गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Monday, March 29, 2010

लाल के प्रयास से रूठा केला भी फल उठा

चित्रकूट। 'धान ,पान अरु केला, इहै पानी के चेरा' प्यासी पाठा की धरती को चुनौती देने वाले किसान लाल प्रताप सिंह के अथक प्रयास परिणाम यह हुआ कि बेहाल बुंदेलखंड के किसानों को इस सूखी धरती से उम्मीद की किरण फूटती दिखाई देने लगी है। अधिक पानी में पैदा होने वाली केले फसल को इस किसान ने कुछ तरह से उगाया कि ये केले की फसल साल में एक दो बार नहीं बल्कि कई बार मिलती रही।

मुख्यालय के समीपवर्ती सिद्धपुर ग्राम पंचायत के किसान लाल प्रताप सिंह बोन्साई केले के पेड़ों से न केवल बड़ा उत्पादन ले रहे हैं बल्कि उनके पेड़ साल भर फलों से लद रहते हैं। केले के अलावा आंवला, आम, अनार, संतरा, मौसमी, नींबू, जामुन, सीताफल, आलू, प्याज, बैंगन, लौकी, कद्दू आदि की फसल भी सफलता पूर्वक कर कृषि विविधीकरण के क्षेत्र में नया काम कर रहे हैं।
प्रचार-प्रसार से दूर और सरकारी योजनाओं के बिना पानी की कमी के कारण जूझते पाठा के गांव में इस तरह का खेती में विशेष काम करने वाले इस किसान के बारे में जब जानकारी जिला कृषि अधिकारी हर नाथ सिंह के साथ ही अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के निदेशक भागवत प्रसाद को जानकारी मिली तो दोनो ही मौके पर पहुंचे।
बांकेसिंद्ध पहाड़ के नीचे तलहटी पर स्थित अपने फार्म हाउस पर लाल प्रताप सिंह ने बताया कि वर्ष 1971 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने गांव का रुख किया तो उन्हें अपने ननिहाल जाना पड़ा। वर्ष 2001 में जब पुन: यहां पर आने का मौका मिला तो पहाड़ की तलहटी की इस जमीन पर कुछ पैदा नही होता था। बंजर जमीन पर बाहर से लाकर पौधे रोपे गये और धीरे-धीरे पौधों की संख्या बढ़ती गई। केले का प्रयोग भी अचानक ही हो गया। जब केले ने एक साल के बाद फल दिये तो फिर उनकी कटिंग की गई। अब तो आंवला केवल एक ही पेड़ पर डेढ़ कुन्टल फसल देता है। इसके साथ ही बैगन व अनार तो एक-एक फल आधा किलो से ऊपर से उत्पादित हो चुके हैं। आम के पेड़ भी अच्छी फसल दे रहे हैं। बाजार वाद की हवा से दूर अभी लालप्रताप बाजार से ज्यादा लोगों को खिलाने में यकीन कर लोगों को फलों के उत्पादन की सलाह देते हैं।

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