गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

गुप्‍त गोदावरी- जो आज भी अबूझ पहेली बनी है

Thursday, December 23, 2010

..यहीं पर लिखा गया था अयोध्या कांड

चित्रकूट [संदीप रिछारिया]। आज का 'रामबोला' कल गोस्वामी तुलसीदास बन श्री राम कथा का अमर गायक बन पूरे विश्व में आदर का पात्र बन जायेगा, यह राजापुर के निवासियों ने कभी सोचा भी न था। यह बात और थी कि यह विलक्षण योगी स्वामी नरहरिदास को राजापुर के ही समीप हरिपुर के पास एक पेड़ के नीचे मिल गया और वे उसे उठाकर अपने साथ ले गये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम व उनकी महिमा से परिचित कराने के साथ ही उन्होंने राम बोला को संस्कार व काशी ले जाकर शिक्षा दी तब वह गोस्वामी तुलसीदास बन सके।

तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य बताते हैं कि वैसे तो संत तुलसीदास चित्रकूट में अपने गुरु स्थान नरहरिदास आश्रम पर कई वर्षो तक रहे और यहां पर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम व भ्राता लक्ष्मण के दो बार साक्षात् दर्शन भी किये। उन्होंने यहीं पर रहकर रामचरित मानस का पूरा अयोध्या कांड व विनय पत्रिका पूर्वाद्ध भी लिखा।
अभी तक ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस की प्रति सिर्फ राजापुर में है पर इस दुर्लभ प्रति को चित्रकूट परिक्रमा मार्ग स्थित नरहरिदास आश्रम में देखा जा सकता है। यही स्थान गोस्वामी तुलसीदास जी का गुरु स्थान है, इसे महल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर पिछले चालीस वर्षो से मंदिर की व्यवस्था का काम देखने वाले स्वामी रघुवर दास बताते हैं कि स्वामी नरहरिदास ने अपने जीवन काल का अधिकांश समय चित्रकूट में ही व्यतीत किया। गोस्वामी जी चित्रकूट में ही पले व बडे़ हुए। वह हमेशा अपने गुरु स्थान पर आते रहे और यहां पर भी वे रामचरित मानस के साथ ही अन्य ग्रंथों की रचना में तल्लीन रहते थे।
उन्होंने रामचरित मानस की एक मूल हस्तलिखित प्रति दिखाते हुए कहा कि यह गोस्वामी जी के हाथ की लिखी गयी प्रति है। इसके लगभग पांच सौ पेज अभी भी सुरक्षित हैं जिसमें सभी कांडों के थोड़े-थोड़े पन्ने हैं। आर्थिक अभावों के चलते वे इसका संरक्षण कराने में अपने आपको असमर्थ बताते हैं। कहा कि न तो मंदिर में आमदनी का कोई स्रोत है और न ही उनके पास किसी तरह की मदद आती है।
उन्होंने बताया कि संत तुलसीदास का लगाया गया पीपल का पेड़ भी यहीं पर है जो उचित संरक्षण के अभाव में गिरने के कगार पर है। चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बाबा तुलसी दास का लगाया पेड़ तो सबकी नजरों के सामने ही है पर उसके संरक्षण और संवर्धन का कोई प्रयास नही करता।

Sunday, August 22, 2010

मानवीय गुणों को दर्शाता महामानव का आचरण

चित्रकूट। प्राकृतिक सुषमा में रची बसी तपोस्थली पर त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि ने एक ऐसा महाकाव्य रच दिया, जिसने एक साधारण मानव अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। आज भी इस भूमि की धूल को साधारण न समझकर रामरज कहा जाता है और उसका वंदन कर पापों के नष्ट होने जैसी मान्यता विद्यमान है। सोलह कलाओं से युक्त जिस महामानव की कल्पना का यथार्थ महर्षि वाल्मीकि ने इस धरती पर देखा था, उसको साकार रूप देने का काम युग ऋषि नानाजी देशमुख की इच्छा पर यहां राम दर्शन के रूप में फलीभूत हुआ। सेठ मंगतूराम जयपुरिया के पुत्र डॉ. राजाराम जयपुरिया के आर्थिक सहयोग से जब नानाजी की कल्पना ने उड़ान भरी तो पांच मंदिरों का समूह कुछ ऐसे रूप में सामने आया कि मानो परब्रह्म पूर्णतम् परमेश्वर का रूप यहां पर पुरुषोत्तम, समाजसुधारक और समाज को नयी दिशा देने के साथ नये युग की शुरूआत करनेवाले श्रीराम नजर आने लगे।
महर्षि वाल्मीकि और बाबा तुलसीदास जी के लिखे रामचरित से नाना जी ने वह प्रसंग और दृश्य निकाले जो श्रीराम को महामानव व युग उद्धारक के रूप में सीधे तौर पर परिभाषित करते हैं। पहले मंदिर में जहां विश्व में रामलीला आयोजित किये जानेवाले देशों के साथ ही वहां के निमंत्रण पत्र व मुखौटों के साथ ही अन्य विवरण मिलते हैं। यहां यह देख कर आश्चर्य होता है कि चीन और सोवियत रूस जैसे कम्युनिस्ट शासन वाले देशों में भी श्रीरामचरित का विस्तार इतने मार्मिक तरीके से किया जा रहा है। कोरिया के राजकुमार का विवाह अयोध्या की राजकुमारी के साथ का दुर्लभ चित्र भी यहां मौजूद है। इसके साथ ही रूस, जापान, वर्मा, कनाड़ा, लाओस, वियतनाम, फ्रांस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशों की भाषाओं में लिखी रामायणों के साथ ही वहां पर आयोजित होने वाली रामलीलाओं के दृश्यों को संयोजित किया गया है।
दूसरे मंदिर की शुरुआत श्रीराम के शिक्षा व अध्ययन से होती है। यहां पर शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए बताया गया है कि विश्वविद्यालय से उपाधियां पाकर या आजीविका की क्षमता अर्जित कर स्वयं को शिक्षित मानना अपने आपको धोखा देना है। मुनि विश्वामित्र द्वारा यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम लक्ष्मण को मांगना, अहल्या का पुर्नमिलन, राक्षसी ताड़का का वध, उच्च पदाधिकारी बहुलाश्व को प्राणदंड, पीडि़त युवतियों को समाज में उचित स्थान दिलाना, विनयशीलता की कुशलता से परशुराम का क्रोध शांत करना, मां की आज्ञा से भाई को राजपाट देकर खुद चौदह वर्ष के लिए वन में प्रस्थान, ऊंच-नीच का भेद मिटाकर निषादराज को गले लगाने के साथ ही भीलनी शबरी के हाथों से बेर खाना, चित्रकूट में मुनि वशिष्ठ और मां अनुसूइया से मिलन, भरत के चित्रकूट आने पर उन्हें स्नेह तो दिया पर राज्याभिषेक से इंकार कर वापस उन्हें अयोध्या भेजना, दानवी प्रकृति वाले राक्षसराज रावण से वानर और भालुओं के सहयोग से विजय प्राप्त करने जैसे दृश्य काफी मार्मिक हैं।

