गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Thursday, February 18, 2010

रामचरित मानस सभी समस्याओं का समाधान


चित्रकूट। 'राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु, तुलसी सुभग सनेह बन श्री रघुवीर विहारु' कुछ ऐसे ही उदाहरण राष्ट्रीय रामायण मेला के सैतीसवें संस्करण के समापन सत्र की यादगार बने। पद्म विभूषण नाना जी देशमुख ने अपने एक लाइन के उद्बोधन में कहा कि भगवान कामतानाथ के सुभार्षीवाद से सभी लोग सानंद हैं और रहेंगे। आचार्य बाबू लाल गर्ग ने डा. लोहिया को याद करते हुये कहा कि रामायण मेले की संकल्पना उनका अपना निजी मत था। सैंतीस पड़ाव पार कर चुका यह मेला अब आने वाले दिनों में इतिहास रचेगा। कहा कि नये युग का सृजन चित्रकूट की धरती से ही होगा। इस मौके पर डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ने कविता के माध्यम से चित्रकूट व नाना जी देशमुख को तमाम उपमाओं से विभूषित किया। समापन के सत्र में पूर्व सांसद भीष्म देव दुबे, डा. श्याम मोहन त्रिपाठी,प्रदुम्न दुबे लालू,डा. वीके जैन आदि लोग मौजूद रहे। समाजसेवी नानाजी देशमुख का स्वागत मेले का कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया व पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र ने किया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम
सोमवार देर शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आगाज महोबा से आये लखन लाल एंड पार्टी ने किया। बेबी बावली ने 'उनके हाथों में लग जायें ताला, जो मइया की ताली न बजावै' से शुरुआत की। रानी सोनी ने 'मोरी छोड़ो न बहियां अवध के सैंया' व रघुवीर सिंह यादव ने राम नाम की माला जपेगा कोई दिल वाला गाया। कर्वी के ललित त्रिपाठी ने ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन व रामाधीन आर्य एंड पार्टी की रेखा राज ने हो जी हरि कित गये नैना लगायके गाया। पवन तिवारी ने गजब कर डालौ री, बरस भये रसिया बडै रसीलै नैना गाया। लखीमपुर खीरी से आई शिखा और राधा ने भाव नृत्य प्रस्तुत किया तो लखनऊ के घनश्याम मिश्र ने होली गीत व आरती गुप्ता ने होली गीतों की प्रस्तुति लोक नृत्यों के माध्यम से दी। कार्यक्रम का संचालन डा. करुणा शंकर द्विवेदी ने किया। इसके बाद वृन्दावन से आयी पं.देवकीनंदन शर्मा की प्रसिद्ध रामलीला व रास मंडली ने धमाल कर दिया। कोप भवन के दृश्यों के साथ ही मंथरा के भाव प्रवण दृश्यों के अलावा राजा दशरथ के विलाप के दृश्यों को काफी वाहवाही मिली।
विद्वत गोष्ठी
बांदा से आये डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ने कहा कि चित्रकूट विश्व शांति का केंद्र है। यह धरती जहां अपने आपमें तमाम अबूझ रहस्यों को छिपाये हुये है वहीं आधुनिक युग में भी लोगों को परिवार के साथ ही प्रकृति के साथ रिश्तों का निर्वहन कैसे करना चाहिये सिखाती है। उन्होंने साफ तौर पर कहा डा. लोहिया ने चित्रकूट को रामायण मेला के रुप में जो उपहार दिया है उसकी तुलना हो ही नही सकती। बिलासपुर से आये डा. बृजेश सिंह ने साकार और निराकार ब्रह्म के द्वन्द का चित्रण कर कहा कि जिस धरती के कण-कण में राम बसते हो वहां पर यह बातें बेमतलब की हैं। रामचरित मानस में मानव की सम्पूर्ण समस्याओं के समाधान हैं। लखनऊ से आये कैलास चंद्र मिश्र ने कहा कि वनवासी राम का चित्रण ही डा. लोहिया के मष्तिष्क में था तभी उन्होंने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित कराने की सोची। डा. विनय कुमार पाठक ,डा. हरि प्रसाद दुबे, डा. छेदी लाल कांसकार, डा. राधा सिंह, डा. देवेन्द्र दत्त, भक्ति प्रभा ने भी अपने विचार रखे। देवी दयाल यादव, घनश्याम मिश्र, राजेश करवरिया राजू, मनोज मोहन गर्ग,प्रशान्त करवरिया प्रिंस, ज्ञान चंद्र गुप्त, राम प्रकाश श्रीवास्तव, मो. यूसुफ, कलीमुद्दीन बेग, भोला राम आदि मौजूद रहे।
इसके पूर्व पहले सत्र की विद्वत गोष्ठी का संचालन डा. सीताराम सिंह'विश्व बंधु' ने किया। इस दौरान राम भरोसे तिवारी, आदित्य प्रकाश, विजय बहादुर त्रिपाठी, सूरजबली, सनत कुमार मिश्र, राम कृष्ण आर्य, अभिलाष शास्त्री, स्वामी राजेश्वरानंद आदि ने अपने विचार रखे।

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