गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Tuesday, September 29, 2009

पर्यावरण से खिलवाड़ न करें

Sep 29, 11:20 pmबताएं
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चित्रकूट। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नही दी जा सकती। चाहे वह कोई भी हो। पर्यावरण बचाने के लिए हर व्यक्ति को अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी। इसके लिये सरकार के साथ ही सभी जिम्मेदार लोगों को आगे आना पड़ेगा। यह बातें काशी से एक दिवसीय दौरे पर यहां आये विश्व व्यापी गंगा सेवा अभियान के संयोजक स्वामी अविमुक्तानंद सरस्वती जी महाराज ने पर्यटक आवास गृह पर कहीं।

उन्होंने कहा कि गंगा व्यापार की वस्तु नही है। इसका व्यापार किसी भी दशा में उत्तरांचल सरकार को नही करने दिया जायेगा। कुंभ के समय बोतलों में बंद पानी को बेचने की उनकी योजना का हर स्तर पर साधू समाज विरोध करेगा। उत्तरांचल सरकार पर आरोप लगाते हुये कहा कि एक तरफ बांध बनाकर सरकार पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है दूसरी तरफ गंगा के पानी को बेचने की योजना बना रही है। उन्होंने मंदाकिनी को गंगा का ही स्वरुप करार देते हुये कहा कि देश की समस्त नदियों व जलाशयों की हिफाजत करना हर एक व्यक्ति का नैतिक दायित्व है। उन्होंने गंगा को राष्ट्र नदी घोषित करने के लिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बधाई देते हुये कहा कि आगामी पांच अक्टूबर को गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की प्रथम बैठक में गंगा के संरक्षण के लिये ठोस निर्णय लेने चाहिये।

Sunday, September 27, 2009

हिंदी की सबसे बड़ी सेवा हिंदी में छपने वाले अखबार कर रहे हैं

चित्रकूट। भले ही पूरे देश में हिंदी, हिंदु और हिंदुस्तान का नारा वर्षो से जोरों से लगाया जा रहा हो पर सच्चाई यह है कि इसकी सेवा करने का दावा करने वालों पर भी अंग्रेजियत का भूत सवार है। न तो अब कवि सम्मेलन ही ज्यादा होते दिखाई देते हैं और न ही युवा पीढ़ी को हिंदी से कोई ज्यादा सरोकार समझ में आता है। इसका साफ कारण यह है कि हिंदुस्तान की बिंदी कहे जाने वाली हिंदी को भले ही राष्ट्रभाषा का दर्जा पूर्ण रूप से मिला हो पर लगभग हर कार्यालय के साथ घरों में अंग्रेजी का प्रयोग व अंग्रेजियत की बयार बहती दिखाई देती है। ज्यादातर लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते देखे जाते हैं।

वर्षो से हिंदी की कविताओं के माध्यम से सेवा कर रही सावित्री श्रीवास्तव 'चित्रा' कहती हैं कि हमारे अपनों ने ही हिंदी को अपने देश में उपेक्षित कर रखा है। भले ही हिंदी का ढिंढोरा पूरे देश में पीटा जाता हो पर वास्तव में हिंदी के दर्शन साहित्य के सम्मेलनों में ही होते हैं। आज अंग्रेजी के छपे नावेल बाजारों में आराम से बिक जाते हैं जबकि हिंदी की छपी पुस्तकों को खाली वाचनालयों में ही जगह मिलती है।
चित्रकूट इंटर कालेज के प्रवक्ता आनंद राव तैलंग की मातृभाषा वैसे तो मराठी है पर वे यहां पर पूरी तरह से हिंदी में ही काम करते हैं। कहते है कि हिंदी से ज्यादा बेहतर भाषा दूसरी नही है। भले ही हम अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ायें पर मुख्य भाषा के रूप में उन्हें हिंदी की शिक्षा देना जरूरी है।
भारतीय साहित्यिक संस्थान के निदेशक बलबीर सिंह ने कहा कि वैश्वीकरण के इस हाई प्रोफाइल युग में अंग्रेजी को अनिवार्य मानकर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं। जबकि सच्चाई यह भी है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र कहीं पीछे नही रहते।
शिक्षक लल्लू राम शुक्ल ने कहा कि ऐसा नही है कि केवल अंग्रेजी ही लोगों के जीवन का स्तर सुधार सकती है। मंदी की मार से ग्रसित पूरे विश्व के सामने हिंदी भी एक ऐसे विकल्प के रूप में सामने आ रही है जिसको दूसरे देशों में सम्पर्क का बड़ा माध्यम माना जा रहा है।
जिला विद्यालय निरीक्षक सी एल चौरसिया ने कहा कि यूरोप के देशों के साथ ही एशिया, अफ्रीका के ही तमाम देशों में हिंदी के पठन व पाठन का काम काफी तेजी से चल रहा है। अब तो कम्प्यूटर में साफ्टवेयर भी हिंदी में आ चुका है और विदेशों में हिंदी अखबारों के नेट संस्करण भी काफी लोकप्रिय है। कई देशों में बसे भारतीय भले ही वहां पर अंग्रेजी को अपने संपर्क के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हो पर वे भारत के अखबारों में हिंदी के ही अखबारों को पढ़ना पसंद करते हैं। आज अगर हिंदी की सबसे ज्यादा सेवा कोई कर रहा है तो वह हिंदी में छपने वाले अखबार ही हैं।

भगवान राम के आर्शीवाद का फल इलेक्ट्रा चित्रकूटसिन्स

संदीप रिछारिया
चित्रकूट। 'धर्म न अर्थ न काम रुचि, गति न चहौं निर्वाण, जन्म-जन्म श्री राम पद यहि वर मागौं आन।' यह एक ऐसा वरदान जो किसी और ने नही बल्कि एक ऐसे राक्षस ने मांगा था जिसके कारण मां सीता के पैरों में चुभन के साथ ही रक्त निकला था, पर इसे क्या कहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने उसे वरदान तो दिया ही साथ ही उस तपस्थली को एक ऐसी जड़ी बूटी से भर दिया जिसको उपयोग कर लोग दमा, स्वांस और पुरानी खांसी जैसी असाध्य बीमारी से छुटकारा पा जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध तपोस्थली चित्रकूट पर शरद पूर्णिमा की रात देश व विदेश से आने वाले इन रोगों के रोगी इस बात के गवाह हैं कि उन्हें यहां पर दमा, स्वांस और पुरानी खांसी जैसी बीमारी से निजात मिली है।

देहाती भाषा में बोली जाने वाली मेढ़की पूरे देश में निर्गुन्डी के रूप में जानी जाती है पर यहां पर जमीन से अपने आप पैदा होने वाली निर्गुन्डी अपने आप में विलक्षण है। इसकी खोज तो वैसे परिक्षेत्र में रहने वाले ऋषि मुनियों ने सदियों पहले कर ली थी और वे इससे लोगों की बीमारी का इलाज किया करते थे। समय के बीतने और आयुर्वेद को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने में अग्रणी रहे वैद्यनाथ कंपनी के संस्थापक आचार्य स्व. राम नारायण शर्मा ने सबसे पहले आरोग्य प्रकाश में इस जड़ी बूटी का उल्लेख किया था। इस बात की पुष्टि बांदा जिले के नरैनी दिव्य चिकित्सा भवन नाम से आयुर्वेद केंद्र चला रहे आयुष के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैद्य डा. मदन गोपाल बाजपेई ने बताया कि सन् 1963 में आरोग्य प्रकाश में वैद्य जी ने इस अनोखी जड़ी का वर्णन करते हुये लिखा है कि यह ही चरक का मुख्य सूत्र है। इसका उपयोग करने से मनुष्य आजीवन निरोगी रह सकता है। अत्यंत पौष्टिक पीले रंग का यह कंद वीर्य वर्धक, वात नाशक होता है। चित्रकूट परिक्षेत्र के जंगलों में पाया जाना वाला यह कंद अत्यंत विलक्षण है।
इस बात की तस्दीक आधुनिक विज्ञान के लोगों ने भी दीन दयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत काम कर रहे आरोग्य धाम की रस शाला के प्रबंधक डा. विजय प्रताप सिंह कहते हैं नेशनल बाटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिकों ने इसको जांच परख कर नाम इलेक्ट्रा चित्रकूटसिन्स नाम दिया। निगुन्डी का सहजीवी यह पौधा केवल चित्रकूट परिक्षेत्र में मिलता है। बात रोग के साथ ही चर्म रोग में इसका मुख्य उपयोग किया जाता है। उन्होंने सितम्बर से फरवरी के मध्य पाये जाने वाले इस पौधे के बारे में बताया कि वैसे तो यह स्फटिक शिला के आसपास काफी मात्रा में होता है पर जिले में अनुसुइया आश्रम, सूर्य कुंड, बरगढ़ व लोढ़वारा आदि जगहों पर भी पाया जाता है। बताया कि इस जड़ी पर अभी दीन दयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। समय आने पर इसके और भी औषधीय प्रभावों की जानकारी हो सकेगी।

रामलीला मैदान में लगे गंदगी के ढेर

चित्रकूट। भले ही मुख्यालय के तीन स्थानों पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र को लीलाओं के माध्यम से दिखाये जाने का कार्यक्रम शुरू हो चुका हो पर नगर पालिका परिषद अभी भी नींद में सो रही है। पालिका केवल शाम के समय लीला होने के कुछ घंटों पहले ही सफाई के नाम पर खाना पूरी करवा कर अपने काम की इतिश्री कर रही है।

यह नजारा एक नही बल्कि शंकर बाजार, पुरानी बाजार और नया बाजार तीनों जगहों की राम लीलाओं पर साफ दिखाई देता है। तीनों स्थानों पर अतिक्रमण होने से लीला देखने वालों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पुरानी बाजार राम लीला कमेटी के बसन्त राव गोरे कहते हैं कि गनीमत है कि कम से कम पुरानी बाजार की राम लीला कमेटी के पास अपना भवन और मैदान है। जहां पर अब सीमेंट के ईट लग चुके हैं जिसकी वजह से गंदगी ज्यादा नही होती पर अभी भी कुछ लोग नगर पालिका की जमीन के अंदर ही डिब्बा रखकर अतिक्रमण करे हैं। जानवरों को मैदान पर बांधकर लोग गंदा कर देते हैं। रामलीला कमेटी के महेन्द्र अग्रवाल कहते हैं कि पिछली बार राम लीला के ठीक सामने खुले देशी शराब के ठेके को लेकर तमाम विरोध किया गया जिस पर एसडीएम ने उसे हटाने के आदेश भी कर दिये थे पर आबकारी विभाग के इंसपेक्टर द्वारा उसे फिर से खुलवा दिया गया। अब हाल यह है कि लीला के समय तमाम शराबी पंडाल में घुस आते हैं और उत्पात मचाते हैं।

अतिक्रमण से छोटा हुआ मैदान, कैसे जलेगा रावण !

चित्रकूट। एक बार फिर लंकाधिपति रावण के दहन के लिए जगह छोटी हो चुकी है। शहर के धुस मैदान में अतिक्रमणकारियों ने अपने हाथ फैलाकर रावण को फूंकने लिए इस जगह को इतना छोटा कर दिया है कि शायद यहां पर विजयादशमी पर अब कुछ सैकड़ा लोग ही रावण दहन के गवाह बन पायें।
गौरतलब है कि लगभग बीस साल पहले मुख्यालय में खेलने व खेल तमाशों के साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव के अवसरों दशहरा में रावण दहन व मुहर्रम में ताजियों का मिलन का केंद्र धुस का मैदान ही हुआ करता था। यहां पर ही बड़े-बडे़ राजनैतिक दलों की सभायें भी हुआ करती थी। वैसे सभायें तो अभी भी होती हैं पर नगर पालिका परिषद द्वारा यहां पर सब्जी मंडी को लगवाने के बाद इस मैदान की हालत खराब हो गयी। सब्जी फरोशों ने अपनी-अपनी दुकानें जहां एक तरफ बना डाली वही अतिक्रमण के कारण मैदान बिल्कुल सिकुड़ सा चुका है। अभी हाल के दिनों में नगर पालिका परिषद ने इस मैदान के प्रमुख भाग को कूड़ा दान में तब्दील कर शहर भर के कूड़े को डालने का काम करना प्रारंभ कर दिया है। इसके साथ ही जल निगम अस्थायी खंड यहां पर विशालकाय पानी की टंकी का निर्माण भी कर रहा है। जिसकी वजह से बालू व अन्य सामग्री रावण के दहन में बाधक बन रही है। पुरानी बाजार राम लीला कमेटी के प्रबंधक श्याम गुप्ता व सचिव विजय मिश्र इस मामले पर तीखे नाराज है। उन्होंने नगर पालिका परिषद की कार्यप्रणाली पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा कि नगर पालिका परिषद के लोग सिर्फ कमाई देखते हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नही कि यहां कितने धार्मिक और ऐतिहासिक के साथ ही राजनैतिक जलसे होते रहे हैं, पर नगर पालिका परिषद ने इस मैदान को कमाई के चक्कर में छोटा कर दिया है।

