चित्रकूट। कभी जहां मराठा राजवंश के पेशवा लोगों को दर्शन देने के साथ ही उनके बीच सौहार्द विकसित करने का काम किया करते थे वह इमारत अब बदहाल हो चुकी है। हालांकि डीएम ने इस ऐतिहासिक इमारत को कब्जा धारकों से मुक्त कराने के आदेश दिये हैं।
इस बेशकीमती इमारत का इतिहास लगभग छह सौ साल पुराना बताया जाता है। कालिंजर में शेरशाह सूरी की मौत के बाद जब मुगलों व पेशवाओं के बीच बेसिन की संधि हुई तो चित्रकूट के मुहाने का क्षेत्र अमृत नगर उन्हें जागीर के रूप में मिला। जबकि चित्रकूट सहित आसपास की रियासतें कालिंजर राजवंश के नजदीकी रहे चौबे परिवार को मिली। यहां पर आने के बाद पेशवा राजवंश के अमृत राव ने तमाम बावलियों के साथ ही मंदिर व कुओं का निर्माण कराया। उन्होंने पुरानी कोतवाली वाली इमारत अपने आम जनता के दर्शन व मुकदमे सुनने के लिए बनायी। अंग्रेजों का समय आने पर जब पेशवाओं का पतन हुआ तो उनके रहने की जगह नदी किनारे के महल को छोड़कर सभी संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया। पुरानी बारादरी को अंग्रेजों ने कोतवाली बना दरोगा को बैठा दिया। कोतवाली का भवन बनने के बाद इस विशालकाय इमारत में सबसे पहले पुलिस फिर अध्यापकों और फिर राजस्व विभाग के लोगों ने अवैध कब्जे कर डाले। कब्जा धारकों ने इस ऐतिहासिक इमारत के साथ छेड़छाड़ कर मनमाने ढंग से निर्माण किया। कई अधिकारियों ने यहां के कब्जों को हटाने का प्रयास किया। पूर्व जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह ने यहां पर यात्री निवास का निर्माण करवाया, पर यहां पर यात्री निवास बनने के बाद यहां कुछ दिन बाद कब्जा हो गया। अब प्रशासन ने यहां कब्जे हटवा विकास प्राधिकरण को पार्क बनाने का प्रस्ताव दिया है जिससे लोगों में खुशी है।
Monday, September 14, 2009
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