गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Monday, March 29, 2010

यमुना का पानी बुझायेगा जिले की प्यास

चित्रकूट। पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे जिले के लोगो को शायद अब पीने के लिए भरपूर पानी मिल जाये। मऊ ब्लाक के लगभग सभी गांवों में शुद्ध व सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये जल निगम की निर्माण निगम इकाई ने यमुना नदी के दो तटों से पानी को लिफ्ट कर लगभग 101 गांवों में पानी देने की योजना का काम प्रारंभ कर दिया है। अधिशाषी अभियंता जल निगम अस्थायी निर्माण खड राम भरोसे बताते हैं कि मऊ ब्लाक के 40 गांवों में पानी देने की योजना पर काम प्रारंभ हो चुका है। इस योजना की कुल लागत 6254.71 लाख रुपये ही है। इस योजना में पूरब पताई गांव में इन्टेकवेल बनाकर पानी को लिफ्ट किया जायेगा। बरगढ़ मोड़ पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर जल का शोधन किया जायेगा। यहां से 40 गांवों की सप्लाई के लिये पाइप डाला जायेगा। उन्होंने बताया कि इस योजना में सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें जीआई पाइप का इस्तेमाल मेन सप्लाई में नही किया जायेगा। इसके लिये डीआई पाइप डाला जायेगा। हर दो या तीन गांवों के बीच में टंकी बनाई जायेगी। दूसरा प्रस्ताव मऊ कस्बे के पास के घाट से पानी को उठाकर लगभग 61 गांवों को पानी देने की है। इस योजना की लागत 100 करोड़ रुपयों की आयेगी। इसके साथ ही तीसरी योजना यमुना नदी से पानी उठाकर सरैंया होते हुये पाठा के इलाके में पानी देने की है। इस योजना से ऊंचाडीह न्याय पंचायत के तमाम गांवों व मजरों के साथ ही अन्य गांवों को पानी देने की योजना है। इस योजना के लिये अभी सर्वे का काम चल रहा है। मुख्य योजना नगरीय पेयजल पुर्नगठन योजना के अन्तर्गत मुख्यालय में पानी की सप्लाई को 8 एम एल डी से बढ़ाकर 18 एमएलडी करना है। हैंडपंपों के लिये जिम्मेदार विभाग जल निगम के अधिशाषी अभियंता जे पी सिंह कहते हैं कि इस साल उनका नये हैंडपम्पों को लगाने का लक्ष्य 315 का था, जिसके सापेक्ष अब तक 600 से ज्यादा हैंडपम्प लगाये जा चुके हैं। इसके साथ ही लगभग 700 हैंडपम्पों को रीबोर किया जा चुका है।

पर्यटन, पर्यावरण व खेलकूद को नहीं मिला धन

चित्रकूट। भले ही जन प्रतिनिधि यहां जनसभाओं में चित्रकूट को धर्म और पर्यटन का केंद्र बिंदु बताकर शासन से ज्यादा से ज्यादा योजनाएं दिलाने का वादा करते हों मगर हकीकत कुछ और ही है। दरअसल इस साल खेलकूद, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण की मद में धन ही नहीं मिला। हालांकि जिला योजना में हर साल प्रस्ताव पास कर भेजा गया मगर इन योजनाओं को शासन से पैसा नहीं मिला।