Saturday, September 26, 2009

विलक्षण तपोस्थली आज भी छली जा रही हैं शबरी राम कहानी में

चित्रकूट। भले ही लोग अब चित्रकूट को धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के रूप में जान गये हों पर आज भी यह विलक्षण स्थान अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर जगह पाने को तरस रहा है। ऐसा नही है कि इसको अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने के प्रयास नही हुये पर दो प्रदेशों के बीच बंटे होने के कारण इस धर्मनगरी का समुचित विकास नही हो पाया। विशेष प्रकार की विशेषताओं को अपने अंत: स्थल में समेटे चित्रकूट आज भी खुद में एक किवदंतियों भरी जगह के रूप में अविरल खड़ा हुआ है।
वैसे यहां की नैसर्गिक प्राकृतिक सुषमा अपने आपमें विलक्षण ही है। कहीं घने जंगल है तो कहीं जल प्रपात, कहीं गिरि कानन हैं तो कहीं अनोखी प्रकृति चित्रण से भरपूर गुफायें। इसी परिक्षेत्र में बीस हजार साल पुराने भित्ति चित्र हैं तो भगवान कामतानाथ के साथ मां अनुसुइया के आश्रम व विलक्षण योगिनी शिला है। योगियों, तपस्वियों, संतों महात्माओं की तप स्थली इस भूमि पर वर्ष में करोड़ों लोग इस विलक्षण तीर्थ पर आकर दर्शन लाभ के साथ ही मां मंदाकिनी में स्नान का सुख उठाते हैं।
सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश संगम सीमा पर मौजूद इस विशेष क्षेत्र को विश्व पर्यटन में अब तक जगह क्यों नही मिल सकी। इसका साफ कारण इसका दो प्रदेशों में बंटा होना जान पड़ता है। आधे से ज्यादा सुरम्य तपोस्थल मध्य प्रदेश में हैं तो आधे के लगभग ही उत्तर प्रदेश में हैं।
लगभग दस साल पहले जब पद्म श्री नाना जी देशमुख के कहने पर उद्योगपति बसंत पंडित ने यहां पर हवाई पट्टी बनाने का प्रयास किया तो डाकुओं के चलते उन्हें काम बंद करना पड़ा। बाद में सपा शासन काल में दौरान यह अधूरा काम सरकार को दे दिया गया। सरकार ने भी इसमें रूचि ली और तीन किलोमीटर की हवाई पट्टी के निर्माण होने के बाद बिल्डि़ंग इत्यादि बनाने का ठेका राइट्स कम्पनी को दे दिया। इसे विकसित करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार को दी गई। मूलभूत आवश्यकताओं में बिजली, पानी और सड़क थी। जिलाधिकारी ने पहल कर सड़क व बिजली का प्रबंध तो तुरन्त करा दिया पर पानी के लिये जल संस्थान के अधिकारियों ने कहा कि जब तक कोई भी काम वहां पर चालू न हो जाये तब तक पाइप डालना उचित नही होगा। फिलहाल इस काम में कोई भी प्रगति नही हुई। गौर करने लायक बात यह है कि आज तक इस मामले को लेकर किसी भी जनप्रतिनिधि ने भी कोई पहल नही की।
दूसरा एक बड़ा काम एनडीए के कार्यकाल में हुआ। यहां से होकर गुजरने वाले मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दे दिया गया, पर उसको यह दर्जा देना न देना किसी काम का नही रहा। सरकारों की अदला बदली की भेंट यह सड़क चढ़ी। दो डिवीजनों में बंटी इस सड़क का हाल यह है कि सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालु परेशान हो कह उठते हैं कि इतनी विलक्षण जगह और इतनी खराब सड़क।
इस विलक्षण तीर्थ से केवल एक सौ पचहत्तर किलोमीटर दूर खजुराहो है। विदेशी पर्यटकों को खजुराहो से चित्रकूट लाने व ले जाने के साथ ही यहां के पर्यटकों को खजुराहो भेजने के लिये मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच वार्ता के बाद एक नई सड़क का प्रस्ताव हुआ था। जिससे दोनो पर्यटन स्थलों के बीच की दूरी केवल सौ किलोमीटर होने की आशा थी। लगभग दस सालों के बाद भी नही बनी। अगर यह सड़क बन जाती तो खजुराहों में आने वाले पर्यटक सीधे चित्रकूट से जुड़ जाते।
ऐसा नही है कि यहां पर विकास की घोषणायें नही हुई। लखनऊ, रायबरेली और पूर्वाचल को जोड़ने वाला राजापुर यमुना नदी पुल लटका पड़ा है तो सपा के कार्यकाल में हुई लगभग दो सौ करोड़ की विभिन्न योजनायें कागजों की शोभा बढ़ा रही है।
यहां पर विकास के मुद्दे पर लगभग सभी समाजसेवी व संत-महन्त एक राय हैं। प्रमुख समाजसेवी गया प्रसाद गोपाल कहते हैं यह धरती आज भी शबरी राम कहानी से उबर नही पाई। चिंतन के लिये मुफीद मानकर राष्ट्रीय पार्टियां यहां पर बैठकर चर्चा तो करती हैं और यहां के विकास के लिये बड़े-बडे दावे करते हैं पर सत्ता पर बैठते ही न तो उन्हें चित्रकूट याद आता है न ही यहां की भूमि का विकास।

आपसी भाई चारे की मिशाल है रावण का निर्माण

चित्रकूट। एक बार फिर मरने को तैयार हो रहा है रावण! जी हां हर साल मरने का दर्द समेटने वाला दशानन इस बार भी पूरा ही कर लिया गया, हां अगर अब कुछ शेष है तो वह सिर्फ उस मजाक की वस्तु का सिर जिसे 'गधा' कहते हैं। भले ही पूरे विश्व के लिये रावण बुराई के प्रतीक के रूप में हो पर इनके लिये तो वह पूजा की वस्तु हैं क्योंकि साल में एक बार यह लगभग बीस दिनों तक केवल रावण के पुतले को ही पूरे मनोयोग से बनाने का काम करते हैं। पुश्तों दर पुश्तों से रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने वाले 90 वर्षीय राम रतन प्रजापति भले ही अब उम्र के उस पड़ाव में पहुंच चुके हो जहां से उनका उठना चलना फिरना बिलकुल बंद सा हो पर रावण सरकार के पुतले का निर्माण करने के लिये उनकी बूढ़ी आंखों की रोशनी अपने आप बढ़ जाती है। वैसे अब इस काम को उनके पुत्र चंद्रपाल, बच्चा और हरिशंकर ने संभाल लिया हो पर उनके फाइनल टच के बिना काम नही होता।
राम रतन बताते हैं कि यह काम उनके पिता गुन्नू से उन्होंने सीखा। इसके पहले उनके बाबा यह काम करते थे। कहते हैं कि जब से कर्वी में रामलीला शुरू हुई तब वहां के पहले प्रबंधक बाबू बिहारी लाल रिछारिया व काशी नाथ गोरे उनके पिता बाबा के पास रावण बनवाने आये थे। तब उन्होंने रावण बनाने की दक्षिणा नही ली गई। हां यह बात और है कि लगभग पच्चीस सालों तक जो भी मिला वह मंच पर ही पुरस्कार मिला। बाद के वर्षो में रावण को बनाने के समान पर पैसा लगने के कारण रामलीला से थोड़ी बहुत धनराशि मिलने लगी। आज की तारीख में महंगाई काफी बढ़ चुकी है पर वे रावण को बनाने का काम पैसे के लिये नही बल्कि पूजा समझकर करते हैं।
इसके साथ ही रावण को जलाने में लगने वाली आतिशबाजी लगाकर जलाने का काम भी यहां पर एक ऐसा परिवार कर रहा है जिसे पैसे से नही बल्कि पूरी तरह से शहर की गंगा जमुनी तहजीब और आपसी भाई चारे की चिंता है। यह काम याकूब आतिशबाज का परिवार रामलीला की शुरूआत से ही करता चला आ रहा है। मुन्नन खां, जलील खा, सलीम भाई, शहजादे के साथ ही यह परंपरा अब हक्कू, मुनक्की, फिरोज और अब मोइन खान तक आ पहुंची है। मोइन कहता है कि रावण को आग में जलाने का काम तो गौरव का है। अच्छाई पर बुराई का प्रतीक रावण जलाने से उसे आर्शीवाद मिलेगा ऐसी उसकी मान्यता है।

Monday, September 14, 2009

पुरानी कोतवाली को बनाया जायेगा पार्क

चित्रकूट। कभी जहां मराठा राजवंश के पेशवा लोगों को दर्शन देने के साथ ही उनके बीच सौहार्द विकसित करने का काम किया करते थे वह इमारत अब बदहाल हो चुकी है। हालांकि डीएम ने इस ऐतिहासिक इमारत को कब्जा धारकों से मुक्त कराने के आदेश दिये हैं।
इस बेशकीमती इमारत का इतिहास लगभग छह सौ साल पुराना बताया जाता है। कालिंजर में शेरशाह सूरी की मौत के बाद जब मुगलों व पेशवाओं के बीच बेसिन की संधि हुई तो चित्रकूट के मुहाने का क्षेत्र अमृत नगर उन्हें जागीर के रूप में मिला। जबकि चित्रकूट सहित आसपास की रियासतें कालिंजर राजवंश के नजदीकी रहे चौबे परिवार को मिली। यहां पर आने के बाद पेशवा राजवंश के अमृत राव ने तमाम बावलियों के साथ ही मंदिर व कुओं का निर्माण कराया। उन्होंने पुरानी कोतवाली वाली इमारत अपने आम जनता के दर्शन व मुकदमे सुनने के लिए बनायी। अंग्रेजों का समय आने पर जब पेशवाओं का पतन हुआ तो उनके रहने की जगह नदी किनारे के महल को छोड़कर सभी संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया। पुरानी बारादरी को अंग्रेजों ने कोतवाली बना दरोगा को बैठा दिया। कोतवाली का भवन बनने के बाद इस विशालकाय इमारत में सबसे पहले पुलिस फिर अध्यापकों और फिर राजस्व विभाग के लोगों ने अवैध कब्जे कर डाले। कब्जा धारकों ने इस ऐतिहासिक इमारत के साथ छेड़छाड़ कर मनमाने ढंग से निर्माण किया। कई अधिकारियों ने यहां के कब्जों को हटाने का प्रयास किया। पूर्व जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह ने यहां पर यात्री निवास का निर्माण करवाया, पर यहां पर यात्री निवास बनने के बाद यहां कुछ दिन बाद कब्जा हो गया। अब प्रशासन ने यहां कब्जे हटवा विकास प्राधिकरण को पार्क बनाने का प्रस्ताव दिया है जिससे लोगों में खुशी है।

मुस्लिम लगाते परिक्रमा तो हिंदू पढ़ते नमाज

Sep 12, 11:14 pm
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चित्रकूट। ऐसा पौराणिक तीर्थ स्थल जहां पर कभी संत तुलसी के साथ ही अब्दुल रहीम खान खाना ने अपनी रचनाओं को जन्म दिया और भगवान की भक्ति की। यहां पर ऐसे इंसान आज भी रहते हैं जो मजहब की सीमाओं से नही बंधे। उनके लिए तो मानवता ही जुनून है और वे भाईचारे को कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
मुख्यालय के पुरानी बाजार के रहने वाले मो. आरिफ, हक्कल, अजहर हुसैन, सलीम व चीनी को इस बात का गर्व है कि वे भारतीय हैं और मजहब की सीमाओं ने नहीं बंधे। वे कहते हैं कि अयोध्या या गोधरा के दंगों से उन्हें नहीं मतलब। उन्हें तो चित्रकूट की मनोरमता भाती है। यहां पर त्योहार किसी का हो उनका काम तो भगवान की सेवा करना है। भगवान अल्लाह हो या राम इससे कोई मतलब नही। सुनील भारतीय के पिता का नाम सुलेमान है तो भाई फिरोज। इस शख्स की कहानी यह है कि इसे नमाज पढ़ने में भी उतना ही आनंद आता है जितना स्वामी कामतानाथ की परिक्रमा लगाने में। वह कहता है कि आंतरिक सुकून पाने के लिए रास्ते बना दिये गये हैं। दोनो रास्ते आंतरिक सुकून के साथ ही नेकी का पाठ पढ़ाते हैं। रमा दत्त मिश्र तो लगभग 30 सालों से ईद व बकरीद की नमाज एक साथ पढ़ रहे हैं। नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया तरौंहा की मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष हैं तो मोहम्मद सिद्दीकी तरौंहा की रामलीला कमेटी के मुख्य कर्ताधर्ता हैं। पुरानी बाजार की रामलीला में रावण को वर्षो से जलाने का काम मो. लतीफ का परिवार कर रहा है तो यहां की कमेटी में मु. इस्माइल की मुख्य भागीदारी रहती है। मुहर्रम के जुलूस में वैसे तो ढोल बजाते तमाम हिंदू युवा दिखाई दे जाते हें पर चालीस बसंत पार कर चुके महेन्द्र अग्रवाल, राज कुमार केशरी, प्रेम केशरवानी, राजेश सोनी, शरद रिछारिया सहित तमाम ऐसे नाम हैं जो छबील आदि लगाकर लोगों को शरबत, चाय व खिचड़ा खिलाने का काम करते हैं। यहां पर ब्राह्मण गौतम परिवार मुहर्रम के मौके पर नाथ बाबा की सवारी रखता है। इसे मुख्यालय में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। इस सवारी की सेवा करने वाले भी हिंदू हैं। जिनमें छाऊ लाल व प्रमोद कुमार प्रमुख हैं। ऐसा नही है कि खाली तीज त्योहारों तक ही यहां पर भाई चारे की मिशाल हो। किसी भी मृत आदमी की मिट्टी न बरबाद होने पाये इसके लिये लगभग पन्द्रह साल पहले पुरानी बाजार में मुक्ति धाम समिति बनाई गई थी। जिसमें हिंदुओं के साथ ही मुसलमानों की भी भागीदारी अच्छी संख्या में हैं। कोई भी लावारिस लाश के मिलने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार कर दिया जाता है।