..और भी काफी खास है राम दर्शन
नव गृह के साथ ही सत्ताइस नक्षत्रों के पेड़ों के साथ ही रामदर्शन मंदिर समूह की विशेषता है कि यहां की किसी भी मूर्ति की न तो पूजा होती है और न ही कहीं प्रसाद या अगरबत्ती इत्यादि लगाने का प्रावधान है। मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार पर विनयवत श्री राम व जानकी को अपने हृदय में धारण करनेवाले बजरंगबली की विशालकाय प्रतिमा के दर्शन होते हैं तो आगे बढ़ने पर रामचरित के प्रथम प्रणेता महर्षि वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास जी की विशाल प्रतिमाएँ दिखायी देती हैं।
दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डॉ. भरत पाठक कहते हैं कि नानाजी देशमुख श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में ही पूजा करते थे। वे कहा करते थे कि श्रीराम विश्व के पहले समाजसुधारक थे। रामदर्शन का निर्माण भी इसी भावना के साथ किया गया था कि यहां आने वाले लोग श्रीराम के मानवीय गुणों को देखें और परखें और उसी अनुसारचित्रकूट। प्राकृतिक सुषमा में रची बसी तपोस्थली पर त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि ने एक ऐसा महाकाव्य रच दिया, जिसने एक साधारण मानव अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। आज भी इस भूमि की धूल को साधारण न समझकर रामरज कहा जाता है और उसका वंदन कर पापों के नष्ट होने जैसी मान्यता विद्यमान है। सोलह कलाओं से युक्त जिस महामानव की कल्पना का यथार्थ महर्षि वाल्मीकि ने इस धरती पर देखा था, उसको साकार रूप देने का काम युग ऋषि नानाजी देशमुख की इच्छा पर यहां राम दर्शन के रूप में फलीभूत हुआ। सेठ मंगतूराम जयपुरिया के पुत्र डॉ. राजाराम जयपुरिया के आर्थिक सहयोग से जब नानाजी की कल्पना ने उड़ान भरी तो पांच मंदिरों का समूह कुछ ऐसे रूप में सामने आया कि मानो परब्रह्म पूर्णतम् परमेश्वर का रूप यहां पर पुरुषोत्तम, समाजसुधारक और समाज को नयी दिशा देने के साथ नये युग की शुरूआत करनेवाले श्रीराम नजर आने लगे।

महिला किसानों को सिखाई गई उन्नतशील तकनीक

चित्रकूट। महिला किसानों को उन्नतशील खेती के माध्यम से खेतों से ज्यादा पैदावार लेने के गुरु कृषि विज्ञान केंद्र में सिखाये जा रहे हैं। परिसर में विभिन्न ग्रामों से आई 20 महिलाओं को केंद्र के वैज्ञानिक बदलते मौसम में किसान महिलाओं को खरपतवार से खेतों को सुरक्षित रखने के साथ ही उनसे फसलों को होने वाली हानियों के बारे में भी बता रहे हैं।

केंद्र के वैज्ञानिक विजय कुमार गौतम ने बताया कि खरपतवार जमीन से नमी एवं पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में अवशोषित करते हैं। जिससे फसलों की वृद्धि एवं उपज प्रभावित होती है। उन्होंने बताया कि निराई और गुड़ाई से फसल प्रभावित होती है। खरपतवार नियंत्रित होते हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नमी का संरक्षण होता है।
उन्होंने बताया कि फसलों की बुवाई के पन्द्रह से बीस दिन के अंदर एक निराई करनी चाहिये। खरपतवार नियंत्रण के लिये बाजार में तमाम प्रकार के रसायन उपलब्ध हैं पर उनसे फसल, मनुष्य, जानवर, मित्र, कीट और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। प्रसार वैज्ञानिक संत कुमार त्रिपाठी ने उन्नतशील कृषि यंत्रों व्हील हो, हैंड हो, बीडर और त्रिफाली की जानकारी दी और उनका प्रयोग मूंग और अरहर की फसल पर कराया।
कार्यक्रम समन्वयक डा. छोटे सिंह ने बदलते मौसम को लेकर इस तरह के कार्यशाला प्रशिक्षण लगातार आयोजित किये जाने की बात कही।

Sunday, August 8, 2010

केवल चार महीनों में ही लिख डाला चार करोड़ राम नाम

चित्रकूट। जहां एक तरफ गुरुपूर्णिमा के मौके पर पूरे देश में लोग अपने गुरु की वंदना करने का काम करेंगे वहीं तीर्थ नगरी चित्रकूट के प्रवेश द्वार जिला मुख्यालय में सैकड़ों लोगों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम को ही गुरु मान लिया है। 25 जुलाई को सैकड़ों भक्त न केवल श्री राम के नाम से लिखे पन्नों पर अपने शीश नवायेंगे बल्कि अब उन्होंने अपना गुरु राम के नाम को ही मान लिया है। वैसे भगवान राम की कर्मभूमि तीर्थ नगरी चित्रकूट में यो तो उनके नाम का गुणगान हमेशा से होता चला आ रहा है, एक सौ आठ क्या दस हजार तुलसी के मनकों से जाप करने वाले दर्जनों की संख्या में लोग यहां पर आसानी से मिलते हैं पर जब तारक मंत्र राम नाम के लेखन का काम कार्तिक पूर्णिमा दिन से यहां प्रारंभ किया गया तो पांच साल के बच्चे से लेकर नब्बे साल के बुजुर्ग इस काम में इतनी तन्मयता के साथ जुटे कि आषाढ़ माह की तृतीय तक चार करोड़ राम नाम महामंत्र का लेखन कर डाला।

श्री राम नाम के मंत्र लेखन के काम को आगे बढ़ाने का काम करने वाले हरिश्चंद्र अग्रवाल
कहते हैं कि श्री राम का नाम तो तारक मंत्र हैं। इसके जप करने से जहां आत्मा को सुखानुभूति होती है वहीं परमात्मा के पास जाने का रास्ता भी सुगम होता जाता है। केवल कुछ महीनों में चार करोड़ मंत्र लेखन का काम सभी लोगों के भागीरथ प्रयास से हुआ है। इसमें पांच साल के बच्चों से लेकर नब्बे साल के वृद्ध शामिल हैं। अभी मंत्र लेखन के काम में मुख्यालय के लगभग सौ स्त्री पुरुष जुड़े हुये हैं।
श्री राम लीला भवन के प्रबंधक श्याम गुप्ता कहते हैं कि श्री राम मंत्र लेखन बैंक की स्थापना भवन में कर दी गई है। यहां पर कापियों को जमा करने और देने का प्रभारी बसंत राव गोरे को बनाया गया है। कापियां लोगों को निशुल्क दी जायेंगी।

