गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

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Monday, March 29, 2010

दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत है- बुद्धि प्रसाद

चित्रकूट। धर्मनगरी परिक्षेत्र के रानीपुर भट्ट स्थित भारत जननी परिसर में एक बार फिर राजशाही के जमाने में युद्ध के समय बजाये जाने वाले बुंदेली वाद्ययंत्र (साज) 'रमतूला' की मधुर आवाज के द्वारा तीसरे लोकलय समारोह का शुभारंभ ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने किया। वैसे समारोह के वैधानिक रुप से शुभारंभकर्ता उनके पिता 91 वर्षीय उनके पिता बुद्धि प्रसाद रहे। उद्धाटन के मौके पर वयोवृद्ध लोक कलाकार बुद्धि प्रसाद ने नये संगीत के कारण पुराने संगीत को विस्मृत किये जाने को लेकर चिंता जताई। कहा कि आज के दौर का संगीत भले ही कितने लेागों द्वारा सुना जाता हो पर वास्तव में दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत ही है। वैसे पुरानी पीढ़ी द्वारा हस्तान्तरित किये जाने के कारण और नयी पीढ़ी के द्वारा पूर्ण रुचि न लिये जाने के कारण आज के लोक कलाकारों के प्रदर्शन में भी वह बात नही रह गई है। इस दौरान उन्होंने अपनी कपकपाती बुलंद आवाज में देवी गीत 'अचरी' का गायन भी किया। इस दौरान उनका स्वागत व अभिनंदन प्रिया संस्था दिल्ली के राजेश टंडन, सहभागी शिक्षण केंद्र के अशोक भाई व अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने किया।

लोकलय की पहली प्रस्तुति मीताक्षरा की गणेश वंदना से हुई। लमटेरा विधा की इस प्रस्तुति को प्रस्तुत करने में जहां उसके ऊपर आर्शीवादों की वर्षा संगीताचार्य लल्लू राम शुक्ल ने की वहीं तबले पर संगत के लिये मृदंग मार्तन्ड पं. अवधेश कुमार द्विवेदी मौजूद थे। पाठा क्षेत्र की कलाकार बूटी ने अपनी आवाज पहुचाई तो लोक विधाओं के संरक्षण और संर्वधन के काम में सालों से लगीं उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव ने अंचरी गाकर मां अम्बे की वंदना प्रस्तुत की।
इसके बाद तो जैसे सम्पूर्ण परिसर पाठा की विशिष्ठ प्रस्तुति जवारा के दो दर्जन कलाकारों के करतबों से आलोकित हो उठा। पंडाल के सामने से लगभग पचास मीटर से नगडिया और ढोलक, मंजीरे की थापों पर थिरकते बलखाते कलाकार ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न रुपों को दर्शाते मां का प्रदर्शन करते चले आ रहे थे। उनकी भाव भंगिमायें लोगों को आकर्षित कर रही थी। मंच पर सांग और तलवार की प्रस्तुतियों के बाद जब फूला माता के सीगों भरे झूले पर लोगों ने लेटकर बैठकर नृत्य किया तो लोगों की सांसें रुक गई। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने में संजो, कालका, दद्दू, चुनबदिया, कुंती, ज्योति व अन्य कलाकारों का योगदान रहा। इसके बाद हमीरपुर की अचरी, महोबा के रघुवीर सिंह का गोट गायन, धवा गांव की टीम का लमटेरा, जालौन के साहब सिंह की टीम का अचरी व लेद गायन के साथ ही अन्य नयनाभिराम प्रस्तुतियां हुई। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. ज्ञानेन्द्र ंिसह ने कहा कि लोक विधाओं के संरक्षण के लिये विवि भी काफी अग्रणी है। इस तरह के कार्यक्रम लगातार आयोजित होने चाहिये। इस दौरान पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र, दृष्टि संस्था के बलबीर सिंह, राष्ट्रदीप, कुलदीप, गजेन्द्र, महेन्द्र, कुबेर आशीष, टीपी सिंह तथा इंग्लैंड से आये प्रीट वायडन, ब्रायन वायडन व तमाम स्थानीय लोग मौजूद रहे।

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