Wednesday, August 12, 2009

हिंदू और मुसलमान मिलकर ही जलाये राष्ट्र ज्योति

Aug 11, 10:17 pm
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चित्रकूट। 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुबे कातिल में हैं' से होते हुये भले ही उनके विचार 'भज मन राम चरन सुखदायी' तक आ चुके हों पर आज भी सतहत्तर वर्ष के हो चुके गोपाल कृष्ण करवरिया के दिल में वही प्रेम का जज्बा मौजूद है जिसकी बदौलत उन्होंने चालीस सालों तक नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। देश की आजादी की लड़ाई में अगुवा रहे तरौंहा के करवरिया परिवार का यह वारिस आज देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फैलाई जा रही वैमस्यता से खासे व्यथित होकर एक खून और एक तासीर की बात ही नही करते बल्कि खुद ही कई मुसलमानों को श्री रामलीला, गंगा आरती व देश विदेश में चित्रकूट की विशेष पहचान बन चुके 36 सालों से लगातार आयोजित होने वाले राष्ट्रीय रामायण मेला से बड़ी ही शिद्दत से जोड़े हुये हैं। भले ही उनका साथ शुरुआती दौर के साथी मो. दद्दा छोड़ चुके हो पर मुहम्मद सिद्धीकी के साथ उनकी दोस्ती की मिसालें देते हजारों लोग इस शहर में घूम रहे हैं।
पिछले पचास सालों से मुहर्रम कमेटी की अध्यक्षता व श्री राम लीला व रामायण मेला में मुस्लिम बिरादरी की सहभागिता इस बात का खुला सबूत है।
उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंच चुके श्री करवरिया कहते हैं कि सन् 1955 में जब पहली बार कर्वी में नगर पालिका की स्थापना हुई तो वे अपने वार्ड से सभासद बन कर आये थे और तक से लगातार पिछले सत्र तक नगर पालिका परिषद का हिस्सा रहे। चार बार अध्यक्ष रहने के साथ ही दो बार सभासद रहे। शहर में जितने भी विकास के काम हुये वे सब उन्होंने शासन और प्रशासन के बीच सेतु बनकर करवाये। राष्ट्रीय रामायण मेले की परिकल्पना तो डा. लोहिया ने सन् 1966 में की थी पर इसकी शुरुआत स्थानीय लोगों के सहयोग से सन् 1974 में हुई और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में इसमें सक्रिय योगदान दे रहे हैं। वहीं तरौंहा में रामलीला की शुरुआत लगभग पचास साल पहले हुई। जो ददरी अखाड़े में बंद हो जाने के शुरु की गई।
उन्होंने कहा कि रामलीला को आयोजित करने के लिये किसी से चंदा नही लिया जाता लेते हैं और ना ही कोई कमेटी आज तक बनी है। यहां पर सब का काम बंटा हुआ है और हिंदू और मुसलमान सभी मिल कर हर साल इसे आयोजित करते हैं।
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुये बताते हैं कि आजादी के गीतों को सुनकर वे बड़े हुये। पिता राम बहोरी करवरिया व बड़े भाई जगदीश प्रसाद करवरिया के साथ ही चाचा मुरलीधर करवरिया, दीन दयाल करवरिया, जगन्नाथ करवरिया, जुगुल किशोर करवरिया व स्वामी महादेव के क्रांतिकारी होने के कारण देश भर के आजादी के दीवानों का उनके घर में मेला लगा रहता था। अंग्रेजों द्वारा उत्पीड़न झेला और यातनायें सहीं और धरना प्रदर्शन अनशन सब कुछ उन्होंने किया पर कभी किसी ईनाम या पुरस्कार का लालच नही किया। बताया कि मो. दद्दा का रामलीला व रामायण मेला में योगदान मे वे भुला नही सकते। खालिस हिंदू भी यहां उनके हाथों से ही रोटी खाया करते थे। आज यही काम यूसुफ मोहम्मद और मिर्जा कलीमुद्ीन बेग कर रहे हैं।
वैसे विधान सभा का चुनाव दो बार लड़ने वाले श्री करवरिया 22 वर्ष तक जिला सहकारी समिति के अध्यक्ष रहने के साथ ही क्रय विक्रय समिति व क्षेत्रीय सहकारी समिति से भी जुड़े रहे। तत्कालीन जिला बांदा में आईटीआई कालेज खुलने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास ने उन्हें पहला अध्यक्ष बनाया था। हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष के साथ ही नगर की गौरवशाली संस्था चित्रकूट इंटर कालेज की प्रबंध समिति के भी सदस्य रहे।
उन्होंने कहा कि अब उनका चौथापन है और वे चाहते हैं कि किसी प्रकार से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्यता समाप्त हो जाये और फिर से सब अपने पुराने दिनों की तरह देश के निर्माण में सक्रिय भागीदारी करें।

Sunday, June 21, 2009

पानी के लिए होने लगे यज्ञ व भजन

Jun 21, 02:45 am
चित्रकूट। 'उज्जवर मौला पानी दे पानी दे गुड़ धानी दे'। 'अब तौ दैवौ धोखा देह लाग' कुछ इसी तरह के जुमले अब आम आदमी के मुंह से सुनायी दे रहे हैं। सरकारी कैलेंडर भी बेमानी साबित सा दिखाई पड़ने लगा है। बाढ़ की समीक्षा बैठक अप्रैल के महीने में ही निपटा चुका प्रशासन अब इस इंतजार में है कि 15 जून तो कब का निकल गया पर अभी तक इन्द्र देव ने पानी नहीं बरसाया है। वैसे लोगों ने उनको मनाने के लिए मंदिरों में भजन कीर्तन के साथ यज्ञ व हवन का कार्यक्रम शुरू कर दिया है।
पांच सालों से पानी के लिए तरस रही बुंदेली जमीन पर पिछले साल पहली बरसात 8 जून को हुई थी, पर इस बार अभी तक बारिश न होने से बुंदेलखंड की धरा तप रही है। लोगों का कहना है कि मार्च महीने से सूर्य देव का प्रकोप झेल रहे वह लोग इस इंतजार में हैं कि कब मौसम अंगड़ाई ले और झमाझम बरसात हो पर मौसम अभी तक रूठा हुआ है। फिलहाल क्षेत्र के बरहा के हनुमान जी, लैना बाबा, श्री कामतानाथ जी महाराज, स्वामी मत्स्यगयेन्द्र नाथ जी महाराज, नांदी के हनुमान जी, सूर्य कुड़ समेत तमाम और भी देव मंदिरों में लोग पानी के बरसने की आस के साथ हवन, पूजन व कीर्तन व भंडारा करने में जुट गये हैं। बरहा के हनुमान मंदिर के पुजारी विजय तिवारी बताते हैं कि पानी का बरसना अब बहुत जरूरी है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु भगवान से केवल पानी ही मांग रहा है। मंदिर में कीर्तन, भजन और भंडारा कार्यक्रम लगातार चल रहा है। सबको उम्मीद है कि पानी जल्द ही बरसेगा।

Thursday, June 18, 2009

नान ने फिर ली एक जांबाज की जान

Jun 17, 02:23 am
चित्रकूट। बहादुर एसओजी सिपाही की शहादत ने एक बार फिर गत वर्ष शहीद हुए सिपाही अभयराज राय की यादें ताजा कर दी हैं। घटना के बाद दस्यु नान की क्रूरता भी उजागर हो गयी है।
मंगलवार को पचास हजार के इनामी दस्यु नान की गोली का शिकार हुए बहादुर सिपाही शमीम की मौत से पुलिस महकमा सदमे में है। गौरतलब है कि गत वर्ष 23 मई को इसी इलाके में दस्यु नान के साथ एसओजी टीम की मुठभेड़ हुई थी। जिससे कांस्टेबिल अभयराज राय दस्यु नान की गोली का शिकार होकर शहीद हुए थे। इस घटना के बाद जहां पुलिस ने दस्यु नान केवट पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था, वहीं मुठभेड़ में बदमाशों का सहयोग करने के आरोप में उसके दर्जन भर रिश्तेदारों को जेल भेजा था। इसके बाद दस्यु नान यमुना पट्टी में रहकर आपराधिक वारदातें करता रहा, किंतु पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका। लगभग एक साल बाद दस्यु नान ने लगभग उसी अंदाज में फिर दुस्साहस पूर्ण वारदात को अंजाम दे दिया। इस घटना ने जिले में पहले हुए शहीद जवानों की याद ताजा कर दी हैं। गौरतलब है कि 22 जुलाई 07 को कुख्यात दस्यु ठोकिया ने भी 6 एसटीएफ सिपाहियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने दस्यु ठोकिया के सफाये के निर्देश दिये थे। जिसकी परिणित में दस्यु ठोकिया हलाक भी हुआ। वैसे दस्यु ठोकिया ने वर्ष 04 में भी सीतापुर चौकी के दो सिपाहियों की हत्या कर रायफलें लूटी थीं। इसके पूर्व दस्यु भोला ने बहिलपुरवा थाना क्षेत्र में दो जीआरपी सिपाहियों की ट्रेन में हत्या कर रायफलें लूट ली थीं। हालिया घटना ने कुख्यात दस्यु नान केवट की क्रूरता भी उजागर की है। लगातार दो बहादुर सिपाहियों की शहादत का जिम्मेदार यह बदमाश आखिर कब तक पुलिस के हाथों ढेर होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

चित्रकूट में पुलिस की दस्यु नान केवट से मुठभेड़, सिपाही शहीद

Jun 17, 02:23 am
राजापुर (चित्रकूट)। पचास हजार के इनामी दस्यु नान केवट के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में एसओजी टीम का एक सिपाही शहीद हो गया। मुठभेड़ में दो सिपाही भी गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गये।
जानकारी के अनुसार राजापुर थाना क्षेत्र के जमौली गांव में एक केवट परिवार में सोमवार को बरहौं संस्कार कार्यक्रम था, जिसमें सुरवल निवासी इनामी बदमाश नान उर्फ घनश्याम केवट आया था। मुखबिर की सूचना पर दस्यु नान केवट की गिरफ्तारी के लिए एसओजी टीम के साथ राजापुर पुलिस ने मंगलवार को सुबह साढ़े दस बजे जमौली गांव निवासी राजकरन के घर में दबिश दी।
घर की तलाशी के दौरान पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा। इस पर पुलिस टीम बाहर आ गयी, किंतु मुखबिर ने दस्यु सरगना के घर के अंदर होने की ही बात कही। इस पर एसओजी टीम के सिपाही घर के पीछे की ओर से दीवार पर चढ़ने लगे। घर के अंदर छिपे दस्यु नान केवट ने सिपाहियों के नजदीक आने पर अपनी राइफल से कई फायर झोंक दिये, अचानक हुई फायरिंग से सिपाहियों को संभलने का मौका नहीं मिल सका।
गले में गोली लगने से कांस्टेबिल शमीम की मौके पर ही मौत हो गयी जबकि कांस्टेबिल दिलीप तिवारी व राजेंद्र सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये। इधर, घर के अंदर फायरिंग होने से बाहर खड़ी पुलिस टीम ने भी जवाबी फायरिंग करना शुरू कर दिया और घायल सिपाहियों को इलाज के लिए जानकीकुंड चिकित्सालय भेजा। बाद में हालत गंभीर होने पर घायल सिपाहियों को इलाहाबाद रिफर कर दिया गया।
पुलिस टीम की सूचना पर घटना स्थल पर भारी तादाद में पुलिस बल ने पहुंचकर दस्यु नान के छिपने वाले घरों की चारों ओर से घेरेबंदी कर ली थी। मौके पर पहुंचे डीआईजी के के त्रिपाठी व एएसपी जुगुल किशोर की मौजूदगी में देर शाम तक व पुलिस टीम के बीच रुक-रुक कर फायरिंग होती रही। बदमाश से मुठभेड़ की सूचना पर इलाहाबाद की एसटीएफ टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गयी थी। पुलिस ने गांव को चारों ओर से घेर कर शाम तक ग्रामीणों को बाहर निकाल दिया था। इस दौरान एक बार दस्यु नान ने पुलिस टीम पर हैंड ग्रेनेड भी फेंका, किंतु वह फट नहीं सका। खबर लिखे जाने तक देर रात तक पुलिस टीम की घेरेबंदी जारी थी।