. तो ये है चित्रकूट घोषणा पत्र

चित्रकूट। उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायतों के चुनाव के लिये अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के भारत जननी परिसर के सभागार में लगभग 120 प्रतिनिधियों के विचार मंथन से जब चित्रकूट घोषणा पत्र सामने आया तो यह भारी भरकम दस्तावेज दो भागों में बनाया गया। पहला भाग पंचायती राज सही अर्थो में कैसे मजबूत हो और दूसरे भाग में चुनाव के दौरान जरुरी सावधानियों पर नजर रखी गई है।

पहले भाग के 32 बिंदुओं में गांव की एकता, दलित आदिवासियों का सम्मान, महिलाओं की भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास के साथ ही गांव की गुटबाजी, भ्रष्टाचार, पंचायत प्रतिनिधियों के वेतन भत्ते, नशे को रोकने, स्वदेशी को बढ़ावा देने जैसे विषयों को उठाया गया है।
चित्रकूट घोषणा पत्र के दूसरे भाग में पंचायत चुनावों की शुरुआती प्रक्रिया से अंतिम प्रक्रिया तक की बातें साफ की गई हैं। घोषणा पत्र के अनुसार चुनाव की खर्च सीमा निर्धारित रखने, मतदाताओं को धन, शराब, भय आदि से दूर रखने के उपायों व निष्पक्ष मतदान कराने के लिये सभी उपायों को किये जाने की चर्चा की गई है।
वैसे अभी गोरखपुर, बनारस, सहारनपुर और लखनऊ में होने वाले विचार मंथन के बाद इसके वास्तविक रुप में सामने आने की बात पत्रकार भारत डोगरा ने कही।

. और जनता ने तय किया घोषणा पत्र

चित्रकूट। विचार मंथन की दिव्य भूमि पर दो दिनों के तगड़े विचार मंथन की प्रक्रिया और लगभग 120 जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों की सहमति के बाद 'पंचायत राज सही अर्थो में कैसे मजबूत व सार्थक होगा' को लेकर चित्रकूट घोषणा पत्र का मसौदा तय हो गया। अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के भारत जननी परिसर में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन प्रख्यात पत्रकार भारत डोगरा ने कहा कि वास्तव में पंचायती राज की कल्पना को लेकर जो मसौदे तय किये गये थे वह आज बेमानी सिद्ध हो रहे हैं। धन बल, जन बल और बाहुबल के सहारे चुनाव लड़े जा रहे हैं। इन्हें रोकने का काम करना होगा।

समाजसेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने कहा कि वास्तव में पंचायत प्रतिनिधि को कच्चे घड़े के समान होता हे। भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे की ओर आता है। इसलिये सामंतवादी ताकतों का मुकाबला कर सही ढंग से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की मदद की जानी चाहिये।
संस्थान के निदेशक भागवत प्रसाद ने कहा कि पंचायतों में अगर भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो निष्पक्ष छवि वाले इमानदार प्रत्याशी को ही चुनाव में उतरना व उसे विजयी बनाने के प्रयास करना चाहिये। इस विचार मंथन की प्रक्रिया के दौरान प्रदेश भर से आये जनप्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने कष्ट भरे अनुभव सुनाये। सामाजिक विज्ञान संस्थान की डा. संतोष सिंह, पंचायती राज व्यवस्था के विशेषज्ञ देवराज भट्टाचार्य के साथ ही सरस्वती,शशि निगम,अर्चन, संजय सिंह, राजा भइया, अभिषेक, संजो प्रधान आदि लोग मौजूद रहे।

सावन के रंग में रंगे स्वामी कामतानाथ

चित्रकूट। धर्मनगरी में इन दिनों सावन की धूम चल रही है। जहां हर छोटे बड़े मंदिर मे शाम होते ही संगीत के साथ सावन के गीत देवताओं को सुनाने के लिए गायकों का जमावड़ा लग रहा है। वहीं दर्शन मात्र से कष्टों को हरने वाले श्री कामतानाथ स्वामी का अंदाज भी इन दिनों सावन के रंग में रंगा है। उनकी पोशाक तो हरे रंग की है ही, पुष्पों और माला भी इसी रंग में रंगी है। जहां बेल की पत्तियों का श्रंगार विग्रह के चारों ओर दिख रहा है। वहीं श्यामा और रामा तुलसी दल की माला रोज चढ़ायी जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि करीब बारह से पंद्रह फिट लंबी तुलसी दल की माला के हर पत्ते पर मलयागिरि चंदन से श्री राम भी लिखने का काम खुद पुजारी करते हैं।

कामदगिरि प्रमुख द्वार के पुजारी प्रेम चंद्र मिश्र बताते हैं कि सवन की शुरुआत होते ही कामतानाथ स्वामी का श्रंगार पुष्पों से ज्यादा पत्तियों से किया जाता है। श्रंगार में इसका विशेष ध्यान रखा जाता है कि वस्त्रों के साथ ही आसपास का वातावरण हरे रंग का ही हो। ठाकुर जी के विग्रह पर सावन के पूरे महीने तुलसी दल की एक माला प्रतिदिन चढ़ायी जाती है। माला चढ़ाने के पहले उसके हर पत्ते पर मलयागिरि चंदन से श्री राम नाम लिखा जाता है। कई भक्त खुद माला बनाकर लाते हैं। भगवान को तीन बार श्रंगार के बाद तुलसी माला चढ़ायी जाती है। स्थानीय भक्त विवेक अग्रवाल कहते हैं श्री कामतानाथ स्वामी विलक्षण देव हैं। वो मानव के कष्टों को हरने के साथ ही इस लोक से उस लोक तक की यात्रा भी मंगलमय बनाते हैं। सावन में तुलसी माला चढ़ाने का महत्व काफी गूढ़ रहस्यों को छिपाये है।

