमारे अपनों ने ही हिंदी को अपने देश में उपेक्षित कर रखा है। भले ही हिंदी का ढिंढोरा पूरे देश में पीटा जाता हो पर वास्तव में हिंदी के दर्शन साहित्य के सम्मेलनों में ही होते हैं। आज अंग्रेजी के छपे नावेल बाजारों में आराम से बिक जाते हैं जबकि हिंदी की छपी पुस्तकों को खाली वाचनालयों में ही जगह मिलती है।
चित्रकूट इंटर कालेज के प्रवक्ता आनंद राव तैलंग की मातृभाषा वैसे तो मराठी है पर वे यहां पर पूरी तरह से हिंदी में ही काम करते हैं। कहते है कि हिंदी से ज्यादा बेहतर भाषा दूसरी नही है। भले ही हम अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ायें पर मुख्य भाषा के रूप में उन्हें हिंदी की शिक्षा देना जरूरी है।
भारतीय साहित्यिक संस्थान के निदेशक बलबीर सिंह ने कहा कि वैश्वीकरण के इस हाई प्रोफाइल युग में अंग्रेजी को अनिवार्य मानकर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं। जबकि सच्चाई यह भी है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र कहीं पीछे नही रहते।
शिक्षक लल्लू राम शुक्ल ने कहा कि ऐसा नही है कि केवल अंग्रेजी ही लोगों के जीवन का स्तर सुधार सकती है। मंदी की मार से ग्रसित पूरे विश्व के सामने हिंदी भी एक ऐसे विकल्प के रूप में सामने आ रही है जिसको दूसरे देशों में सम्पर्क का बड़ा माध्यम माना जा रहा है।
जिला विद्यालय निरीक्षक सी एल चौरसिया ने कहा कि यूरोप के देशों के साथ ही एशिया, अफ्रीका के ही तमाम देशों में हिंदी के पठन व पाठन का काम काफी तेजी से चल रहा है। अब तो कम्प्यूटर में साफ्टवेयर भी हिंदी में आ चुका है और विदेशों में हिंदी अखबारों के नेट संस्करण भी काफी लोकप्रिय है। कई देशों में बसे भारतीय भले ही वहां पर अंग्रेजी को अपने संपर्क के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हो पर वे भारत के अखबारों में हिंदी के ही अखबारों को पढ़ना पसंद करते हैं। आज अगर हिंदी की सबसे ज्यादा सेवा कोई कर रहा है तो वह हिंदी में छपने वाले अखबार ही हैं।

No comments:

Post a Comment