वर्तमान वित्तीय वर्ष में फरवरी तक 46 करोड़ तिरसठ लाख पचहत्तर लाख के सापेक्ष अब तक जिले के विभागों को कुल 19 करोड़ उनहत्तर लाख पचासी हजार रुपये मिल चुके हैं। इसमें से 16 करोड अनठानवे लाख छियासी हजार रुपये खर्च हुए हैं। फरवरी तक 86.24 प्रतिशत धनराशि खर्च की जा चुकी है।
अप्रैल 09 में कृषि विभाग, निशुल्क बोरिंग अनुदान, उद्यान विभाग,पशु पालन विभाग, दुग्ध विभाग, मत्स्य विभाग, वन एवं वन्य जीव, सहकारिता,एकीकृत ग्राम्य विकास विभाग, सुखोन्मुख कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, पंचायती राज्य, लघु सिंचाई, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत, खादी एवं ग्रामोद्योग, रेशम विकास, सड़क एवं पुल,पर्यावरण, पर्यटन, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, प्रादेशिक विकास दल, खेलकूद, चिकित्सा एवं जन स्वास्थ्य एलौपेथिक, होम्योपैथिक, नगरीय पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, आवास, समाज कल्याण अनु. जाति, पिछला वर्ग कल्याण, अल्प संख्यक कल्याण, समाज कल्याण सामान्य वर्ग, सेवायोजन, आईटीआई, समाज कल्याण वृद्धावस्था व पारिवारिक लाभ, विकलांग कल्याण, महिला एवं बाल कल्याण व पुष्टाहार आदि विभागों के लिये बजट स्वीकृत किया गया था। इनमें से पुष्टाहार, महिला एवं बाल कल्याण, विकलांग कल्याण,समाज कल्याण वृद्धावस्था व पारिवारिक लाभ, समाज कल्याण सामान्य वर्ग, अल्प संख्यक कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण, समाज कल्याण अनुसूचित जाति, नगरीय पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत, सहकारिता, मत्स्य विभाग, निशुल्क बोरिंग अनुदान में अवमुक्त धन राशि का व्यय कर दिया गया है। जिला अर्थ एवं संख्याधिकारी ने बताया कि हर बार बजट में सभी विभागों के लिए धन का प्रस्ताव भेजा जाता है पर इनमें कुछ को बजट मिलता है तो कई को फूटी कौड़ी नही मिल पाती।

लोकगीत विचारों के संप्रेषण का माध्यम : दद्दू प्रसाद

चित्रकूट। लोक संस्कृति की अनमोल परंपरा को अपने आपमें समेटे लोकलय समारोह का आगाज जितना शानदार हुआ उतना ही जोरदार अंजाम भी दिखा।

सूबे के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने कहा कि बुंदेलखंड के प्राण बुंदेलखंड के लोक गीतों में बसते हैं। यहां के गीतों में बुंदेली जीवन शैली और विविधताओं का समूचा दर्शन देखने को मिलता है। दद्दू प्रसाद ने कलाकारों का आह्वान किया कि वे अपने लोक गीतों के माध्यम से लोगों को नये पेड़ लगाने व पुराने पेड़ों की सेवा करने के साथ ही वर्षा जल संचयन का प्रयास करें। आगे नियमों में परिवर्तन कराकर यह प्रयास किया जायेगा कि मनरेगा के प्रचार-प्रसार में उनका सहयोग लिया जाये। इस दौरान उन्होंने लोक कलाकारों के साथ ही लोक मंगल के काम को आगे बढ़ाने वाले कलम के सिपाहियों को भी सम्मानित किया। सदर विधायक दिनेश मिश्र ने संस्थान की बाउन्ड्री बनवाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसे आयोजन ही सामाजिक समरसता को बढ़ाने में सहयोगी हैं।
अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने कहा कि कलाकारों के संरक्षण और लोक कलाओं का संवर्धन केवल एक कार्यक्रम को साल भर में आयोजित किये जाने से नहीं हो सकता। निदेशक भागवत प्रसाद ने आभार व्यक्त किया।
सहभागी शिक्षण केंद्र लखनऊ के अशोक भाई व लखनऊ के समाजसेवी संदीप मांझी ने बुंदेली लोक कलाओं को सर्वश्रेष्ठ कलायें घोषित करते हुये कहा कि इनका संरक्षण करना सबका दायित्व है। इस दौरान संगीत विशेषज्ञ डा. वीणा श्रीवास्तव, डा. प्रेम चंद्र, ललितपुर के समाजसेवी वासुदेव, महोबा के अभिषेक, नरैनी के राजा भैया, डा. ओपी सिंह, शिव चरन सिंह महोबा, रामेश्वर प्रसाद, उमा चतुर्वेदी ने भी अपने विचार रखे। इस दौरान कलाकारों ने भी अपनी-अपनी विधा के कार्यक्रम प्रस्तुत कर वाह-वाही बटोरी।