Saturday, July 31, 2010

मिलिए पाठा के गांधी से


संदीप रिछारिया

चित्रकूट, 22 जून : उन्होंने जलाई एक मशाल, जिसकी रोशनी से मिटा उपेक्षित कोल समाज के जीवन में छाया अंधेरा। पर यह सुनने में जितना आसान लगता है, गोपाल भाई के लिए भी यह सब उतना आसान नहीं था। हर कदम पर थीं मुश्किलें, पर गांधी जी के दिखाये रास्ते ने बढ़ायी उनकी हिम्मत और वे खुद बन गए पाठा के गांधी।
विकास के नक्शे पर देश-दुनिया से अलग है बिगहना गांव (बांदा)। यहीं एक निर्धन किसान परिवार में वर्ष 1941 में जन्मे गोपाल जैसे-तैसे प्राइमरी तक पढ़ पाये। बचपन में रोटी-कपड़ा-मकान के लिए मोहताज होनहार गोपाल भाई पढ़ना चाहते थे, लेकिन पिता की जेब में फीस के लिए सिक्के नहीं थे। इस कारण कक्षा आठ के बाद स्कूल के दरवाजे बंद हो गये। हां, एक दिन गोपाल के कंठ से फूटे संगीत के स्वर सुनकर हिंदू इंटर कालेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य जगपत सिंह निहाल हो गये। पुचकारा तो बच्चा सुबक पड़ा, बताया कि पढ़ना चाहता है, लेकिन मजबूर है। तब गुरु ने शिष्य को अपने खर्च पर इंटर तक पढ़ाया। इस उपकार का पिछड़ी खंगार जाति के गोपाल पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने आजीवन समाजसेवा का व्रत ले लिया। और चुना दबे-कुचले लोगों को। सन् 70 के करीब पैतृक गांव के प्रधान हुए। विकास के लिए कदम बढ़ाये, तो अफसरशाही ने डपट दिया। तब ज्यादातर प्रधान अनपढ़ होते थे, लिहाजा अफसर उन्हें जनता का नुमाइंदा समझने के बजाय मातहत समझते। गोपाल भाई ने सबसे पहले अफसरशाही के खिलाफ मोर्चा खोला और बुंदेलखंड के प्रधानों को एकजुट करने के बाद उन्हें अधिकार दिलाये। इस काम को अंतरराष्ट्रीय चर्चा मिली और बीबीसी रेडियो ने गोपाल भाई पर विशेष बुलेटिन निकाला।इसके बाद गोपाल भाई ने कलम की ताकत से निठल्ले प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला तो आपातकाल में उन्हें अतर्रा से बेदखल कर दिया गया। तब उन्होंने चित्रकूट के पाठा क्षेत्र को कर्मभूमि बनाया। पाठा के दबंग दादू यानी सामंत बेबस कोलों को गुलाम बनाकर रखते। कर्ज देकर इतना सूद वसूलते कि रोटी के लिए मोहताज कोल बिरादरी को एक दिन बीवी भी गिरवी रखनी पड़ती। कोल मर्दो की पीठ पर बरसते कोड़े और महिलाओं की आबरू पर ललचाई नजरों ने गोपाल भाई को झकझोर दिया। उन्होंने कोल बिरादरी को गुलामी से मुक्ति के लिए सामंतों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

Friday, June 25, 2010

..तो अब नदी में नहीं जायेगा खेत का पानी

चित्रकूट। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'गांव का पानी गांव में ,खेत का पानी खेत में' पर जब सारे प्रयास लगभग बेकार से हो गये और बुंदेलखंड में पानी की लिये लगातार त्राहि-त्राहि की स्थिति पिछले सात सालों से मची हुई देखी जा रही है तो सरकार ने आम लोगों के साथ मिलकर मिट्टी से होने वाले काम को वरीयता के साथ करने के निर्देश दिये। मऊ ब्लाक के खंड विकास अधिकारी ने भी इसे गंभीरता से समझा और कुछ ऐसे काम करवा डाले कि जिससे लम्बे समय तक जल का संरक्षण हो सके और ज्यादा पानी वाली फसलों का भी उत्पादन सुगमता पूर्वक हो सके।

तिलौली गांव के झुरिया नाले पर बंधी का निर्माण और बरियारी कला में चमरचुही गांव में बंधी का निर्माण यह बताता है कि आने वाले समय में इन नालों से बहकर पानी यमुना नदी में नही जायेगा। 150-150 मीटर की लम्बाई और लगभग छह मीटर की ऊंचाई की मिट्टी की दीवार मजबूती के साथ आने वाले पानी को रोक लेगी।
प्रभारी मुख्य विकास अधिकारी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि मऊ ब्लाक में जल का संकट वास्तव में लोगों की वजह से ही उत्पन्न हुआ है। यमुना नदी से चारो तरफ से घिरे इस क्षेत्र में अगर जल संरक्षण के उपाय पहले से किये गये होते तो मनरेगा के अन्तर्गत काम कराने की जरुरत ही न पड़ती। वैसे खंड विकास अधिकारी दिनकर विद्यार्थी ने जल संरक्षण को लेकर डब्लूबीएम से अच्छे सम्पर्क मार्गो का निर्माण कराया है व जल संरक्षण के लिये ही खेत तालाब योजना का निष्पादन सही रुप में कर रहे हैं। झुरिया नाले में तो निर्माण की स्थिति काफी सुखद है। चार मीटर जल भराव होने के बाद पानी जब आउटलेट से निकलेगा तो केवल तालाबों व खेतों को ही फायदा देगा। प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास के निर्देश पर मनरेगा के कामों को पत्रकारों को दिखाने के दौरान ब्लाक प्रमुख दीप नारायण मिश्र सहित अन्य लोग मौजूद रहे। इस दौरान छिवलहा गांव का तालाब, बंबुरी गांव में बन रही डब्लूबीएम रोड़, जेट्रोफा के लिये खुद गड्डे व अन्य काम दिखाये गये।
उधर, पत्रकारों की दूसरी टीम ने कर्वी ब्लाक के चकला गुरु बाबा बड़ा देव तालाब, शिवरामपुर का पट्टा तालाब, भैसौंधा का वंशीपुर तालाब, रौली कल्याणपुर का आदर्श जलाशय, धौरही माफी का करेड़ी नाला में चैकडैम आदि काम देखे। बगलई के अरक्षा तालाब के निरीक्षण के दौरान तालाब के भीटे पर अतिक्रमण करने के कारण जिला विकास अधिकारी शिवराज सिंह यादव ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ नोटिस जारी करने के निर्देश दिये। इस दौरान खंड विकास अधिकारी समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

भांवरों मे पुरोहित ने दिया तुलसी व जामुन का पौधा

चित्रकूट। भले ही आज के दौर में लोग झूठी शान और शौकत दिखाने के लिए लाखों रुपये शादी विवाह में खर्च कर डालते हों लेकिन गुरुवार को मंदाकिनी के किनारे रामघाट पर एक ऐसा विवाह हुआ जो दूसरों के लिए मिसाल बन गया।