Friday, June 12, 2009

..इन्हें तो सिर्फ निवालों की ही चिंता

Jun 12, 02:08 am
चित्रकूट। 'इन्हें न देश की चिंता है और न ही चिंता है समाज की इन्हें फिक्र है तो बस दो जून के निवालों की' वास्तव में ये बात भी करते हैं दो जून के निवालों की। सरकारें इनका साथ देती हैं अधिकारी चाहते हैं कि इन्हें दो जून की रोटी मिले। सौ दिन का काम भी पूरा मिले पर कभी जाति तो कभी धर्म तो कभी गांव की राजनीति तो कभी 'वोट' रोटी के बीच आ जाता है। फिर इन्हें लगता हैं कि शायद केंद्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना शायद इनके लिये बनी ही नही। एक महीने रोजगार जब गांव के प्रधान की चिरौरी-विनती करने के बाद नहीं मिला तो फिर ये सूरत और पंजाब का रुख कर लेते हैं। कुछ इस तरह की दास्तान है देश के सर्वाधिक दर्दीले इलाके बुंदेलखंड के इस पवित्र चित्रकूट जिले के उन राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना 'नरेगा' के पात्र कार्ड धारकों की। कार्ड धारकों के पास कार्ड नही अगर है भी तो वह प्रधान के पास है। कई बार शिकायतों और जी हजूरी के बाद काम मिला तो वह जीवन जीने के लिये नाकाफी। कई उदाहरण तो ऐसे कि काम किये हुये वर्षो बीते, मजदूरी पाने के लिये धरना, प्रदर्शन अनशन और अधिकारियों की सहानुभूति व दुत्कार भी सही, पर मामला ठाक के तीन पात रहा।
लगभग तीन सालों से चल रही नरेगा के कामों की पड़ताल करने जब यह संवाददाता मुख्यालय के लगभग अंदर ही बस चुके ग्राम माफी कर्वी में पहुंचा तो जिलाधिकारी इस अंबेडकर गांव में कामों का सत्यापन सभी जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ कर रहे थे। दो साल पहले कार्ड बनवाकर काम पाने की हसरत रखने वाले दुजिया को जिलाधिकारी के पास तक फटकने नही दिया गया। राम निहोरे, कैलाश, चंद्र भान और परवतिया ने बताया कि प्रधान नरेगा का काम उन्हीं से करवाता है जो उसकी जी हजूरी करते हैं। वैसे मुख्यालय के समीपवर्ती गांव होने का फायदा इसे मिला और तमाम काम यहां पर प्रधान ने संपादित करवाये। कामों की क्वालिटी भी इस लिये ठीक थी क्योंकि नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों की नजरों में रहने के साथ ही भ्रमण में आने वाले उच्चाधिकारियों को यहां का भ्रमण अधिकारी सुगमता से करा देते हैं।
संवाददाता ने दूसरा गांव अंबेडकर ग्राम भारतपुर ग्राम पंचायत के राजस्व ग्राम खपटिहा व रामपुर माफी को चुना। कभी डाकू ठोकिया के आतंक के कारण इस गांव में जाने की हिम्मत अधिकारियों क्या पुलिस की नही होती थी, पर आज उसकी मौत की बाद हालात काफी जुदा दिखाई दे रहे हैं। दबंग प्रधान व सचिव की त्रासना का शिकार सभी मजदूर हैं। दो साल पहले यहां पर रोजगार गारंटी से बनी सड़क की मजदूरी दर्जनों बार प्रदर्शन व अनशनों के बाद भी नही मिली। काम देने की हालत यह है कि वर्ष 2007 में बने तमाम कार्डो पर कही दस दिन तो कहीं पर पन्द्रह से बीस दिन की मजदूरी चढ़ी दिखाई देती है। गांव के मजदूर अधिकांश पंजाब जाकर कमाने या फिर अस्सी प्रतिशत लोग मौत के मुंह में घुसकर खदानों में पत्थर तोड़ने के काम का यकीन सिर्फ इस लिये करते हैं क्योंकि वहां पर काम करने के बाद पैसा चोखा मिलता है।
अधिकारी की जुबानी
नरेगा के मामले में परियोजना निदेशक राम किशुन साफ हैं। कहते हैं कि उनका काम ग्राम पंचायतों के काम के आधार पर पैसा देना है। इस वर्ष की कुल उपलब्ध धनराशि 1507.97 लाख में 136.54 लाख व्यय करके 6027 कामों को शुरु करवा दिया गया है। हर काम को देखने के लिये अधिकारी मौके पर लगातार जाते हैं। जहां कहीं भी शिकायतें मिलती है उन्हें दूर किया जाता है।
समस्यायें मजदूरों की
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के निर्देशों का पालन कोई भी ग्राम पंचायत नही करती। इस बात की तस्दीक अक्सर अधिकारी भी करते हैं। पानी, दवा या फिर बच्चों को खिलाने के लिये एक श्रमिक कहीं पर कभी मिला ही नहीं। मजदूरों को बैठकर सुस्ताने के लिये भी छाया की व्यवस्था कहीं होती दिखाई नही दी। मजदूर कहते हैं कि काम पूरा होने के बाद पैसा मिल जाये यही काफी है।

Saturday, June 6, 2009

घाघरा पलटन के नाम से ही खौफ खाते थे अंग्रेज

Jun 06, 02:22 am
चित्रकूट। 'चमक उठी थी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।' एक ऐसी बुंदेली महिला जिसे कलम की ताकत ने वह बुलंदी दी कि वह आजादी के दीवानों की फेहरिस्त में अमर हो गयी।
भगवान राम की कर्मभूमि की एक महिला ऐसी भी थी जिसके नाम से ही अंग्रेज डरते थे। इस वीरांगना का नाम था शीला देवी। घाघरा पलटन की इस नायिका के कारनामों का यह हाल था कि सन 1857 के पन्द्रह साल पहले कोई भी महिला घाघरा चोली पहने सड़क पर निकलती थी तो उसे पहले पुलिस की तफ्शीस से होकर गुजरना पड़ता था और थोड़ा भी शक होने पर उसे जेल भी जाना पड़ता था। अंग्रेजों का बनाया बांदा गजट इस बात की पुष्टि करता है कि उन दिनों जेलों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं बंद हुई थी। इस पलटन ने 6 जून 1842 में ऐसा कारनामा दिखाया कि अंग्रेजी सेना के पैर बुंदेलखंड के इस भूभाग से उखड़ से गये। 'राम रहीमा एक है, दो मत समझे कोय' का उद्घोष करने वाली शीला देवी की घाघरा पलटन जब अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तान के साथ इस मंदाकिनी के पावन तट पर गायों को काटकर बंगाल भेजे जाने की बात बतातीं तो महिलाएं घर का चूल्हा चौका छोड़कर उसके साथ हो लेती। पलटन में लगभग पन्द्रह सौ महिलाएं थीं। तुलसीदास महाविद्यालय के पूर्व प्रवक्ता डा. अजय मिश्र ने बुंदेलखंड के निवासियों का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रतिभाग पर पूरा अध्ययन करने के बाद बताया कि घाघरा पलटन में जितनी महिलाएं हिंदू थी उतनी ही मुस्लिम भी। दोनों का काम समाज को जगाना था। उन्होंने कहा कि आंदोलन की शुरुआत करने का काम शीला देवी की घाघरा पलटन ने ही किया था। वैसे तो इसमें शामिल अधिकतर महिलाएं अशिक्षित थीं पर वे युद्ध कौशल से भली भांति परिचित थी। तेज दिमाग की इन महिलाओं ने जब बुंदेली मस्तिष्क में जब अंग्रेजों के प्रति नफरत भरने का काम किया तो मर्द तो आगे आये ही यह भी घाघरा चोली के साथ तलवारें लेकर सामने आ गयीं। इतिहासकार बताते हैं कि 6 जून की घटना की पूरी रुप रेखा शीलादेवी की ही देन थी। इस अमर सेनानी ने ही मऊ तहसील में कार्यरत अंग्रेज अफसरों को उनके कार्यालयों व निवास से घसीटकर बाहर निकाला था। बाद में दस अंग्रेज पुरुषों को फांसी पर लटका दिया। बाद में सरकारी सामग्री की लूटपाट करते आजादी के दीवाने बबेरू से केन को पकड़कर बांदा पहुंचे और आंदोलन गतिशील हो गया।

अनाज के दानों पर बनाये वन व झरने

Jun 06, 02:22 am
चित्रकूट। धर्मनगरी के कलाकार एक बार फिर अपनी प्रतिभा की बानगी से लोगों को चमकृत करने का काम कर रहे हैं। मामला चुनाव का हो या आतंकवाद का या फिर पर्यावरण का। यहां की मिट्टी के कलाकार जमाने के साथ अपनी छाप छोड़ने का अवसर छोड़ना तो जैसे जानते ही नही। पेट की तिल्ली का दर्द सहने के कारण देश के राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले विनय कुमार साहू ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक बार फिर अपनी प्रतिभा की बानगी प्रस्तुत की।
अपने निवास लक्ष्मणपुरी में ही चौदह प्रकार के अनाजों के साथ प्रयोग कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प एक बार फिर दोहराया। उसकी कलाकृतियां प्राकृतिक दृश्यों से भरी हुई थी। इनमें नदी, पहाड़, झरने और वन व सुन्दर लताओं वाले पेड़ दिखाई दे रहे थे। प्रकृति के सौंदर्य को प्रस्तुत करने का तरीका उसने विभिन्न तरह के फूलों का चुना। दिन भर विनय की बनाई कलाकृतियों को देखने वालों का तांता लगा रहा। इसमें मुख्य रुप से ग्रामोदय विवि के कला प्राध्यापक डा. प्रसन्न पाटकर, भारतीय साहित्यिक संस्थान के अध्यक्ष बी बी सिंह, छेदी लाल तिवारी, आनंद राव तैलंग, पंकज अग्रवाल, जीतेन्द्र उपाध्याय आदि सैकड़ों लोग पहुंचे। कलाकृतियों को बनाने वाले कलाकार विनय साहू ने बताया कि यह काम उसने देश के मशहूर पर्यावरणविद् डा. जी डी अग्रवाल की प्रेरणा से किया है। इस काम में चना, गेंहू, चावल, मूंग दाल, मसूर दाल, चना दाल, इलायची, लौंग, सुपाड़ी, सरसों, तिल, मेथी, लहसुन, धनिया, नमक, अंडे के खोल के अंदर प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया।

Friday, May 29, 2009

जिला अस्पताल का प्राइवेटाइजेशन : कहीं खुशी तो कहीं गम

May 29, 01:55 am
चित्रकूट। यहां के जिला अस्पताल को प्राइवेट हाथों में जाने की बात क्या उठी अस्पताल के सीएमएस समेत सभी डाक्टरों को सांप सा सूंघ गया। सभी इस जुगाड़ में लग गये कि आगे की कहानी कैसी होगी। प्राइवेट कम्पनी में वे काम कर पायेंगे या नहीं। वैसे जहां प्राइवेट कम्पनी में जाने की बात पर डाक्टर आशंकित हैं वहीं आम आदमी प्रसन्न। लोगों का मानना है कि चलो इस रिफर केंद्र बन चुके अस्पताल में इलाज तो मिलेगा। क्योंकि जिला अस्पताल के अधिकतर डाक्टर या तो बाहर की दवा लिखते हैं या फिर अपने घरों में प्रेक्टिस कर मरीजों का शोषण करते हैं।
उधर बुधवार की सुबह यहां के अस्पताल के प्राइवेट सेक्टर में जाने की खबर पर जिला अस्पताल के सीएमएस समेत डाक्टर सकते में रहे। डाक्टरों का मानना था कि अगर अस्पताल प्राइवेट में चला गया तो उनकी ऊपरी कमाई का क्या होगा। उधर अस्पताल में आये मरीज राम लोचन, कृष्ण कुमार, रानी, कैलाशी आदि ने कहा कि अस्पताल में सिर्फ डाक्टर हैं वे दवायें बाहर की लिखते हैं। गंभीर बीमारी होने पर घरों में डिस्पेंसरी पर बुलाते हैं। जब पैसा ही देना है तो कम से कम अस्पताल का बेड़ तो मिलेगा।