चित्रकूट की भूमि पर आज से गूंजेगी लोकलय

चित्रकूट। अमराई में बौर की झीनी सुगंध और गोबर से लीपी भूमि के सोंधे सुवास में शनिवार से लोकलय का अनूठा कार्यक्रम शुरू होगा। इस खास कार्यक्रम में बुंदेलखंड के करीब सौ कलाकार 30 से भी अधिक विधाओं का प्रदर्शन करेंगे। इसमें कई लोक विधायें तो लुप्तप्राय हो चुकी हैं।

अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान का भारत जननी परिसर लोकलय समारोह के लिए तैयार है। यहां भाग लेने आये ग्रामीण परिवेश के कलाकार शुक्रवार को दिन भर अपनी प्रस्तुतियों को लेकर अभ्यास करते रहे रहे। मानिकपुर ब्लाक की संजो अपने साथियों के साथ जवारा नृत्य की तैयारियों में लगी रहीं, वहीं ज्योति और श्यामा भी कोलहाई और राई की खुशबू की तैयारी में व्यस्त दिखी। उधर अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान का भारत जननी परिसर भी देशी कलाकारों के नायाब हुनर का जलवा दिखाने के लिये रंग-रोगन कर तैयार किया जा रहा है। यहां पर तैयारियां देशी अंदाज में दिनभर चलती रहीं। समारोह में बुंदेलखंड की लोक कलायें जहां मंचित की जानी है, वहीं मंच की साज सज्जा भी खालिस बुंदेली शैली 'पुतरिया' के चित्रण से की गई है।
लोकलय समारोह के आयोजक अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई व निदेशक भागवत प्रसाद कहते हैं कि इस बार कासमारोह पिछली बार की तुलना में काफी खास होने जा रहा है। बुंदेलखंड के सातों जिलों के कलाकार अपनी प्रस्तुतियां सीमित समय में देंगे। इस दौरान लगभग ढाई दर्जन लोक विधाओं को मंच पर प्रस्तुत किया जायेगा। ध्यान रहे कि अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान बुंदेलखंड की लोककलाओं को सहेजने व संव‌र्द्धन के लिए बीते कई वर्षो से लोकलय का आयोजन करता आ रहा है।

दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत है- बुद्धि प्रसाद

चित्रकूट। धर्मनगरी परिक्षेत्र के रानीपुर भट्ट स्थित भारत जननी परिसर में एक बार फिर राजशाही के जमाने में युद्ध के समय बजाये जाने वाले बुंदेली वाद्ययंत्र (साज) 'रमतूला' की मधुर आवाज के द्वारा तीसरे लोकलय समारोह का शुभारंभ ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने किया। वैसे समारोह के वैधानिक रुप से शुभारंभकर्ता उनके पिता 91 वर्षीय उनके पिता बुद्धि प्रसाद रहे। उद्धाटन के मौके पर वयोवृद्ध लोक कलाकार बुद्धि प्रसाद ने नये संगीत के कारण पुराने संगीत को विस्मृत किये जाने को लेकर चिंता जताई। कहा कि आज के दौर का संगीत भले ही कितने लेागों द्वारा सुना जाता हो पर वास्तव में दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत ही है। वैसे पुरानी पीढ़ी द्वारा हस्तान्तरित किये जाने के कारण और नयी पीढ़ी के द्वारा पूर्ण रुचि न लिये जाने के कारण आज के लोक कलाकारों के प्रदर्शन में भी वह बात नही रह गई है। इस दौरान उन्होंने अपनी कपकपाती बुलंद आवाज में देवी गीत 'अचरी' का गायन भी किया। इस दौरान उनका स्वागत व अभिनंदन प्रिया संस्था दिल्ली के राजेश टंडन, सहभागी शिक्षण केंद्र के अशोक भाई व अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने किया।