जी हां, बिना तामझाम और दहेज रहित दिन की रोशनी में हुए इस अनोखे विवाह के गवाह तीर्थनगरी के सैकड़ों लोग बने। दूल्हा और दुल्हन ने सात फेरे लेने के साथ ही सात वचनों के अलावा पर्यावरण और जल संरक्षण का न केवल संकल्प लिया बल्कि पुरोहित ने उन्हें तुलसी के बिरवा व जामुन के पौधे उपहार स्वरुप भेट किये। यह अनोखा विवाह सीतापुर में रामघाट के समीप रत्नावली मार्ग पर रहने वाले विजय किशोर शर्मा के पुत्र संजीव का था। नदी बचाओ तालाब बचाओ आंदोलन के संयोजक सुरेश रैकवार ने बताया कि विवाह बिना दहेज, बिना बिजली, बिना बाजा, बिना सजावट, बिना आतिशबाजी के सम्पन्न हुआ। साथ ही भांवरों के समय पुरोहित ने वर-वधू को एक-एक पौधा तुलसी व जामुन का भेंट गिया। अजयगढ़ से आये वधू संजना के पिता ने भी हर एक बराती का स्वागत करते समय बरसात के मौके पर एक-एक पेड़ लगाने का निवेदन किया।

Tuesday, June 22, 2010

गंगा दशहरा : डुबकी लगा कमाया पुण्य


चित्रकूट। पतित पावनी मां गंगा के अवतरण दिवस पर धर्म नगरी से होकर गुजरने वाली पापभक्षणी मां मंदाकिनी में डुबकी लगाने वालों की संख्या लाखों में रही। लोगों ने महादेव की जटाओं से होकर मृत्यु लोक में आने वाली मां गंगा की आरती पूजा भी की। इस मौके पर निर्माेही अखाड़े के संतों के संयोजकतत्व में मां गंगा की स्तुति पूजन के साथ ही नावों पर बैठकर चौबीस घंटे का श्री राम नाम संकीर्तन प्रारंभ कर दिया गया।

जानकारी के मुताबिक सोमवार की सुबह से ही धर्म नगरी की मंदाकिनी नदी के रामघाट, राघव प्रयाग घाट, प्रमोद वन, जानकीकुंड, आरोग्यधाम, सिरसावन, स्फटिक शिला, अनुसुइया आश्रम, सूर्य कुंड के साथ ही मऊ व राजापुर के यमुना नदी के घाटों के साथ ही वाल्मीकि नदी पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता उमड़ पड़ा। लोग हर हर गंगे का उद्घोष करके पवित्र नदियों में डुबकियां लगा रहे थे। चित्रकूट में घाट किनारे के पुरोहित मां मंदाकिनी के महत्व को लोगों को बता रहे थे।
इसके साथ ही निर्माेही अखाड़े के संयोजकतत्व में विश्व हिंदू परिषद ने गंगा दशहरे पर हवन पूजन व मां मंदाकिनी का अभिषेक कराया। इसके साथ नावों पर बैठकर चौबीस घंटों के प्रभु नाम संकीर्तन का भी शुभारंभ कराया गया। इस मौके पर निर्मोही अखाड़े के महन्त ओंकार दास, भरत मंदिर के दिव्य जीवन दास, अनूप दास, विहिप के प्रचारक भोले जी, दयाशंकर गंगेले, भाजपा जिलाध्यक्ष दिनेश तिवारी, मनोज तिवारी ,मुन्ना पुजारी सहित भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।

Monday, April 26, 2010

अपनों के लिये भी है बेगाना अद्वितीय शिल्प का नमूना गणेश बाग

चित्रकूट। इस परिक्षेत्र का आध्यात्मिक, धार्मिक के साथ ही सांस्कृतिक वैभव अपने आपमें अनूठा है। धर्म नगरी का दर्शन जहां शांति और वैराग्य का संदेश देता है वहीं कर्वी नगर में स्थापत्य कला पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के स्वरुप दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक स्थान जिला मुख्यालय से लगे सोनेपुर गांव के समीप 'गणेश बाग' है। भले ही अभी भी इस विशिष्ट स्थान पर देशी और विदेशी पर्यटकों की आवक उतनी न बन पाई हो जितनी की उम्मीद की जाती है पर इतना तो साफ है कि सांस्कृतिक विरासत का धनी स्थान अपने आपमें काफी विशिष्टतायें समेटे हुये है। भले ही इस स्थान का नाम गणेश बाग हो पर यहां पर श्री गणेश की स्थापित एक भी मूर्ति नही है। मूर्ति चोरों की बुरी नजर का परिणाम श्री गणेश की प्रतिमा ही नही बल्कि अन्य विशेष स्थापत्य कला की मूर्तियां बाहर जा चुकी है।

जिला चिकित्सालय के ठीक पीछे को कोटि तीर्थ जाने के मार्ग पर स्थित गणेश बाग के बनने की कहानी भी कम रोचक नही है। मराठा राजवंश की बहू जय श्री जोग बताती हैं कि उनका खानदान प्लासी के युद्ध के बाद बेसिन की संधि में यह क्षेत्र में मिलने के बाद यहां पर आया था। उनके पुरखे पेशवा अमृत राव को कुआं तालाब बाबड़ी आदि बनवाने का काफी शौक था। वैसे उस समय इस शहर का नाम अमृत नगर हुआ करता था। पानी की विशेष दिक्कत होने के कारण भी पानी की व्यवस्था सुचारु रूप से किये जाने के प्रबंध किये गये थे।
महाराष्ट्र से लाल्लुक रखने के कारण श्री गणेश की आराधना उनके खानदान में होती थी। यहां पर इस मंदिर के साथ ही तालाब व बावड़ी का निर्माण कराने के साथ ही विशाल अस्तबल का भी निर्माण कराया गया था।
महात्मा गांधी चित्रकूट गांधी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. कमलेश थापक कहते हैं कि बेसिन की संधि के बाद मराठों ने बांदा और चित्रकूट में आकर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनके आने से जहां कुछ नई परंपरायें समाप्त हुयी वहीं मंदिरों, कुओं, तालाबों व बाबडियों का भी निर्माण हुआ।
गणेश बाग भी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। यहां पर स्थापित मूर्तियां खजुराहो शिल्प की तरह ही हैं। पांच मंदिरों के समूह के साथ ही तालाब व अन्य भवन कभी अपने वैभव रहने की की कहानी कहते हैं, पर समय बदलने और आधुनिकता का रंग चढ़ने पर आज यह विशेष स्थान दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है। सरकारी स्तर पर किये गये प्रयास नाकाफी है और किसी भी जन प्रतिनिधि को यहां के सांस्कृतिक गौरवों के उत्थान की याद ही नही आती।
सामाजिक चिंतक आलोक द्विवेदी कहते हैं कि सरकार के पास पैसा बेकार के कामों के लिये बहाने को तो है पर गणेश बाग के विकास के लिये शायद नही है। भारतीय पुरातत्व विभाग का एक बोर्ड और चंद चौकीदार ही इसके संरक्षण और संर्वधन के जिम्मेदार बने हुये हैं। सरकारी योजनायें इसके उत्थान के लिये तो बनी पर उनसे गणेश बाग की दशा और दिशा के साथ ही पर्यटकों की आवक नही बढ़ सकी। अगर वास्तव में सही मंशा से गणेश बाग का विकास किया जाये तो पर्यटक यहां पर भी आकर आनंदित महसूस करेंगे। खजुराहो शिल्प की तरह ही इस मंदिर का इतिहास अपने आपमें स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी चंद्र शेखर आजाद के यहां पर कई बार रहने का भी गवाह है, पर दुर्भाग्य इस बात का है कि कभी भी किसी ने इस तरह का जिक्र गणेश बाग की इमारत के अंदर बोर्ड लगाकर किया ही नही। पेशवाओं के बनवाये तमाम मकान खंडहर होते रहे और पर्यटक विभाग भी मूक दर्शक की भांति अपनी कार्य कुशलता सिद्ध करता रहा।