अब इलाज में भी भारी

May 29, 01:55 am
चित्रकूट। चुनाव से फुर्सत पाने के बाद प्रशासन धर्मनगरी के सुंदरीकरण कार्यक्रम को गति देने में जुट गया है। इसके चलते गुरुवार को जिलाधिकारी ने अफसरों के साथ तीर्थ क्षेत्र के विभिन्न स्थलों का भ्रमण किया। उन्होंने अवैध कब्जों को जल्द हटाने के निर्देश दिये।
जिलाधिकारी हृदेश कुमार ने बेड़ी पुलिया, रामघाट, परिक्रमा मार्ग का भ्रमण कर सुंदरीकरण कार्यक्रम के तहत हो रहे कार्यो का निरीक्षण किया और कार्य योजना तैयार कर काम शुरू कराने को कहा। उन्होंने बेड़ी पुलिया के पास सड़क चौड़ीकरण व बनवासी भगवान श्रीराम, सीता व लक्ष्मण की मूर्तियों के स्थल का सुंदरीकरण 31 जुलाई तक करने के निर्देश लोनिवि अधिशासी अभियंता को दिये। इसके बाद उन्होंने रामघाट स्थित कंट्रोल रूम के कमरों का सुंदरीकरण कराकर, ऊपर एक पारदर्शी हाल का निर्माण तत्काल शुरू कराने व बगल में बह रहे लुप्त सरयू नाला अन्य स्थलों से बह रहे गंदे पानी को सीवर लाइन से जोड़ने के निर्देश दिये। उन्होंने चरखारी स्टेट के रामघाट स्थित मंदिर का सुंदरीकरण, रामघाट की टूटी पटिया मंदिरों के सुधार, बेंचों की मरम्मत, पानी की टंकी बनवाने, महिला घाट व रामघाट से बूढ़े हनुमान जी तक का रास्ता बनवाने के निर्देश दिये। परिक्रमा मार्ग में भ्रमण के दौरान जिलाधिकारी ने चोपड़ा तालाब का कार्य नरेगा से चार दिन के अंदर कराने के निर्देश एमआई को दिये। उन्होंने कहा कि तीस-तीस मीटर के आठ टीन शेड परिक्रमा मार्ग में लगाने के लिए जगह चिह्नित कर ली जाये। नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी जितेंद्र कुमार आनंद ने बताया कि इस क्षेत्र में 6 सफाई कर्मी लगे है। जिलाधिकारी ने बताया शासन इस क्षेत्र के सुंदरीकरण का कार्य करा रहा है। कार्य के बाद देखरेख की जिम्मेदारी किसी विभाग को दी जायेगी। उन्होंने चरण चिह्न स्थल का गेट रास्ते के टायल्स व सामने प्राचीन भरत मंदिर के पास अवैध कब्जे को जल हटाने के निर्देश एसडीएम सदर को दिये। परिक्रमा मार्ग से लक्ष्मण पहाड़ी जाने वाले रास्ते के सुंदरीकरण की कार्य योजना बनाने व यात्रियों के विश्राम कक्ष के निर्माण स्थल के चिह्नांकन करने के निर्देश दिये। मुख्य विकास अधिकारी पी सी श्रीवास्तव, एसडीएम सदर हृषिकेश भास्कर यशोद, अधिशासी अभियंता लोनिवि ए के शर्मा आदि मौजूद रहे।

जब नही मिले स्मार्ट कार्ड तो कैसे हो इलाज

May 29, 01:55 am
चित्रकूट। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के अच्छे स्वास्थ्य को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का काम यथार्थ क्या कागजों पर भी नही दौड़ पा रही है। मार्च तक सभी बीपीएल परिवारों को स्मार्ट कार्ड मिलने की जगह अभी तक लगभग एक तिहाई गरीबों के हाथों में ही कार्ड पहुंच पाये हैं, पर उन्हें भी प्रदेश सरकार के इस जादूई कार्ड का लाभ मिल नही रहा है। प्राइवेट चिकित्सकों ने भी पहले इस योजना के तहत अपने आपको रजिस्टर्ड तो करवा लिया था पर सेवा करने की जगह व्यवसाय में तब्दील हो चुके चिकित्सकों व अस्पतालों में गरीबों को मुफ्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। मार्च तक पूरे कार्ड न बन पाने से नाराज अधिकारी चुनाव से निपटने के बाद अब कार्ड बनाने वाली एजेन्सी के पेंच कसने के मूड में नजर आ रहे हैं।
मामला कुछ इस प्रकार है। 3 अक्टूबर 08 को शासन ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरुआत की थी। इसकी सबसे पहली शुरुआत इसी जिले से हुई थी। कार्यक्रम के दौरान अधिकारियों ने बताया था कि जिले में कुल 78047 बीपीएल कार्ड धारक हैं। इन सबके कार्ड 31 मार्च तक बना दिये जायेंगे। इस कार्ड से गरीबों को एक साल के अंदर प्राइवेट चिकित्सालयों में 30 हजार का इलाज मुफ्त कराने की घोषणा कर जिले के अधिकारियों ने जानकीकुंड चिकित्सालय, डा. सुरेन्द्र अग्रवाल व डा. महेन्द्र अग्रवाल के यहां इसके केंद्र स्थापित कर दिये। इस कार्ड को बनाने वाली एजेन्सी आईसीसीआई लोम्बार्ड के अधिकारियों ने भी दावा किया था कि वे 31 मार्च तक पूरे कार्ड बना देंगे, पर मई गुजरने के बाद भी अभी तक कुल 29554 कार्ड ही बन पाये। कर्वी ब्लाक में 8378, पहाड़ी में 8485, मानिकपुर में 3351 और मऊ में 6029 लोगों के ही कार्ड बन पाये हैं। इसके साथ ही रही इलाज की बात तो अभी तक मिले बीपीएल कार्ड धारक राम नरेश, राम किशोर, स्वामी दीन आदि ने बताया कि वे जहां भी इलाज कराने गये हर जगह पैसे पर ही इलाज मिला। सभासद कन्हैया लाल वर्मा ने कहा कि जब सरकार गरीबों को सुविधायें दे रही है तो अधिकारियों के बाद अब डाक्टर भी सिर्फ पैसे के पीछे भागने लगे हैं। कहा कि पहले तो बीपीएल कार्ड के लिये तमाम जद्दोजहद करनी पड़ी है फिर अब इलाज में भी भारी मारा-मारी है।

Tuesday, May 26, 2009

आतंकवाद से लड़ने का माध्यम तूलिका

May 27, 02:08 am
चित्रकूट। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध और वह भी सिर्फ एक तूलिका से। आतंकवाद के खिलाफ तूलिका आंदोलन का आगाज 3 से 5 मई तक जब टाउन हाल में किया तो 300 मीटर का कपड़ा इन कलाकारों के लिए छोटा पड़ गया। 48 घंटों में पूरे होने वाले इस काम को कलाकारों ने सिर्फ 30 घंटे में पूरा कर डाला।
इस तूलिका आंदोलन में प्रमुख भूमिका निर्वहन करने वाले ग्रामोदय विश्वविद्यालय में कला विभाग के प्रमुख डा. प्रसन्न पाटकर बताते हैं मुम्बई के ताज होटल, नारीमन हाउस व ओबेराय कांटीनेंटल में हुए आतंकी हमलों के बाद हर हिंदुस्तानी के दिलो दिमाग पर वह खौफनाक मंजर छा गया था। हर एक भारतवासी उस मंजर को अपने जेहन में रखकर आतंकियों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए आगे आने के बारे में सोचने लगा। यहां पर भी जब कलाकारों की बिरादरी में इसकी बात चली तो उत्साही कलाकार सामने आये। ये सब उनके पुराने व नये छात्र थे। सौरभ श्रीवास्तव, विनय साहू, दिलीप गुप्ता, सोनी, अभय वर्मा, मयंक ने मन बनाया कि तीन सौ मीटर कपड़े पर आतंकवाद से निजात के लिए व लोगों को जागरूक करने के लिए पेंटिंग बनायी। पेंटिंग जोरदारी के साथ होने के बाद चुनाव का दौर होने के कारण आचार संहिता आडे़ आ गई। तमाम पेंच फंसने के बाद किसी प्रकार से 300 मीटर की इस पेंटिंग का डिस्प्ले मंगलवार को चित्रकूट इंटर कालेज के विशाल मैदान में किया गया। यहां उत्साही कलाकारों दिलीप गुप्ता, सौरभ श्रीवास्तव और विनय साहू ने बताया कि देश के लिए काम करके वे काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

Monday, May 25, 2009

मुख्यालय के समीपवर्ती गांवों में चरमरा रही पेयजल व्यवस्था

चित्रकूट। गर्मी बढ़ने के साथ ही जिले की पेयजल व्यवस्था चरमरा रही है। मुख्यालय के समीपवर्ती गांवों में जलापूर्ति को पड़ी पाइप लाइन ध्वस्त होने की कगार पर है जिसमें हफ्ते में बमुश्किल एक बार पानी मिल रहा है। मौसम में उमस व गर्मी बढ़ने के साथ ही जिले में पेयजल को लेकर लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।
सरकारी आंकड़ों पर गौर करे तो जिले के 1674 में मात्र 455 में पानी है। चिह्नित किये गये 48 तालाबों में 43 नहरों से भरे जा चुके है, जबकि 157 तालाब निजी नलकूपों से भरे जाने है। इसके अलावा 86 पोखरों को नहर विभाग द्वारा भरा जा चुका है। पशु पेयजल की दृष्टि से गत वर्ष बनाई गई 550 चरही की सफाई के निर्देश जारी किये गये है।
सरकारी आंकड़ों में भले ही विभागीय अफसर पेयजल समस्या से इंकार करे, किंतु हकीकत इससे अलग है। मुख्यालय से महज सात किमी दूरी पर कर्वी-राजापुर मार्ग में बसे चकजाफर गांव में लगभग ढाई हजार की आबादी है। गांव दलित बस्ती के तीन हैडपंप तीन माह पूर्व जवाब दे चुके है, किंतु अब तक उनके रिबोर नहीं कराये गये। इसके अलावा गांव के आठ हैडपंप खराब पड़े है, शेष बचे हैडपंपों में पानी भरने को भारी भीड़ जुटती है। घरों की महिलाओं का सीधा फरमान है कि बच्चे हो या बूढ़े हैडपंप में नहाने के बाद दो बाल्टी पानी लेकर ही घर लौटे। गांव के दर्जन कुयें पूरी तरह सूख चुके है। गांव में जल संस्थान की पाइप लाइन भी पड़ी है जिसमें दौ सौ से ज्यादा लोगों के कनेक्शन भी ले रखे है, मगर पाइप लाइन क्षतिग्रस्त होने से सप्ताह में एक दिन जलापूर्ति हो रही है। गांव के चौराहे पर लगा एक मात्र स्टैड पोस्ट भी बिगड़ा तो आज तक नहीं बन सका। ग्राम प्रधान मैना देवी का कहना है कि अब तक हैडपंप के पास बनी चरही सफाई के निर्देश नहीं आये है। गांव में पांच स्टैड पोस्ट लगाने के लिये पैसा जमा किया जा चुका है। इसके अलावा टैकर से जलापूर्ति के लिये ग्राम पंचायत की ओर से 15 दिन पूर्व प्रस्ताव भेजा गया था, किंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई। बताया कि निजी नलकूपों से गत वर्ष भराये गये दो तालाबों का भुगतान अब तक नहीं हो सका है।

दोगुनी हो गयी पेयजल की मांग

May 26, 02:22 am
चित्रकूट। पिछले दस सालों में जनसंख्या में हुई वृद्धि को आधार बनाकर चित्रकूट धाम जल संस्थान के अधिकारियों ने जो रिपोर्ट शासन प्रशासन को भेजी है,उसके अनुसार जिले में पेयजल व्यवस्था का हाल आने वाले दिनों में और भी ज्यादा खराब हो सकता है। विभाग का दावा है कि अब पेयजल की मांग दो गुनी हो चुकी है जबकि पानी की उपलब्धता में पच्चीस प्रतिशत की कमी है। आंकड़े भूमि का जलस्तर गिरने की भी कहानी सुनाते हैं। वर्ष 2001 में 79707 के बाद वर्ष 2007 में 104676 हो गयी पानी की मांग भी 8.43 हो चुकी है, पर विभाग के आंकड़े कुल 5.17 एमएलडी पानी पिलाने का दावा कर रहे हैं। जबकि सच्चाई इससे भी ज्यादा खराब है।
इस तरह का हाल सरकार के सामने रखने वाले जल संस्थान के अधिकारी अभी भी तब के आंकड़ों को सामने रखकर बैठे हैं जब समूचा बुंदेलखंड सूखे की बदहाली के दौर से गुजर रहा था। दो साल पुराने आंकड़े ही सरकार को भेजकर अपने काम की इतिश्री मानने वाले विभाग के उच्चाधिकारियों ने दबी जुबान में स्वीकार किया कि नये आंकड़े बनाकर देने में स्थानीय अधिकारी टालमटोल करते हैं तो पुराने आंकड़ों से ही काम चलाना पड़ता है। विभाग के आंकड़ों के हिसाब से कर्वी की जनसंख्या वर्ष 2001 में 40673 थी जबकि 2007 में यह 48311 हो गयी। जबकि पेयजल की मांग 3.89 एमएलडी के सापेक्ष आपूर्ति 2.45 ही हो पा रही है। सीतापुर का हाल भी कुछ इसी तरह का है। यहां की 9763 आबादी में पानी की मांग 1.59 के सापेक्ष कुल 0.84 एमएलडी ही सप्लाई विभाग कर पा रहा है। मानिकपुर की 21313 जनसंख्या की मांग 1.72 है पर यहां पर सप्लाई 0.95 एमएलडी ही हो पा रही है। राजापुर की 15289 आबादी को 1.23 एमएलडी के सापेक्ष कुल 0.93 ही सप्लाई जल संस्थान दे पा रहा है। जल संस्थान के अधिशाषी अधिकारी कहते हैं कि इन आंकड़ों के बाद जल निगम ने तमाम नये नलकूप बनाये थे। जल संस्थान उनका पानी भी ले रहा है पर तमाम जगहों पर तकनीकी खराबी मामूली होने के कारण उन्हें कागजों पर दर्शाना अभी उचित नही है। इस बार पानी का संकट उतना बड़ा नही होगा।

