चित्रकूट। यह मौसम की मादकता का असर है या फिर धर्म नगरी का अपनापन, जो भी कलाकार मंच पर उतरता है उसकी आवाज में मानो खुद ही सरस्वती विराज जाती है। यह नजारा है लोकलय समारोह में होने वाली प्रस्तुतियों का।
उरई से आईं लोक कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिये वर्षो से प्रयासरत और लोक संगीत की नई लिपि बनाने वाली डा. वीणा श्रीवास्तव ने जब मंच पर अचरी की प्रस्तुति के प्रारंभ में 'सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहैं गणेश, पांच देव रक्षा करैं, ब्रह्मा विष्णु महेश' तो लगा कि वास्तव में 'चिमकी में गणेश, ढोलक में बैंठी मां शारदा' का माहौल कायम हो गया है।
लंगुरिया की विषद व्याख्या करते हुये उन्होंने कहा कि बुंदेली धरती अनेक करिश्माओं से भरी धरती है। जहां इसमें एक तरफ प्रभु श्री राम के त्याग और तप के दर्शन होते हैं वहीं दूसरी तरफ रानी लक्ष्मी बाई और राजा छत्रशाल, आल्हा उदल के शौर्य के चर्चे सुने और सुनाये जाते हैं। 'कोस- कोस में पानी बदलै, तीन कोस में बानी' को चरितार्थ करती इस धरती पर लोक विधायें भी थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदल जाती है। इस प्रकार यहां की संस्कृति में देवी गीतों का गायन कहीं अचरी तो कहीं ओ मां तो कहीं जवारा नृत्य के रुप में दिखाई देता है।
Monday, March 29, 2010
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