चित्रकूट में नहीं भूकंप का खतरा- डा. मिश्र

चित्रकूट। 'चित्रकूट भूकंप प्रभावी क्षेत्र नहीं'। इस बात की तस्दीक महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में मप्र प्रौद्योगिकी परिषद के विश्वविद्यालय प्रकोष्ठ द्वारा सुदूर संवेदी तकनीकी के प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन विषय पर व्याख्यान माला के दौरान भूगर्भ वैज्ञानिक डा. के एस मिश्र ने की। डा. मिश्र हाल ही में भारत सरकार के भूगर्भ सर्वेक्षण के उप निदेशक पद से सेवानिवृत हुये हैं।

उन्होंने कहा कि भूकंप एक ऐसी आपदा है जो बिना सूचना के आती है। गुजरात का कच्छ, हिमांचल प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्यों में भूकंप आने की अधिक संभावनायें हैं। हमारे देश में मैप तैयार हो चुका है। उसमें चित्रकूट परिक्षेत्र को भूकम्प प्रभावी क्षेत्र से मुक्त रखा गया है।
उन्होंने बताया कि भूकंप की सतह से नीचे 35 मीटर की गहराई से बेसमेंट की चट्टानें अचानक ऊपर उठती हैं और भूकम्प आता है। उन्होंने कहा कि 70 प्रतिशत उपयोगी जल समुद्र में बहकर बेकार चला जाता है। इसे रोकने के उपाय होने चाहिये। गुजरात राज्य में घर-घर में जल प्रबंधन के लिये कार्य किये जा रहे हैं।
कुलपति प्रो. ज्ञानेन्द्र सिंह ने कहा कि पानी की समस्या बुंदेलखंड की सबसे बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि यहां पर पानी के लिये शोध करने की आवश्यकता है।
इस दौरान विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरित किये गये। इस दौरान प्रकोष्ठ के समन्वयक डा. रमेश चंद्र त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत कर वैज्ञानिक गतिविधियों की जानकारी दी। विभिन्न संकायों के शिक्षक, डा. अरुप कुमार गुप्ता, डा. रवीन्द्र सिंह, डा. सूर्य कांत चतुर्वेदी, डा. साधना चौरसिया सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

Saturday, April 24, 2010

बहत्तर प्रतिशत धन खर्च कर बना दिये 219 आदर्श तालाब

चित्रकूट। सरकार की मंशा गांवो में रहने वालों के लिये पुराने सपनों का गांव बनाने की है और इसी मकसद से हर एक गांव में माडल तालाब बनाये जाने के मकसद से काम प्रारंभ की जब कवायत शुरु हुई तो एक बार फिर अतिक्रमण सामने आया। कई गांवों में तो अतिक्रमणकारी न केवल तालाब के भीटे बल्कि पूरा-पूरा तालाब ही निगल चुके थे। खैर सरकार की मंशा के अनुरुप जब जिले भर की तीन सौ तीस ग्राम सभाओं में आदर्श तालाब बनाने के लिये तलाश की गई तो 298 गांवों पुराने तालाब मिल ही गये। मनरेगा जैसी योजना और कड़ी मशक्कत के बाद भी कागजों पर तो अधिकारियों ने 219 तालाबों को आदर्श बनाये जाने की घोषणा कर दी पर वास्तविकता में जिले का एक भी तालाब आदर्श कहलाने लायक बना ही नही क्योंकि तो अभी किसी तालाब में पानी ही नही है और बरसात आने का इन्तजार पौधरोपण कराये जाने के लिये है। सभी तालाबों में तय मानक के अनुसार अभी काम भी पूरे नही हो पाये।

परियोजना निदेशक पी के श्रीवास्तव बताते हैं कि आदर्श तालाब योजना में जिले में कुल 298 तालाबों का चयन किया गया था। हर गांव के एक तालाब को आदर्श बनाया जाना मकसद था। इसमें प्रत्येक आदर्श तालाब में फेन्सिंग, आउट लेट, इनलेट, बैठने के लिये बेंचों की व्यवस्था, फलदार और उपयोगी पौधों का वृक्षारोपण, बोरिंग, गेट का निर्माण तथा विधवा या विकलांग जाब कार्ड धारक को तालाब की देखरेख के लिये तैनात कर उसका भुगतान मनरेगा से किया जाना जैसे काम थे।
उन्होंने बताया कि जिले भर की कुल 330 ग्रामसभाओं में 298 आदर्श तालाबों का रुप देना था। जिनमें से 219 को आदर्श तालाब का रुप दे दिया गया है। शासन से आये तिहत्तर प्रतिशत धन में से बहत्तर प्रतिशत धन को खर्च किया जा चुका है।
कर्वी ब्लाक के खंड विकास अधिकारी कहते हैं कि जब अभी तालाबों में पानी ही नही है तो आउटलेट का निर्माण क्यों कराया जायेगा। बरसात में जब पानी बरसेगा तभी तालाब भरेंगे और बरसात में ही पौधे भी लगाये जायेंगे। 94 ग्राम सभाओं में से कुल 86 तालाबों का ही निर्माण कराया जा रहा है। इनमें से पैंसठ ही पूरा हो पायें हैं। वैसे इस योजना में काम 60 प्रतिशत मजदूरों से कराया जाना था। यहां पर अधिकारी कहते हैं कि इस नियम का पालन तो किया गया पर पथरौंडी गांव के तालाब में तो जेसीबी से कराई गई खुदाई की शिकायत भी एक बार तहसील दिवस में सामने आई आ चुकी है।