Saturday, May 23, 2009

पेंशन के लिए चक्कर लगा रहे दस हजार वृद्ध

May 24, 02:15 am
चित्रकूट। भले ही यूपीए गठबंधन ने बुजुर्ग कांग्रेसी व सहयोगी पार्टियों के वृद्धों का खास ख्याल रख कैबिनेट मंत्री बना दिया हो पर गर्मी की लपटों से कराहते बुंदेलखंड के वृद्धों के यह मौसम जान लेवा साबित हो रहा है। गर्मी के इस मौसम में जिले के लगभग दस हजार वृद्ध केवल तीन सौ रुपये के लिए समाज कल्याण विभाग के अलावा डीएम कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। इनमें तो कई ऐसे भी हैं जो दलालों की चढ़ौती भी चढ़ा चुके हैं पर लगभग आठ-आठ महीनों से अपनी एड़ियां रगड़ रहे हैं। इन सब बातों से इतर जिला समाज कल्याण अधिकारी नागेन्द्र प्रसाद मिश्र के मुंह से इनको पेंशन दिलाने के लिए आशा भी खत्म हो चली है। वे कहते हैं कि क्या करें पिछले मार्च से लेकर चुनाव की अधिसूचना जारी होने तक दो बार में लगभग दस हजार फार्म भेजे जा चुके हैं। अब जब तक 'ऊपर' से अनुमति नहीं आती तो मजबूर हैं।
अधिकारी कहते हैं कि इस बार पूरी तरह से सिस्टम बदल गया है। पहले आवेदन लेकर लखनऊ जाने पर स्वीकृति तुरंत मिल जाती थी पर अब व्यवस्थाएं कुछ ऐसी कर दी गयी हैं कि सभी को इंटरनेट पर अपलोड करना है। यह काम तो हो रहा है, पर अभी चुनाव के चक्कर में सभी कुछ गड़बड़ है। वे बताते हैं कि उन्होंने पिछले मार्च से लेकर अधिसूचना जारी किये जाने तक दो बार में लगभग दस हजार लोगों के आवेदन लखनऊ भेजे थे पर अभी लगता नही कि इनकी स्वीकृति जल्द हो पायेगी। मानिकपुर के रहने वाले मनी राम, कैलास चंद्र, जोगिया व मऊ के राम निहोरे, कन्हैया, कलुआ, कर्वी के राम भवन पासी ,दुर्गेश चंद्र कहते हैं कि विभाग में दलालों का बोलबाला है। जो दलालों को चढ़ावा देता है उसका ही काम होता है। अधिकारी के साथ ही हर एक बाबू ने अपना-अपना दलाल पाल रखा है। पैसा देने के बाद भी काम नही हो पाता है। उन्होंने बताया कि कई बार वे अपनी समस्या को लेकर जिलाधिकारी को मिल चुके है। उनका पत्र जिलाधिकारी इन्हीं के पास भेज देते हैं, पर काम ठेले भर का नहीं होता। भाकपा के जिला सचिव रुद्र प्रसाद मिश्र कहते हैं कि गरीबों का पैसा खाने का रोग तो हर सरकारी अधिकारी को लग चुका है। अब तो मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार कर लिया है कि सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।

Sunday, May 17, 2009

सावन में पावन कर्मो से सराबोर रहेगा धाम

May 18, 02:06 am
चित्रकूट। सवा पांच करोड़ शिवलिंग, 108 पुराणों की स्थापना, प्रवचन, महारुद्राभिषेक, साथ ही श्रीरामलीला और भजनों का आनंद.. इतने सारे भक्तिपूर्ण कार्य आगामी श्रावण मास में इस विश्व प्रसिद्ध धाम की पावन धरती पर संपन्न होने जा रहे हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन से चित्रकूट में भोले के भक्तों का जमावड़ा लगेगा, जो सावन माह में चलेगा। इस धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिये देश भर से सामान्य व विशिष्ट जन इकट्ठा होंगे।
संकल्पपूर्ति महामहोत्सव के 45वें महारुद्र महायज्ञ का आयोजन 7 जुलाई से प्रारंभ होगा। इस विशाल कार्यक्रम के आयोजक तो वैसे मानस मर्मग्य पं. देव प्रभाकर शास्त्री हैं, पर आज अगले हफ्ते से शुरू होने वाली तैयारियों का जायजा लेने आये फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा व फिल्म निर्माता केवल कृष्ण ने मंच की व्यवस्था के साथ ही हर एक काम के लिये गहरी छानबीन कर निर्देश दिये। रविवार सुबह लगभग 11 बजे सतना से सड़क मार्ग से जिला मुख्यालय आये यहां उन्होंने पुलिस अधीक्षक राकेश प्रधान से मिलकर आयोजित होने वाले कार्यक्रम की पूरी जानकारी दी और सुरक्षा व्यवस्था की मांग की। पुलिस अधीक्षक ने उन्हें पूरा सहयोग देने का वादा किया। इसके बाद वे रामायण मेला परिसर पहुंचे। वहां पर पूरा परिसर देखने के बाद रैनबसेरा भी देखा। हर कमरे में जाकर खुद हर एक चीज का जायजा लिया। विशाल पंडाल लगवाने के लिये मंच व्यवस्था, कैलाश, महाराज श्री धाम, पुराणों की स्थापना प्रसाद पंडाल के साथ ही रूकने के साथ ही अन्य व्यवस्था सम्बन्धी कार्यो के बारे में निर्देश दिये। उनके साथ इलाहाबाद, बनारस,जबलपुर, आगरा व सतना के आर्कीटेक्ट उत्तम बनर्जी भी आये थे। उन्होंने शामयाना बनाने वालों को निर्देश दिये कि वे ऐसा पंडाल बनायें कि कहीं पर भी पानी नजर नही आना चाहिये क्यों कि पूरा कार्यक्रम सावन के महीने का है। सब कुछ देखने सुनने के बाद उन्होंने रामायण मेला परिसर में मेले के कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया व प्रचार मंत्री करूणा शंकर द्विवेदी से भी मुलाकात की। उन्होंने उन्हें सैंतीस सालों के रामायण मेला के इतिहास के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने सिया राम कुटीर में जाकर नाना जी देशमुख से मुलाकात की। यहां पर दीन दयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव भरत पाठक ने उन्हें कार्यक्रम के लिये हर सहयोग देने की बात कही। उनके साथ उनके जीजा सुरेन्द्र सोहाने व सतना व इलाहाबाद के काफी लोग थे।

Friday, May 8, 2009

अन्याय : इतिहास के पन्नों में जगह नहीं दी गयी चित्रकूट के रणबांकुरों को


इतिहास की इबारत गवाही देती है कि हिंदुस्तान की आजादी के प्रथम संग्राम की ज्वाला मेरठ की छावनी में भड़की थी। किन्तु इन ऐतिहासिक तथ्यों के पीछे एक सचाई गुम है, वह यह कि आजादी की लड़ाई शुरू करने वाले मेरठ के संग्राम से भी 15 साल पहले बुन्देलखंड की धर्मनगरी चित्रकूट में एक क्रांति का सूत्रपात हुआ था। पवित्र मंदाकिनी के किनारे गोकशी के खिलाफ एकजुट हुई हिंदू-मुस्लिम बिरादरी ने मऊ तहसील में अदालत लगाकर पांच फिरंगी अफसरों को फांसी पर लटका दिया। इसके बाद जब-जब अंग्रेजों या फिर उनके किसी पिछलग्गू ने बुंदेलों की शान में गुस्ताखी का प्रयास किया तो उसका सिर कलम कर दिया गया। इस क्रांति के नायक थे आजादी के प्रथम संग्राम की ज्वाला मेरठ के सीधे-साधे हरबोले। संघर्ष की दास्तां को आगे बढ़ाने में बुर्कानशीं महिलाओं की ‘घाघरा पलटन’ की भी अहम हिस्सेदारी थी।आजादी के संघर्ष की पहली मशाल सुलगाने वाले बुन्देलखंड के रणबांकुरे इतिहास के पन्नों में जगह नहीं पा सके, लेकिन उनकी शूरवीरता की तस्दीक फिरंगी अफसर खुद कर गये हैं। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लिखे बांदा गजट में एक ऐसी कहानी दफन है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। गजेटियर के पन्ने पलटने पर मालूम हुआ कि वर्ष 1857 में मेरठ की छावनी में फिरंगियों की फौज के सिपाही मंगल पाण्डेय के विद्रोह से भी 15 साल पहले चित्रकूट में क्रांति की चिंगारी भड़क चुकी थी। दरअसल अतीत के उस दौर में धर्मनगरी की पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे अंग्रेज अफसर गायों का वध कराते थे। गौमांस को बिहार और बंगाल में भेजकर वहां से एवज में रसद और हथियार मंगाये जाते थे। आस्था की प्रतीक मंदाकिनी किनारे एक दूसरी आस्था यानी गोवंश की हत्या से स्थानीय जनता विचलित थी, लेकिन फिरंगियों के खौफ के कारण जुबान बंद थी।कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाते हुए मराठा शासकों और मंदाकिनी पार के ‘नया गांव’ के चौबे राजाओं से फरियाद लगायी, लेकिन दोनों शासकों ने अंग्रेजों की मुखालफत करने से इंकार कर दिया। गुहार बेकार गयी, नतीजे में सीने के अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रही। इसी दौरान गांव-गांव घूमने वाले हरबोलों ने गौकशी के खिलाफ लोगों को जागृत करते हुए एकजुट करना शुरू किया। फिर वर्ष 1842 के जून महीने की छठी तारीख को वह हुआ, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। हजारों की संख्या में निहत्थे मजदूरों, नौजवानों और बुर्कानशीं महिलाओं ने मऊ तहसील को घेरकर फिरंगियों के सामने बगावत के नारे बुलंद किये। खास बात यह थी कि गौकशी के खिलाफ इस आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम बिरादरी की बराबर की भागीदारी थी। तहसील में गोरों के खिलाफ आवाज बुलंद हुई तो बुंदेलों की भुजाएं फड़कने लगीं।देखते-देखते अंग्रेज अफसर बंधक थे, इसके बाद पेड़ के नीचे ‘जनता की अदालत’ लगी और बाकायदा मुकदमा चलाकर पांच अंग्रेज अफसरों को फांसी पर लटका दिया गया। जनक्रांति की यह ज्वाला मऊ में दफन होने के बजाय राजापुर बाजार पहुंची और अंग्रेज अफसर खदेड़ दिये गये। वक्त की नजाकत देखते हुए मर्का और समगरा के जमींदार भी आंदोलन में कूद पड़े। दो दिन बाद 8 जून को बबेरू बाजार सुलगा तो वहां के थानेदार और तहसीलदार को जान बचाकर भागना पड़ा। जौहरपुर, पैलानी, बीसलपुर, सेमरी से अंग्रेजों को खदेड़ने के साथ ही तिंदवारी तहसील के दफ्तर में क्रांतिकारियों ने सरकारी रिकार्डो को जलाकर तीन हजार रुपये भी लूट लिये। आजादी की ज्वाला भड़कने पर गोरी हुकूमत ने अपने पिट्ठू शासकों को हुक्म जारी करते हुए क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए कहा। इस फरमान पर पन्ना नरेश ने एक हजार सिपाही, एक तोप, चार हाथी और पचास बैल भेजे, छतरपुर की रानी व गौरिहार के राजा के साथ ही अजयगढ़ के राजा की फौज भी चित्रकूट के लिए कूच कर चुकी थी। दूसरी ओर बांदा छावनी में दुबके फिरंगी अफसरों ने बांदा नवाब से जान की गुहार लगाते हुए बीवी-बच्चों के साथ पहुंच गये। इधर विद्रोह को दबाने के लिए बांदा-चित्रकूट पहुंची भारतीय राजाओं की फौज के तमाम सिपाही भी आंदोलनकारियों के साथ कदमताल करने लगे। नतीजे में उत्साही क्रांतिकारियों ने 15 जून को बांदा छावनी के प्रभारी मि. काकरेल को पकड़ने के बाद गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद आवाम के अंदर से अंग्रेजों का खौफ खत्म करने के लिए कटे सिर को लेकर बांदा की गलियों में घूमे।काकरेल की हत्या के दो दिन बाद राजापुर, मऊ, बांदा, दरसेंड़ा, तरौहां, बदौसा, बबेरू, पैलानी, सिमौनी, सिहुंडा के बुंदेलों ने युद्ध परिषद का गठन करते हुए बुंदेलखंड को आजाद घोषित कर दिया। बांदा छावनी के अफसर और सिपहसलार-फरमाबरदार बांदा नवाब की पनाह में थे, लिहाजा अंग्रेजों ने मान लिया कि पैर उखड़ चुके हैं। गजेटियर के मुताबिक अंग्रेजों ने एक बारगी जोर लगाया था, लेकिन बिठूर के पेशवा की अगुवाई में मो। सरदार खां, नाजिम, मीर इंशा अल्ला खान की नाकेबंदी के चलते अंग्रेजों की रणनीति धराशायी हो गयी। इस युद्ध में कर्वी के मराठा सरदार के भाई ने मंदाकिनी और यमुना नदी पर अंग्रेजों की सहायता के लिए आने वाली सेना को रोके रखा। इस आंदोलन को धार देने वालों में अगर शीला देवी की घाघरा पलटन का जिक्र नहीं होगा तो बात अधूरी रहेगी। अनपढ़ शीलादेवी ने इस जंग में अहम हिस्सेदारी के लिए महिलाओं को एकजुट किया और फिर पनघटों पर जाकर अन्य महिलाओं को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करना शुरू किया। खास बात यह थी कि घाघरा पलटन में शामिल ज्यादातर महिलाएं बुर्कानशी और अनपढ़ थी, लेकिन क्रांति की इबारत में उनकी हिस्सेदारी मर्दो से कम नहीं रही।“बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी” के संयोजक संजय पाण्डेय कहते है कि जब इस क्रांति के बारे में स्वयं अंग्रेज अफसर लिख कर गए हैं तो भारतीय इतिहासकारों ने इन तथ्यों को इतिहास के पन्नों में स्थान क्यों नहीं दिया?सच पूछा जाये तो यह एक वास्तविक जनांदोलन था क्योकि इसमें कोई नेता नहीं था बल्कि आन्दोलनकारी आम जनता ही थी इसलिए इतिहास में स्थान न पाना बुंदेलों के संघर्ष को नजर अंदाज करने के बराबर है.कहा कि बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी प्रचार प्रसार के माध्यम से बुंदेलों की यह वीरता पूर्ण कहानी सारी दुनिया तक पहुचायेगी