लोकलय की पहली प्रस्तुति मीताक्षरा की गणेश वंदना से हुई। लमटेरा विधा की इस प्रस्तुति को प्रस्तुत करने में जहां उसके ऊपर आर्शीवादों की वर्षा संगीताचार्य लल्लू राम शुक्ल ने की वहीं तबले पर संगत के लिये मृदंग मार्तन्ड पं. अवधेश कुमार द्विवेदी मौजूद थे। पाठा क्षेत्र की कलाकार बूटी ने अपनी आवाज पहुचाई तो लोक विधाओं के संरक्षण और संर्वधन के काम में सालों से लगीं उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव ने अंचरी गाकर मां अम्बे की वंदना प्रस्तुत की।
इसके बाद तो जैसे सम्पूर्ण परिसर पाठा की विशिष्ठ प्रस्तुति जवारा के दो दर्जन कलाकारों के करतबों से आलोकित हो उठा। पंडाल के सामने से लगभग पचास मीटर से नगडिया और ढोलक, मंजीरे की थापों पर थिरकते बलखाते कलाकार ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न रुपों को दर्शाते मां का प्रदर्शन करते चले आ रहे थे। उनकी भाव भंगिमायें लोगों को आकर्षित कर रही थी। मंच पर सांग और तलवार की प्रस्तुतियों के बाद जब फूला माता के सीगों भरे झूले पर लोगों ने लेटकर बैठकर नृत्य किया तो लोगों की सांसें रुक गई। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने में संजो, कालका, दद्दू, चुनबदिया, कुंती, ज्योति व अन्य कलाकारों का योगदान रहा। इसके बाद हमीरपुर की अचरी, महोबा के रघुवीर सिंह का गोट गायन, धवा गांव की टीम का लमटेरा, जालौन के साहब सिंह की टीम का अचरी व लेद गायन के साथ ही अन्य नयनाभिराम प्रस्तुतियां हुई। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. ज्ञानेन्द्र ंिसह ने कहा कि लोक विधाओं के संरक्षण के लिये विवि भी काफी अग्रणी है। इस तरह के कार्यक्रम लगातार आयोजित होने चाहिये। इस दौरान पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र, दृष्टि संस्था के बलबीर सिंह, राष्ट्रदीप, कुलदीप, गजेन्द्र, महेन्द्र, कुबेर आशीष, टीपी सिंह तथा इंग्लैंड से आये प्रीट वायडन, ब्रायन वायडन व तमाम स्थानीय लोग मौजूद रहे।

एक ही विधा के गीतों का नाम है अलग-अलग

चित्रकूट। यह मौसम की मादकता का असर है या फिर धर्म नगरी का अपनापन, जो भी कलाकार मंच पर उतरता है उसकी आवाज में मानो खुद ही सरस्वती विराज जाती है। यह नजारा है लोकलय समारोह में होने वाली प्रस्तुतियों का।

उरई से आईं लोक कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिये वर्षो से प्रयासरत और लोक संगीत की नई लिपि बनाने वाली डा. वीणा श्रीवास्तव ने जब मंच पर अचरी की प्रस्तुति के प्रारंभ में 'सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहैं गणेश, पांच देव रक्षा करैं, ब्रह्मा विष्णु महेश' तो लगा कि वास्तव में 'चिमकी में गणेश, ढोलक में बैंठी मां शारदा' का माहौल कायम हो गया है।
लंगुरिया की विषद व्याख्या करते हुये उन्होंने कहा कि बुंदेली धरती अनेक करिश्माओं से भरी धरती है। जहां इसमें एक तरफ प्रभु श्री राम के त्याग और तप के दर्शन होते हैं वहीं दूसरी तरफ रानी लक्ष्मी बाई और राजा छत्रशाल, आल्हा उदल के शौर्य के चर्चे सुने और सुनाये जाते हैं। 'कोस- कोस में पानी बदलै, तीन कोस में बानी' को चरितार्थ करती इस धरती पर लोक विधायें भी थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदल जाती है। इस प्रकार यहां की संस्कृति में देवी गीतों का गायन कहीं अचरी तो कहीं ओ मां तो कहीं जवारा नृत्य के रुप में दिखाई देता है।