युवराज से मिलने के बाद भी कुटुवा कोल की तो नही बदली किस्मत

चित्रकूट। भले ही कलावती की कहानी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भरी संसद में सुनाकर उसकी तकदीर की इबारत सुनहरे लफ्जों में लिख दी हो पर पाठा क्षेत्र के गांव जगन्नाथपुरम के कुटुवा कोल की किस्मत नही बदली। दो साल पहले राहुल गांधी जब उस गांव में आये थे तो उसने उन्हें अपनी समस्या बताई थी। उसका राशन कार्ड आज तक नही बना और उनके आने के बाद मनरेगा में भी कुल एक दिन की मजूदरी के सौ रुपये ही उसे मिल सके हैं। युवा कांग्रेस अध्यक्ष पंकज मिश्र जब इस गांव पहुंचे तो यह तस्वीर सामने आई। युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि गांव में लोगों ने अपनी समस्यायें बताई। इसी गांव के निवासी कुटुवा ने भी अपनी स्थिति बताई तो वे चौंक पड़े। उसने बताया कि न तो उसे नरेगा में एक दिन के अलावा काम मिला और न ही उसका राशन कार्ड बना। इसके साथ ही गांव के आनंदी प्रसाद, सुखनंदन, पचिनिया, कैरी, पंची आदि सैकड़ों मजदूरों को मनेरगा में आज तक औसतन केवल पांच दिनों की ही मजदूरी मिली है। सन् 2007 के बने जाब कार्ड धारकों सत्नेश, भैरम आदि को तो काम ही नही मिला। हिरिया व सुमित्रा जैसी तमाम महिलाओं के तो जाब कार्ड ही नही बनाये गये। विकलांगों और विधवाओं को पेंशन भी नही मिल रही है। इसके साथ ही राशन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी तमाम समस्यायें भी मिली। भ्रमण में संजय पांडेय, सुरेन्द्र वर्मा, गिरीश मिश्रा व डा. धर्म चौधरी आदि शामिल रहे।

Monday, March 29, 2010

यमुना का पानी बुझायेगा जिले की प्यास

चित्रकूट। पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे जिले के लोगो को शायद अब पीने के लिए भरपूर पानी मिल जाये। मऊ ब्लाक के लगभग सभी गांवों में शुद्ध व सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये जल निगम की निर्माण निगम इकाई ने यमुना नदी के दो तटों से पानी को लिफ्ट कर लगभग 101 गांवों में पानी देने की योजना का काम प्रारंभ कर दिया है। अधिशाषी अभियंता जल निगम अस्थायी निर्माण खड राम भरोसे बताते हैं कि मऊ ब्लाक के 40 गांवों में पानी देने की योजना पर काम प्रारंभ हो चुका है। इस योजना की कुल लागत 6254.71 लाख रुपये ही है। इस योजना में पूरब पताई गांव में इन्टेकवेल बनाकर पानी को लिफ्ट किया जायेगा। बरगढ़ मोड़ पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर जल का शोधन किया जायेगा। यहां से 40 गांवों की सप्लाई के लिये पाइप डाला जायेगा। उन्होंने बताया कि इस योजना में सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें जीआई पाइप का इस्तेमाल मेन सप्लाई में नही किया जायेगा। इसके लिये डीआई पाइप डाला जायेगा। हर दो या तीन गांवों के बीच में टंकी बनाई जायेगी। दूसरा प्रस्ताव मऊ कस्बे के पास के घाट से पानी को उठाकर लगभग 61 गांवों को पानी देने की है। इस योजना की लागत 100 करोड़ रुपयों की आयेगी। इसके साथ ही तीसरी योजना यमुना नदी से पानी उठाकर सरैंया होते हुये पाठा के इलाके में पानी देने की है। इस योजना से ऊंचाडीह न्याय पंचायत के तमाम गांवों व मजरों के साथ ही अन्य गांवों को पानी देने की योजना है। इस योजना के लिये अभी सर्वे का काम चल रहा है। मुख्य योजना नगरीय पेयजल पुर्नगठन योजना के अन्तर्गत मुख्यालय में पानी की सप्लाई को 8 एम एल डी से बढ़ाकर 18 एमएलडी करना है। हैंडपंपों के लिये जिम्मेदार विभाग जल निगम के अधिशाषी अभियंता जे पी सिंह कहते हैं कि इस साल उनका नये हैंडपम्पों को लगाने का लक्ष्य 315 का था, जिसके सापेक्ष अब तक 600 से ज्यादा हैंडपम्प लगाये जा चुके हैं। इसके साथ ही लगभग 700 हैंडपम्पों को रीबोर किया जा चुका है।

पर्यटन, पर्यावरण व खेलकूद को नहीं मिला धन

चित्रकूट। भले ही जन प्रतिनिधि यहां जनसभाओं में चित्रकूट को धर्म और पर्यटन का केंद्र बिंदु बताकर शासन से ज्यादा से ज्यादा योजनाएं दिलाने का वादा करते हों मगर हकीकत कुछ और ही है। दरअसल इस साल खेलकूद, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण की मद में धन ही नहीं मिला। हालांकि जिला योजना में हर साल प्रस्ताव पास कर भेजा गया मगर इन योजनाओं को शासन से पैसा नहीं मिला।

वर्तमान वित्तीय वर्ष में फरवरी तक 46 करोड़ तिरसठ लाख पचहत्तर लाख के सापेक्ष अब तक जिले के विभागों को कुल 19 करोड़ उनहत्तर लाख पचासी हजार रुपये मिल चुके हैं। इसमें से 16 करोड अनठानवे लाख छियासी हजार रुपये खर्च हुए हैं। फरवरी तक 86.24 प्रतिशत धनराशि खर्च की जा चुकी है।
अप्रैल 09 में कृषि विभाग, निशुल्क बोरिंग अनुदान, उद्यान विभाग,पशु पालन विभाग, दुग्ध विभाग, मत्स्य विभाग, वन एवं वन्य जीव, सहकारिता,एकीकृत ग्राम्य विकास विभाग, सुखोन्मुख कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, पंचायती राज्य, लघु सिंचाई, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत, खादी एवं ग्रामोद्योग, रेशम विकास, सड़क एवं पुल,पर्यावरण, पर्यटन, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, प्रादेशिक विकास दल, खेलकूद, चिकित्सा एवं जन स्वास्थ्य एलौपेथिक, होम्योपैथिक, नगरीय पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, आवास, समाज कल्याण अनु. जाति, पिछला वर्ग कल्याण, अल्प संख्यक कल्याण, समाज कल्याण सामान्य वर्ग, सेवायोजन, आईटीआई, समाज कल्याण वृद्धावस्था व पारिवारिक लाभ, विकलांग कल्याण, महिला एवं बाल कल्याण व पुष्टाहार आदि विभागों के लिये बजट स्वीकृत किया गया था। इनमें से पुष्टाहार, महिला एवं बाल कल्याण, विकलांग कल्याण,समाज कल्याण वृद्धावस्था व पारिवारिक लाभ, समाज कल्याण सामान्य वर्ग, अल्प संख्यक कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण, समाज कल्याण अनुसूचित जाति, नगरीय पेयजल आपूर्ति, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत, सहकारिता, मत्स्य विभाग, निशुल्क बोरिंग अनुदान में अवमुक्त धन राशि का व्यय कर दिया गया है। जिला अर्थ एवं संख्याधिकारी ने बताया कि हर बार बजट में सभी विभागों के लिए धन का प्रस्ताव भेजा जाता है पर इनमें कुछ को बजट मिलता है तो कई को फूटी कौड़ी नही मिल पाती।