Tuesday, May 5, 2009

रुग्ण हो चुकी मां मंदाकिनी को पूर्ण स्वस्थ करने का संकल्प



-संदीप रिछारिया
चित्रकूट। 'मंदाकिनी की धीमी मौत' शब्द ने अब रंग दिखाना चालू कर दिया है। मंदाकिनी को बचाने के लिए अब समाजसेवियों में चेतना जाग रही है। ब्रह्म विचार मंच के बाद गायत्री शक्ति पीठ ने भी अपनी मंशा साफ कर दी है। 'नर्मदा शुद्धि आंदोलन' की कामयाबी की दास्तान को 'मंदाकिनी शुद्धि आंदोलन' के नाम पर लिखे जाने के मंसूबे बांधकर स्थानीय गायत्री परिवार के मुखिया डा. राम नारायण त्रिपाठी ने कहा कि अब वे सिर्फ मंदाकिनी की सफाई तक ही सीमित नहीं रहेंगे। बल्कि रोगिणी हो चुकी मां मंदाकिनी को पूर्ण स्वस्थ करने का संकल्प है। 'दैनिक जागरण' में लगातार छप रहीं खबरों के बाद मंदाकिनी को बचाने के लिए लोग आगे आ रहे हैं। नदी बचाओ तालाब बचाओ आंदोलन के मुखिया सुरेश रैकवार ने 'जागरण कार्यालय' में आकर कहा कि अब उनका लक्ष्य जीवन प्रदायनी मंदाकिनी को पूर्ण स्वच्छ करने का है। सात मई से उन्होंने अपने साथियों के साथ मंदाकिनी के उद्गम स्थल से लेकर अंत तक पदयात्रा के साथ प्रदूषण के कारकों को चिह्नित करने के अलावा नदी किनारे बसे लोगों के अंदर नदी को बचाने के लिए जन जागरण फैलाने का है। कुछ इसी तरह के विचार बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक संजय पांडेय के हैं। उन्होंने दूरभाष पर कहा कि मंदाकिनी की दुर्दशा से संबंधित खबरें पढ़कर दिल्ली व अन्य राज्यों में रहने वाले बुंदेलों के साथ ही अन्य लोग आंदोलित हो रहे हैं। इसके लिए अगर सरकार ने ठोस कदम न उठाये तो संसद पर प्रदर्शन करेंगे। उधर ब्राह्मण विचार मंच के कमलेश दीक्षित ने कहा अब उनके इस आंदोलन में साथ देने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मुख्यालय के रहने वाले समाजसेवी अजय रिछारिया ने कहा कि प्रोजेक्ट बनाकर काम करना सबके हित में रहेगा। कर्वी के लोगों की ओर से अगुवाई वे करेंगे और उनकी युवा टीम इसके लिये पूरी तरह से तैयार है। अतर्रा के रहने वाले समाजसेवी सच्चिदानंद उपाध्याय ने भी बीमार हो रही मंदाकिनी को ठीक करने में अपने सहभाग करने को जिंदगी का बड़ा लक्ष्य बताया।

Sunday, May 3, 2009

किसी दूसरे भगीरथ की राह में मंदाकिनी


चित्रकूट के सन्दर्भ में यह विश्र्व प्रसिद्घ चौपाई - "चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर॥" कहीं कहानी बनकर न रह जाये, क़्योंकि धर्मावलम्बियो के साथ पर्यटन और प्रकृति प्रेमियों की चिंता बढती जा रही है कि उनके मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन भूमि चित्रकूट का अस्तित्व पूर्णतः खतरे में दिखलाई देने लग गया है और यहां का कण-कण अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी दूसरे भगीरथ की राह देखने लग गया है। क़्योंकि चित्रकूट की पावन मंदाकिनी जहां विलुप्त होने के कगार पर है वहीं इस गंगा में संगम होने वाली पयस्वनी एवं सरयू नदी का गंदे नाले में तब्दील हो जाना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। क्योंकि चित्रकूट के सर्वांगीण विकास व प्रकृति संवर्धन के लिये केन्द्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सरकारों द्वारा तहे दिल से दिये जाने प्रति वर्ष करोड़ों रुपये की अनुदान राशि अब बहुरूपियों और बेइमानों के बीच बंदरबांट होने से चित्रकूट के अस्तित्व और अस्मिता बचाने के नाम पर सवालिया निशान पैदा करा रही है। मंदाकिनी एवं पयस्वनी गंगा की संगमस्थली राघव प्रयागघाट का दृश्य। आज चित्रकूट का कण-कण अपना वजूद खोता जा रहा है और चित्रकूट के विकास के नाम पर काम करने वाले सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थानों के साथ शासकीय कार्यालयों में पिछले अनेक वर्षों से बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के बीच चित्रकूट का बंटवारा सा दिखने लग गया है। क्योंकि कागजों में तैयार होती चित्रकूट की विकास योजनायें और देश के औद्योगिक प्रतिष्ठस्ननों द्वारा यहां के विकास के लिये दिया जाने वाला करोड़ों रुपया का दान अब महज कागजी खानापूर्ति सा महसूस करा रहा है। जिसके चलते यहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चित्रकूट में विकास के नाम पर अमर्यादित लूट-खसोट, डकैतों का ताण्डव, नशा तस्कारों के विकसित जाल को चित्रकूट की बर्बादी के प्रमुख कारणों में जाना जाने लगा है। वहीं अधिकारियों की मिलीभगत से चित्रकूट की प्राकृतिक हरियाली को नेस्तनाबूद करने में आमदा खदान माफियाओं द्वारा चित्रकूट के कण-कण को इतिहास के पन्नों में बोझिल किये जाने का नापाक सिलसिला कायम किया जा चुका है अलबात्ता - चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा पड़त है सो आवत यहि देस। पयस्वनी गंगा में पड़ा नगरपालिकाओं का गंदा कचड़ा स्थान-पाल धर्मशाला के पीछेरहीम द्वारा लिखे इस काव्य में चित्रकूट में विपदा से पीडित होकर आने वाले लोगों को बड़ी राहत मिलने और उसका दुख दूर होने का उल्लेख किया गया है। परन्तु अब शायद ऐसा महसूस नहीं होगा। क़्योंकि इस चित्रकूट का आज रोम-रोम जल रहा है- और कण-कण घायल हो रहा है। इस चित्रकूट में विपात्ति के बाल मंडरारहे हैं और इस बगिया के माली अपने ही चमन को उजाड़ने में मशगूल लग गये हैं ऐसे में भला विपात्ति से घिरे चित्रकूट में आने वाले विपात्तिधारियों की विपात्ति कैसे दूर होगी? यह एक अपने आप में सवाल बन गया है। क्योंकि सदियों पहले आदि ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी सती अनुसुइया के तपोबल से उदगमित होकर अपना 35 किलोमीटर का रमणीक सफर तय करने वाली मंदाकिनी गंगा का वैसे तो यमुना नदी में संगम होने के प्रमाण हैं। परन्तु ऐसा नहीं लगता कि इस पावन गंगा का यह सफर अब आगे भी जारी रहेगा, क्योंकि इस गंगा का दिनों दिन गिरता जलस्तर जहां इसकी विलुप्तता का कारण माना जाने लगा है, वहीं इस गंगा में संगम होने वाली दो प्रमुख नदियों समेत असंख्य जलस्त्रोतों का विलुप्त होकर गंद नालियों में तब्दील होना एक चुनौती भरा प्रश्न आ खड़ा है ? धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार चित्रकूट का पौराणिक इतिहास बनाने वाली इस गंगा के पावन तट में स्थापित स्फटिक शिला के बारे में श्रीरामचरित मानस में संत तुलसीदास लिखते हैं कि- एक बार चुनि कुसुम सुहाय, निजि कर भूषण राम बनाये। सीतहिं पहिराये प्रभु सादर, बैठे स्फटिक शिला पर सुन्दर॥ मतलब इस मंदाकिनी गंगा के पावन तट पर भगवान श्रीराम द्वारा अपनी भार्या सीता का फूलों से श्रृंगार करके इस स्थान की शोभा बढ़ाई गयी है। वहीं इसी स्थान पर देवेन्द्र इन्द्र के पुत्र जयन्त द्वारा कौये का भेष बनाकर सीता माता को अपनी चोंच से घायल किये जाने का भी उल्लेख है। जबकि इस गंगा के पावन तट में स्थित राघव प्रयागघाट जिसकी पुण्यता के बारे में आदि कवि महर्षि बाल्मीक द्वारा अपने काव्य ब्रहमा रामायण में यह उल्लेख किया गया है कि-