बजा रमतूला और गूंज उठी बुंदेली लोकलय

चित्रकूट। रानीपुर भट्ट स्थित भारत जननी परिसर में एक बार फिर राजशाही के जमाने के युद्धक बुंदेली वाद्ययंत्र 'रमतूला' की हुंकार से तीसरे लोकलय समारोह का आगाज हुआ। वयोवृद्ध लोककलाकार एवं ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद के पिता बुद्धि प्रसाद ने कांपती आवाज में अचरी गाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

लोक कलाकार बुद्धि प्रसाद ने नये संगीत के कारण पुराने संगीत को भले ही लोग भूलते जा रहे हों, लेकिन दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत ही है। इस दौरान उनका स्वागत व अभिनंदन प्रिया संस्था दिल्ली के राजेश टंडन, सहभागी शिक्षण केंद्र के अशोक भाई व अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने किया। लोकलय की पहली प्रस्तुति मीताक्षरा की गणेश वंदना से हुई। लमटेरा विधा की इस प्रस्तुति को में जहां उसके ऊपर आशीर्वादों की वर्षा संगीताचार्य लल्लू राम शुक्ल ने की वहीं तबले पर संगत के लिये मृदंग मार्तण्ड पं.अवधेश कुमार द्विवेदी मौजूद थे। पाठा क्षेत्र की कलाकार बूटी ने अपनी आवाज पहुचाई तो लोक विधाओं के संरक्षण और संवर्धन के काम में सालों से लगीं उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव ने अचरी गाकर मां अम्बे की वंदना प्रस्तुत की।
इसके बाद तो जैसे सम्पूर्ण परिसर पाठा की विशिष्ठ प्रस्तुति जवारा के दो दर्जन कलाकारों के करतबों से आलोकित हो उठा। पंडाल के सामने से लगभग पचास मीटर से नगडिया और ढोलक, मंजीरे की थापों पर थिरकते बलखाते कलाकार ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न रुपों को दर्शाते मां का प्रदर्शन करते चले आ रहे थे। उनकी भाव भंगिमायें लोगों को आकर्षित कर रही थी। मंच पर सांग और तलवार की प्रस्तुतियों के बाद जब फूला माता के सीगों भरे झूले पर लोगों ने लेटकर बैठकर नृत्य किया तो लोगों की जैसे सांसें थम गईं। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने में संजो, कालका, दद्दू, चुनबदिया, कुंती, ज्योति व अन्य कलाकारों का योगदान रहा। इसके बाद हमीरपुर की अचरी, महोबा के रघुवीर सिंह का गोट गायन, धवा गांव की टीम का लमटेरा, जालौन के साहब सिंह की टीम का अचरी व लेद गायन के साथ ही अन्य नयनाभिराम प्रस्तुतियां हुई। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. ज्ञानेन्द्र ंिसह ने कहा कि लोक विधाओं के संरक्षण के लिये विवि भी काफी अग्रणी है। इस दौरान ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र, दृष्टि संस्था के बलबीर सिंह, राष्ट्रदीप, कुलदीप, गजेन्द्र, महेन्द्र, कुबेर आशीष, टीपी सिंह तथा इंग्लैंड से आये प्रीट वायडन, ब्रायन वायडन व तमाम स्थानीय लोग मौजूद रहे।

खालिस देशी है लोकलय समारोह

चित्रकूट। देशी खाना और देशी मंच पर देशी गाना, जी हां यह लोकलय समारोह के तीसरे संस्करण की शुरुआत में देखने को मिला। बुंदेली सभ्यता और संस्कृति की खूबसूरत झांकी जहां मंच की साज सज्जा पर खडिया व गेरु के माध्यम से बनाई गई 'पुतरियों' पर दिखाई दी, वहीं गांव की झोपड़ी का दृश्य शहर के साथ ही गांव में रहने वालों को भी लुभा गया। देशीपन की बयार की सुगंध केवल इतने भर से पूरा नही होता दिखा तो होली की मादकता को अपने आपमें सदियों से छिपाये खूबसूरत पलाश के फूलों से मानो मंच का श्रंगार कर लोक जीवन की अनमोल थाती का संदेश चैत्र के महीने में दे दिया गया।

