गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Monday, March 29, 2010

खालिस देशी है लोकलय समारोह

चित्रकूट। देशी खाना और देशी मंच पर देशी गाना, जी हां यह लोकलय समारोह के तीसरे संस्करण की शुरुआत में देखने को मिला। बुंदेली सभ्यता और संस्कृति की खूबसूरत झांकी जहां मंच की साज सज्जा पर खडिया व गेरु के माध्यम से बनाई गई 'पुतरियों' पर दिखाई दी, वहीं गांव की झोपड़ी का दृश्य शहर के साथ ही गांव में रहने वालों को भी लुभा गया। देशीपन की बयार की सुगंध केवल इतने भर से पूरा नही होता दिखा तो होली की मादकता को अपने आपमें सदियों से छिपाये खूबसूरत पलाश के फूलों से मानो मंच का श्रंगार कर लोक जीवन की अनमोल थाती का संदेश चैत्र के महीने में दे दिया गया।

अपने प्रयोगवादी होने के कारण गांव के माहौल को मंच पर लाने के पीछे अखिल भारतीय संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई व निदेशक भागवत प्रसाद ने कहा कि वास्तव में बुंदेलखंड की थाती ये लोक कलाकार ही हैं जो सदियों से अपनी परंपराओं को संजो कर रखे हुये हैं। वैसे तो गांव में ये सामाजिक समरसता की बयार बहाकर एक सूत्र में पिरे रहते हैं, पर नये जमाने की हवा अब गांव में भी पहुंच रही है। कहा कि जिस गांव में लोक कलाकार भजन,फाग, कबीरी या फिर अन्य किसी भी लोक विधा के द्वारा आपस में बैठते हैं वहां लड़ाई झगड़ा नही होता है।
उन्होंने कहा कि लोकलय समारोह वास्तव में राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक सौहार्द के लिये समर्पित लोक विधाओं के संरक्षण संवर्धन के लिये बुंदेलखंड के सातों जिलों के कलाकारों के साथ आयोजित किये जाने की परंपरा दो साल पहले प्रारंभ की थी।
वास्तव में गांव का गरीब कलाकार जब मंच में अपनापन देखता है तो फिर उसे लगता है कि वह अपने गांव और घर पर ही प्रस्तुति दे रहा है। इसलिये न केवल मंच पर गांव का वातावरण स्रजित किया गया है बल्कि आमराई की नीचे झड़ती हुई बौर उन्हें और भी ज्यादा अपनेपन का अहसास दिला रही है। इसके साथ यहां पर साथम खायें का वातावरण दोना और पत्तल में भोजन लिपे मैदान में रोटी दाल के साथ पूरा होता है।

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