हनिष्यामि न सन्देहो रावणं लोक कष्टकम। पयस्वनी ब्रहमकुंडाद भविष्यति नदी परा॥15॥सम रूपा महामाया परम निर्वाणदायनी। पुरा मध्ये समुत्पन्ना गायत्री नाम सा सरित्‌॥ 1 6॥सीतांशात्सा समुत्पन्ना マभविष्यति न संशयः।पयस्वनी देव गंगा गायत्रीति सरिद्रयम्‌॥17॥तासां सुसंगमं पुण्य तीर्थवृन्द सुसेवितम्‌।प्रयागं राघवं नाम भविष्यति न संशयः॥18॥सभी धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित राघवप्रयाग घाट जहां भगवान श्रीराम ने अपने पिता को तर्पण दिया है।महर्षि बाल्मीक के अनुसार इस पुनीत घाट में महाराज दशरथ के स्वर्णवास होने की उनके भ्राता भरत एवं शत्रुघ्र द्वारा जानकारी दिये जाने पर भगवान श्रीराम द्वारा अपने स्वर्गवासी पिता को तर्पण एवं कर्मकाण्ड किये जाने का प्रमाण है। और इस पावन घाट पर कामदगिरि के पूर्वी तट में स्थित ब्रह्मास्न् कुंड से पयस्वनी (दूध) गंगा के उदगमित होने के साथ कामदगिरि के उत्तरी तट में स्थित सरयू धारा से सरयू गंगा के प्रवाहित होकर राघव प्रयागघाट में संगम होने के धार्मिक ग्रन्थों में प्रमण झलकाने वाला चित्रकूट का यह ऐतिहासिक स्थल राघव प्रयागघाट वर्तमान परिपेक्ष्य में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा का प्रमुख प्रमाणित केन्द्र भी है। आज इसी घाट के समीप रामघाट में संत तुलसीदास द्वारा चंदन घिसने और भगवान श्रीराम का अपने भाई लखन के साथ चंदन लगाने का प्रमाण पूरी दुनिया में हर आदमी के जुबान पर आने के बाद चित्रकूट के चित्रण का अहसास कराती है। वहीं इस घाट के समीप ब्रह्मास्न् पुराण में उल्लेखित यज्ञवेदी घाट, शिव महापुराण में उल्लेखित मत्यगजेन्द्रनाथ घाट के साथ रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया नौमठा घाट और समय-समय पर मंदाकिनी एवं पयस्वनी की इस संगमस्थली से निकलने वाली दुग्धधाराओं की तमाम घटनायें आज भी इस गंगा की पुण्यता को स्पर्श कराती हैं। हर माह यहां लगने वाले अमावस्या,पूर्णासी के साथ दीपावली, कुम्भ, सोमवती एवं अनेक धार्मिक त्यौहारों में इस गंगा में डुबकी लगाने वाले असंख्य श्रद्घालुओं का सैलाब इस गंगा की पावनता को दूर-दूर तक महिमा मंडित कराता है। परन्तु आज इस गंगा के बिगड़ते जा रहे स्वरूञ्प से यह अहसास होने लग गया है कि अब वह दिन दूर नहीं होगा जब इस गंगा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। क्योंकि इस गंगा के बारे में संत तुलसीदास द्वारा लिखा गया यह भाव-नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रि प्रिया निज तप बल आनी। सुरसरि धार नाम मंदाकिनी, जो सब पातक-कोतक डाकिनी॥ पूर्णतः विपरीत महसूस होने लग जायेगी- क्योंकि धार्मिक ग्रन्थों में पापियों का पाप डाकने वाली इस मंदाकिनी गंगा में अब इतना साहस नहीं रह गया है? कि वह नगर पंचायत व नगर पालिका द्वारा डलवाई जाने वाली ऊपर गंदगी, गंदे नाले, सैप्टिक टैंकों के स्त्रोतों के साथ अपने ही पंडे, पुजारियों, महन्त,मठाधीशों, व्यापारियों-चित्रकूट के सामाजिक, राजनैतिक हस्तियों की गंदगियों को अब अपने आप में स्वीकारें। आज इस पावन गंगा का कण-कण चिप-चिपाते पानी एवं गंदे संक्रञमक कीटाणुओं से ओतप्रोत होने के कारण इस कदर दयनीय हो चुका है। कि इस गंगा का चित्रकूट के बाहर गुणगान करने वाले कथित धर्मपुरोहितों द्वारा भी इसमें स्नान करके पुण्य अर्जन करने से कतराया जाया जाने लगा है? जो धर्म भीरूओं के लिये किसी गंभीर चिंता के विषय से कम तो नहीं है। भगवान श्रीराम के बारह वर्षों की साक्षी इस गंगा कोसमय रहते न बचाया गया तो निश्चित ही इस गंगा के साथ चित्रकूट का भी अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और रामचरित मानस की यह चौपाई- चित्रकूट जहां सब दिन बसत, प्रभु सियलखन समेत। एक पहेली बन जायेगी। क्योंकि इस गंगा के विलुप्त होने के बाद न यहां रामघाट होगा- और न ही यहां राघव प्रयागघाट ? अतः सरकार के साथ धर्म क्षेत्रों में तरह-तरह के तरीकों से शंखनाद करके अपना यशवर्धन करने वाले कथित समाज सेवियों को चाहिये कि इस विश्र्व प्रसिद्घ धार्मिक नगरी को बचाने के लिये एकनिश्चित मार्गदर्शिका तैयार कर उसके अनुरूञ्प यहां का विकास कार्य करायें। साथ ही यहां के विकास के नाम पर काम करने वाले संस्थानों को उचित दिशा निर्देश दें ताकि चित्रकूट के प्राकृञ्तिक और धार्मिक सौन्दर्य एवं धरोहरों के संवर्धन एवं संरक्षण के हित में कार्य कराया जा सके। क्योंकि एक तरफ जहां आज चित्रकूट के सुदूर अंचलों में सदियों से अपनी रमणीकता और धार्मिकता को संजोये अनेक स्थलों का भी समुचित विकास अवरूञ्द्घ है। वहीं आज धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित मोरजध्वज आश्रम, मड़फा आश्रम, देवांगना, कोटितीर्थ, सरभंग आश्रम, सुतिक्षण आश्रम, चन्द्रलोक आश्रम, रामसैया जैसे अनेक ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल अनेक समस्याओं के चलते चित्रकूट आने वाले करोड़ों धार्मिक एवं पर्यटनीय यात्रियों से दूर है। जिसके लिये आज भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा उनके द्वारा बनवाये गये त्रेतायुग में पत्थरों के रामसेतु को बचाने के लिये एक तरफ एकजुट होकर श्रीराम के प्रति अपना प्रेम और कर्तव्य दर्शाने का अभिनय करने वाले धर्म भीरुओं के जेहन में श्रीराम की आस्था का प्रतीक उनका अपना चित्रकूट को चारों तरफ से टूटने के बावजूद कुम्भकरणी निंद्रा में सोना उनकी वास्तविक आस्था पर चिंतन का विषय महसूस कराता है। भगवान श्रीराम की इस प्रियस्थली चित्रकूट जहां उन्हें भ्राता लखन और उनकी पत्नी सीता की असंख्य लीलायें कण-कण में चित्रित हैं और ऐसे चित्रणों को अपने आंचल में समेटे यह चित्रकूट आज कथित इंसानों की चंद मेहरबानियों के लिये मोहताज सा होना निश्चित ही देशवासियों के लिये किसी गौरव का विषय नहीं है। सीमा विवाद- सम्मान विवाद जैसी अनेक संक्रञमक बीमारियों से ओतप्रोत सृष्टिकाल का यह चित्रकूट आज त्रेता के रामसेतु की तुलना में भी पीछे हो गया है। परन्तु चित्रकूट की जनमानस आज भी इस अपेक्षा में काल्पनिक है कि भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा अपने भगवान की अस्तित्व स्थली चित्रकूट को बचाने की दिशा में कभी न कभी कोई न कोई पहल अवश्य की जायेगी। और संत तुलसीदास का चित्रकूट के प्रति यह भाव सदियों तक अमर रहे- चित्रकूट गिरि करहु निवासू तहं तुम्हार सब भातिं सुभाषू। चित्रकूट चिंता हरण आये सुख के चैन, पाप कटत युग चार के देख कामता नैन।

आध्यात्मिक शांति के लिए आयें चित्रकूट


विंध्यपर्वत के उत्तर में है चित्रकूट धाम। यह न केवल एक धार्मिक स्थान है, बल्कि अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के कारण भी काफी चर्चित है।
आध्यात्मिक शांति :चित्रकूट पर्वत मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश, दोनों राज्यों की सीमाओं को घेरता है। वनवास के दौरान भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ सबसे अधिक समय तक यहीं निवास किया था। यात्रियों को चित्रकूट गिरि, स्फटिक शिला, भरत कूप, चित्रकूट-वन, गुप्त गोदावरी,मंदाकिनी [पयस्विनी] की यात्रा करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है।
चित्रकूट गिरि को कामद गिरि भी कहते हैं, क्योंकि इस पर्वत को राम की कृपा प्राप्त हुई थी। राम-भक्तों का विश्वास है कि कामद गिरि के दर्शन मात्र से दुख समाप्त हो जाते हैं। इसका एक और नाम कामतानाथभी है। अनुसूइयाकी तपोभूमि :चित्रकूट में पयस्विनी नदी है, जिसे मंदाकिनी भी कहते हैं। इसी के किनारे स्फटिक शिला पर बैठ कर राम ने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से सीता को सजाया था। पयस्विनी के बायीं ओर प्रमोद वन है, जिससे आगे जानकी कुंड है। यहां स्थित अनुसूइयाआश्रम महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूइयाकी तपोभूमि कहलाती है। कहते हैं कि अत्रि की प्यास बुझाने के लिए अपने तप से अनुसूइयाने पयस्विनी को प्रगट कर लिया। गुप्त गोदावरीकी विशाल गुफामें सीताकुंड बना हुआ है। कामदगिरिके पीछे लक्ष्मण पहाडी स्थित है, जहां एक लक्ष्मण मंदिर है। इसके अलावा, चित्रकूट में बांके सिद्ध, पम्पासरोवर, सरस्वती नदी (झरना), यमतीर्थ,सिद्धाश्रम,हनुमान धारा आदि भी है। राम-भक्त कहते हैं कि राम जिस स्थान पर रहते हैं, वह स्थान ही उनके लिए अयोध्या के समान हो जाता है।
पयस्विनी चित्रकूट की अमृतधारा के समान है। मंदाकिनी नाम से जानी जाने वाली पयस्विनी को कामधेनु और कल्पतरु के समान माना जाता है। शिवपुराणके रुद्रसंहितामें भी पयस्विनी का उल्लेख है। तुलसी-रहीम की मित्रता :वाल्मीकि मुनि ने चित्रकूट की खूब प्रशंसा की है। तुलसीदास ने माना है कि यदि कोई व्यक्ति छह मास तक पयस्विनी के किनारे रहता है और केवल फल खाकर राम नाम जपता रहता है, तो उसे सभी तरह की सिद्धियां मिल जाती हैं।
रामायण और गीतावलीमें भी चित्रकूट की महिमा बताई गई है। दरअसल, यही वह स्थान है, जहां भरत राम से मिलने आते हैं और पूरी दुनिया के सामने अपना आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यही वजह है कि इस स्थान पर तुलसी ने भरत के चरित्र को राम से अधिक श्रेष्ठ बताया है। देश में सबसे पहला राष्ट्रीय रामायण मेला चित्रकूट में ही शुरू किया गया। तुलसी-रहीम की मित्रता की कहानी आज भी यहां बडे प्रेम से न केवल कही, बल्कि सुनी भी जाती है।
रहीम ने कहा-जा पर विपदा परत है, सो आवत यहिदेश।
उल्लेखनीय है कि नानाजी देशमुख का ग्रामोदय विश्वविद्यालय, आरोग्य/धाम, विकलांगों के लिए स्वामी रामभद्राचार्यविश्वविद्यालय यहीं स्थित है।

जब राम ने चित्रकूट में रहने का निर्णय लिया

श्री राम ने जैसा देखा चित्रकूट
प्रातःकाल उषा की लाली ने जब आकाश को रक्तिम करना आरम्भ किया तभी राम, सीता और लक्ष्मण नित्य कर्मों से निवृत होकर चित्रकूट पर्वत की ओर चल पड़े। जब दूर से राम ने चित्रकूट के गगनचुम्बी शिखर को देखा तो वे सीता से बोले, "हे मृगलोचनी! तनिक इन फूले हुये पलाशों को देखो ; जलते हुये अंगारों की भाँति सम्पूर्ण वन को जगमगा रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानो फूलों की माला लेकर हमारा स्वागत कर रहे हैं। और इन भल्लातक तथा विल्व के वृक्षों को देखो जिन्हें आज तक किसी भी मनुष्य ने स्पर्श नहीं किया है। इधर देखो लक्ष्मण! इन वृक्षों में मधुमक्खियों ने कितने बड़े-बड़े छत्ते बना लिये हैं। वायु के झकोरों से गिरे हुये इन पुष्पों ने सम्पूर्ण पृथ्वी को इस प्रकार आच्छादित कर दिया है मानो उस पर पुष्पों की शैया बनाई गई है। आमने सामने खड़े वृक्षों पर बैठे तीतर अपनी मनमोहक ध्वनि से हमें अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। मेरे विचार से चित्रकूट का यह रमणीक स्थान हम लोगों के निवास के लिये सब प्रकार से योग्य है। हमें यहीं अपनी कुटिया बनानी चाहिये। इस विषय में तुम्हारा क्या विचार है, मुझसे निःसंकोच ; कहो। जैसा तुम कहोगे, मैं वैसा ही करूँगा।" राम के सुझाव का समर्थन करते हुये लक्ष्मण ने कहा, "प्रभो! मेरे विचार से भी यह स्थान हम लोगों के रहने के लिये सब प्रकार से योग्य है।" सीता ने भी उनके विचारों का अनुमोदन किया। फिर वे टहलते हुये मुनि वाल्मीकि के सुन्दर एवं मुख्य आश्रम में पहुँचे। राम ने उनका अभिवादन करके उन्हें अपना परिचय दिया और बताया कि हम लोग वन में चौदह वर्ष की अवधि व्यतीत करने के लिये आये हैं। मुनि ने उनका सत्कार करते हुये कहा, "हे दशरथनन्दन! तुम्हारे दर्शन करके मैं कृतार्थ हुआ। तुम जब तक चाहो, इस आश्रम में निवास करो। यह सर्वथा तुम्हारे योग्य है। इसलिये वनवास की पूरी यहीं रह कर व्यतीत करो।" मुनि वाल्मीकि के आतिथ्य के लिये आभार प्रकट करते हुये राम बोले, "इसमें सन्देह नहीं कि यह रमणीक वन मुझे, सीता और लक्ष्मण हम तीनों को ही पसन्द है। परन्तु मैं यह नहीं चाहता कि मेरे यहाँ निवास करने से आपकी तपस्या में किसी प्रकार का विघ्न पड़े। इसलिये हम लोग पास ही कहीं पर्णकुटी बना कर निवास करना चाहेंगे।" फिर उन्होंने लक्ष्मण को आदेश दिया, "भैया, तुम वन से अच्छी, मजबूत लकड़ियाँ काट कर ले आओ। हम लोग इस आश्रम के निकट ही कहीं कुटिया बना कर निवास करेंगे।"