अपने प्रयोगवादी होने के कारण गांव के माहौल को मंच पर लाने के पीछे अखिल भारतीय संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई व निदेशक भागवत प्रसाद ने कहा कि वास्तव में बुंदेलखंड की थाती ये लोक कलाकार ही हैं जो सदियों से अपनी परंपराओं को संजो कर रखे हुये हैं। वैसे तो गांव में ये सामाजिक समरसता की बयार बहाकर एक सूत्र में पिरे रहते हैं, पर नये जमाने की हवा अब गांव में भी पहुंच रही है। कहा कि जिस गांव में लोक कलाकार भजन,फाग, कबीरी या फिर अन्य किसी भी लोक विधा के द्वारा आपस में बैठते हैं वहां लड़ाई झगड़ा नही होता है।
उन्होंने कहा कि लोकलय समारोह वास्तव में राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक सौहार्द के लिये समर्पित लोक विधाओं के संरक्षण संवर्धन के लिये बुंदेलखंड के सातों जिलों के कलाकारों के साथ आयोजित किये जाने की परंपरा दो साल पहले प्रारंभ की थी।
वास्तव में गांव का गरीब कलाकार जब मंच में अपनापन देखता है तो फिर उसे लगता है कि वह अपने गांव और घर पर ही प्रस्तुति दे रहा है। इसलिये न केवल मंच पर गांव का वातावरण स्रजित किया गया है बल्कि आमराई की नीचे झड़ती हुई बौर उन्हें और भी ज्यादा अपनेपन का अहसास दिला रही है। इसके साथ यहां पर साथम खायें का वातावरण दोना और पत्तल में भोजन लिपे मैदान में रोटी दाल के साथ पूरा होता है।

होने दे राई सखि होने दे राई

चित्रकूट। नगडिया और अलगोजा का मधुर संगीत और महिला कलाकार का मदहोश कर देने वाला नृत्य पर बोल ऐसे कि जिसमें भक्ति रस बहता हुआ नजर आये, चौकिंये मत यह कोई सूफी अदाज का कोई गायन नही बल्कि यह है बुंदेलखंड की मशहूर राई जिसको देखने के लिये लोग रात-रात भर ठंड व गर्मी के मौसम में डटे रहते हैं। यहां पर भी कुछ ऐसा ही हुआ जब लोक लय के मंच पर महोबा से आई साहब सिंह वर्मा की टीम ने रावला और राई को प्रस्तुत किया। पहले 'भज लो सीताराम, भज लो सीताराम, तुलसी की माला लै लो हाथ मैं' से शुरु हुआ रावला जब अपने पूरे शबाब में 'होने दे राई सखि होने दे राई' पर पहुंचा तो आनंद से लबरेज सारा वातावरण हो गया।

महिला कलाकार के साथ पुरुष नर्तक की भाव भंगिमायें एक अलग ही नजारा प्रस्तुत कर रही थी। दर्शकों की तालियों के साथ ही उनके लगातार झूमने के अंदाज बता रहे थे कि वास्तव में बुंदेलखंड में राई को क्यों इतना पसंद किया जाता है। केवल एक लाइन के गीत के सहारे रात भर नाचने वाली नर्तकी व नर्तक की भावभंगिमायें व आकर्षण सभी के चेहरों पर देखा जा रहा था। कुछ ऐसा ही हाल पाठा के मशहूर राई और कोलहाई, करमा नृत्य के प्रस्तुति करण में दिखाई दिया। घेरदार राई की प्रस्तुति में तो बूटी व संजो की आवाज व महिला व पुरुष के नृत्यों की मादकता में देशी तो देशी विदेशी मेहमान भी झूम उठे। कुछ सी तरह की प्रस्तुतियां जालौन के प्रसाद, चित्रकूट के लालमन, बांदा की संत की कबीरी के साथ ही पाठा की दूसरी टीम ने भी खासा मनोरंजन किया।

