गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Monday, March 29, 2010

होने दे राई सखि होने दे राई

चित्रकूट। नगडिया और अलगोजा का मधुर संगीत और महिला कलाकार का मदहोश कर देने वाला नृत्य पर बोल ऐसे कि जिसमें भक्ति रस बहता हुआ नजर आये, चौकिंये मत यह कोई सूफी अदाज का कोई गायन नही बल्कि यह है बुंदेलखंड की मशहूर राई जिसको देखने के लिये लोग रात-रात भर ठंड व गर्मी के मौसम में डटे रहते हैं। यहां पर भी कुछ ऐसा ही हुआ जब लोक लय के मंच पर महोबा से आई साहब सिंह वर्मा की टीम ने रावला और राई को प्रस्तुत किया। पहले 'भज लो सीताराम, भज लो सीताराम, तुलसी की माला लै लो हाथ मैं' से शुरु हुआ रावला जब अपने पूरे शबाब में 'होने दे राई सखि होने दे राई' पर पहुंचा तो आनंद से लबरेज सारा वातावरण हो गया।

महिला कलाकार के साथ पुरुष नर्तक की भाव भंगिमायें एक अलग ही नजारा प्रस्तुत कर रही थी। दर्शकों की तालियों के साथ ही उनके लगातार झूमने के अंदाज बता रहे थे कि वास्तव में बुंदेलखंड में राई को क्यों इतना पसंद किया जाता है। केवल एक लाइन के गीत के सहारे रात भर नाचने वाली नर्तकी व नर्तक की भावभंगिमायें व आकर्षण सभी के चेहरों पर देखा जा रहा था। कुछ ऐसा ही हाल पाठा के मशहूर राई और कोलहाई, करमा नृत्य के प्रस्तुति करण में दिखाई दिया। घेरदार राई की प्रस्तुति में तो बूटी व संजो की आवाज व महिला व पुरुष के नृत्यों की मादकता में देशी तो देशी विदेशी मेहमान भी झूम उठे। कुछ सी तरह की प्रस्तुतियां जालौन के प्रसाद, चित्रकूट के लालमन, बांदा की संत की कबीरी के साथ ही पाठा की दूसरी टीम ने भी खासा मनोरंजन किया।

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