सोने का सूप सरैया तोरी अम्मा निहारै हो

चित्रकूट। एक ऐसी विधा जिसके नाम पर फिल्म बन कर सुपर हिट साबित हुई, फिल्म का नाम था हम आपके हैं कौन और इस कान्सेप्ट को कई फिल्मों में अजमाया गया और वे फिल्में भी सफल हुई। लोकलय के पहले दिन की देर शाम भी कुछ इसी तरह की घटना की गवाह बनी। बुंदेली बारात के कुछ अनमोल क्षण दर्शकों के सामने आये तो बधाई गीत गाने वाली महिलाओं का साथ देने की आवाजें दर्शकों के बीच से भी आने लगीं। सिर पर मौर हाथ में कंकन और शरीर पर पीला जामा, निहारन के दृश्यों में जहां 'सोने का सूप सरैया तोरी अम्मा निहारै हो' दर्शकों के बीच बैठी महिलायें आनंदित होकर गाने लगी। इसके साथ ही दुल-दुल घोड़ी व उसके बच्चे का नाच, भूत का स्वांग और पुतरिया की लटक और झटक वाले ठुमकों के साथ पीछे आ रहे दूल्हे के सिर पर छोटी बहन के राई और नमक से नजर उतारते हाथ देखने के लिये तो लोगों का नजरें अपने आप उठ रही थी। इस दौरान पारंपरिक शहनाई के साथ ठपली की धुनों पर महिलायें और पुरुष नृत्य कर रहे थे। जैसी ही विवाह की रस्में आगे बढ़ी लोगों का उत्साह आगे बढ़ता गया। द्वार चार के बाद फेरे व विदाई के दृश्यों के गीत लोगों को आनंदित करते रहे। यहां तक की विदाई के गीत के दौरान तो तमाम आंखें नम दिखाई दी।

इसके बाद सुबह के सत्र में जवारा नृत्य से आनंदित करने वाले पाठा के कलाकारों ने करमा और राई नृत्य प्रस्तुत कर अपनी धाक जमाई। 'लुरि-लुरि जाय कि अंगना मै कैसे बटोरौं' के साथ ही अन्य गीतों पर नृत्य करने वाले कलाकारों के कमर की लटकन व नृत्य संचलन में पैरों के इस्तेमाल की विविधता के दर्शन हो रहे थे।
बुंदेली विवाह परपंरा के बाद देर रात शुरु हुई बुंदेलखंड की मशहूर विधा नौटकी ने लोगों को आनंदित किया। इस नौटकी को बांदा के लगभग एक दर्जन कलाकारों ने प्रस्तुत किया।

लाल के प्रयास से रूठा केला भी फल उठा

चित्रकूट। 'धान ,पान अरु केला, इहै पानी के चेरा' प्यासी पाठा की धरती को चुनौती देने वाले किसान लाल प्रताप सिंह के अथक प्रयास परिणाम यह हुआ कि बेहाल बुंदेलखंड के किसानों को इस सूखी धरती से उम्मीद की किरण फूटती दिखाई देने लगी है। अधिक पानी में पैदा होने वाली केले फसल को इस किसान ने कुछ तरह से उगाया कि ये केले की फसल साल में एक दो बार नहीं बल्कि कई बार मिलती रही।

मुख्यालय के समीपवर्ती सिद्धपुर ग्राम पंचायत के किसान लाल प्रताप सिंह बोन्साई केले के पेड़ों से न केवल बड़ा उत्पादन ले रहे हैं बल्कि उनके पेड़ साल भर फलों से लद रहते हैं। केले के अलावा आंवला, आम, अनार, संतरा, मौसमी, नींबू, जामुन, सीताफल, आलू, प्याज, बैंगन, लौकी, कद्दू आदि की फसल भी सफलता पूर्वक कर कृषि विविधीकरण के क्षेत्र में नया काम कर रहे हैं।
प्रचार-प्रसार से दूर और सरकारी योजनाओं के बिना पानी की कमी के कारण जूझते पाठा के गांव में इस तरह का खेती में विशेष काम करने वाले इस किसान के बारे में जब जानकारी जिला कृषि अधिकारी हर नाथ सिंह के साथ ही अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के निदेशक भागवत प्रसाद को जानकारी मिली तो दोनो ही मौके पर पहुंचे।
बांकेसिंद्ध पहाड़ के नीचे तलहटी पर स्थित अपने फार्म हाउस पर लाल प्रताप सिंह ने बताया कि वर्ष 1971 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने गांव का रुख किया तो उन्हें अपने ननिहाल जाना पड़ा। वर्ष 2001 में जब पुन: यहां पर आने का मौका मिला तो पहाड़ की तलहटी की इस जमीन पर कुछ पैदा नही होता था। बंजर जमीन पर बाहर से लाकर पौधे रोपे गये और धीरे-धीरे पौधों की संख्या बढ़ती गई। केले का प्रयोग भी अचानक ही हो गया। जब केले ने एक साल के बाद फल दिये तो फिर उनकी कटिंग की गई। अब तो आंवला केवल एक ही पेड़ पर डेढ़ कुन्टल फसल देता है। इसके साथ ही बैगन व अनार तो एक-एक फल आधा किलो से ऊपर से उत्पादित हो चुके हैं। आम के पेड़ भी अच्छी फसल दे रहे हैं। बाजार वाद की हवा से दूर अभी लालप्रताप बाजार से ज्यादा लोगों को खिलाने में यकीन कर लोगों को फलों के उत्पादन की सलाह देते हैं।

लोकलय में जुटेंगे देसी कलाकार

चित्रकूट। लोककलाओं को संरक्षण और संवर्धन के लिए शुरू हुए लोकलय समारोह में इस बार खास होने वाला है। हो सकता है कि बुंदेलखंड के बेशकीमती लोक कलाकारों को विदेशों में प्रदर्शन का मौका मिल जाए। इस साल 20-21 मार्च को अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के भारत जननी परिसर में होने वाले लोकलय समारोह को देखने विदेशी भी मौजूद रहेंगे। ये जानकारी लोकलय महोत्सव के मुख्य आयोजक अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के न्यासी गोपाल भाई ने पत्रकारों को दी।

उन्होंने बताया कि पिछले दो आयोजनों का प्रतिफल हमीरपुर जिले के बिवांर गांव में उस समय दिखाई दिया जब पूरा जिला प्रशासन लोक कलाकारों से मिलने गांव पहुंचा। वहां पर डीएम समेत सभी अफसरों ने पहुंचकर न सिर्फ लोक कलाकारों को सुना बल्कि 10 हजार रुपयों की सहायता के साथ कंबल भी दिये। कार्यक्रम में बुंदेलखंड के सातों जिलों के लगभग 150 लोक कलाकार शिरकत करेंगे। 20 मार्च को कार्यक्रम का शुभारंभ बांदा के वयोवृद्ध कलाकार बुद्धि प्रसाद करेंगे। इस मौके पर व‌र्ल्ड बैंक के सलाहकार व प्रिया संस्था के संस्थापक डा. राजेश टंडन व लोक कला मम‌र्ग्य उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव मौजूद रहेंगी। यहां पहले दिन बुंदेली वाद्यों की सहायता से लमटेरा, अचरी, कछियाई, कुम्हरई, कहरई, राई, कोलहाई, गोट, बिरहा आदि विधाओं का मंचन होगा। समारोह के दूसरे दिन के खास मेहमान सूबे के संस्कृति मंत्री सुभाष पांडेय होगे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद करेंगे। समारोह के दूसरे दिन जवारा गीत व नृत्य, होरी गीत, नट कला, चंगेली नृत्य, गांवों के प्राचीन वाद्यों का प्रदर्शन व बुर्जुग कलाकारों का अभिनंदन किया जायेगा। इस दौरान बीबीसी समेत विदेश से आने वाले मेहमान समाजसेवी ब्रान लान क्रिस्टोफर, प्राट वायडन, क्रिंग्सले प्राट वायडन व सुहेल टंडन आदि मौजूद रहेगे। इस मौके पर समाजसेवी आलोक द्विवेदी मौजूद रहे।