लोकगीत विचारों के संप्रेषण का माध्यम : दद्दू प्रसाद

चित्रकूट। लोक संस्कृति की अनमोल परंपरा को अपने आपमें समेटे लोकलय समारोह का आगाज जितना शानदार हुआ उतना ही जोरदार अंजाम भी दिखा।

सूबे के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने कहा कि बुंदेलखंड के प्राण बुंदेलखंड के लोक गीतों में बसते हैं। यहां के गीतों में बुंदेली जीवन शैली और विविधताओं का समूचा दर्शन देखने को मिलता है। दद्दू प्रसाद ने कलाकारों का आह्वान किया कि वे अपने लोक गीतों के माध्यम से लोगों को नये पेड़ लगाने व पुराने पेड़ों की सेवा करने के साथ ही वर्षा जल संचयन का प्रयास करें। आगे नियमों में परिवर्तन कराकर यह प्रयास किया जायेगा कि मनरेगा के प्रचार-प्रसार में उनका सहयोग लिया जाये। इस दौरान उन्होंने लोक कलाकारों के साथ ही लोक मंगल के काम को आगे बढ़ाने वाले कलम के सिपाहियों को भी सम्मानित किया। सदर विधायक दिनेश मिश्र ने संस्थान की बाउन्ड्री बनवाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसे आयोजन ही सामाजिक समरसता को बढ़ाने में सहयोगी हैं।
अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने कहा कि कलाकारों के संरक्षण और लोक कलाओं का संवर्धन केवल एक कार्यक्रम को साल भर में आयोजित किये जाने से नहीं हो सकता। निदेशक भागवत प्रसाद ने आभार व्यक्त किया।
सहभागी शिक्षण केंद्र लखनऊ के अशोक भाई व लखनऊ के समाजसेवी संदीप मांझी ने बुंदेली लोक कलाओं को सर्वश्रेष्ठ कलायें घोषित करते हुये कहा कि इनका संरक्षण करना सबका दायित्व है। इस दौरान संगीत विशेषज्ञ डा. वीणा श्रीवास्तव, डा. प्रेम चंद्र, ललितपुर के समाजसेवी वासुदेव, महोबा के अभिषेक, नरैनी के राजा भैया, डा. ओपी सिंह, शिव चरन सिंह महोबा, रामेश्वर प्रसाद, उमा चतुर्वेदी ने भी अपने विचार रखे। इस दौरान कलाकारों ने भी अपनी-अपनी विधा के कार्यक्रम प्रस्तुत कर वाह-वाही बटोरी।

चित्रकूट की भूमि पर आज से गूंजेगी लोकलय

चित्रकूट। अमराई में बौर की झीनी सुगंध और गोबर से लीपी भूमि के सोंधे सुवास में शनिवार से लोकलय का अनूठा कार्यक्रम शुरू होगा। इस खास कार्यक्रम में बुंदेलखंड के करीब सौ कलाकार 30 से भी अधिक विधाओं का प्रदर्शन करेंगे। इसमें कई लोक विधायें तो लुप्तप्राय हो चुकी हैं।

अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान का भारत जननी परिसर लोकलय समारोह के लिए तैयार है। यहां भाग लेने आये ग्रामीण परिवेश के कलाकार शुक्रवार को दिन भर अपनी प्रस्तुतियों को लेकर अभ्यास करते रहे रहे। मानिकपुर ब्लाक की संजो अपने साथियों के साथ जवारा नृत्य की तैयारियों में लगी रहीं, वहीं ज्योति और श्यामा भी कोलहाई और राई की खुशबू की तैयारी में व्यस्त दिखी। उधर अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान का भारत जननी परिसर भी देशी कलाकारों के नायाब हुनर का जलवा दिखाने के लिये रंग-रोगन कर तैयार किया जा रहा है। यहां पर तैयारियां देशी अंदाज में दिनभर चलती रहीं। समारोह में बुंदेलखंड की लोक कलायें जहां मंचित की जानी है, वहीं मंच की साज सज्जा भी खालिस बुंदेली शैली 'पुतरिया' के चित्रण से की गई है।
लोकलय समारोह के आयोजक अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई व निदेशक भागवत प्रसाद कहते हैं कि इस बार कासमारोह पिछली बार की तुलना में काफी खास होने जा रहा है। बुंदेलखंड के सातों जिलों के कलाकार अपनी प्रस्तुतियां सीमित समय में देंगे। इस दौरान लगभग ढाई दर्जन लोक विधाओं को मंच पर प्रस्तुत किया जायेगा। ध्यान रहे कि अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान बुंदेलखंड की लोककलाओं को सहेजने व संव‌र्द्धन के लिए बीते कई वर्षो से लोकलय का आयोजन करता आ रहा है।

दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत है- बुद्धि प्रसाद

चित्रकूट। धर्मनगरी परिक्षेत्र के रानीपुर भट्ट स्थित भारत जननी परिसर में एक बार फिर राजशाही के जमाने में युद्ध के समय बजाये जाने वाले बुंदेली वाद्ययंत्र (साज) 'रमतूला' की मधुर आवाज के द्वारा तीसरे लोकलय समारोह का शुभारंभ ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने किया। वैसे समारोह के वैधानिक रुप से शुभारंभकर्ता उनके पिता 91 वर्षीय उनके पिता बुद्धि प्रसाद रहे। उद्धाटन के मौके पर वयोवृद्ध लोक कलाकार बुद्धि प्रसाद ने नये संगीत के कारण पुराने संगीत को विस्मृत किये जाने को लेकर चिंता जताई। कहा कि आज के दौर का संगीत भले ही कितने लेागों द्वारा सुना जाता हो पर वास्तव में दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत ही है। वैसे पुरानी पीढ़ी द्वारा हस्तान्तरित किये जाने के कारण और नयी पीढ़ी के द्वारा पूर्ण रुचि न लिये जाने के कारण आज के लोक कलाकारों के प्रदर्शन में भी वह बात नही रह गई है। इस दौरान उन्होंने अपनी कपकपाती बुलंद आवाज में देवी गीत 'अचरी' का गायन भी किया। इस दौरान उनका स्वागत व अभिनंदन प्रिया संस्था दिल्ली के राजेश टंडन, सहभागी शिक्षण केंद्र के अशोक भाई व अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने किया।

लोकलय की पहली प्रस्तुति मीताक्षरा की गणेश वंदना से हुई। लमटेरा विधा की इस प्रस्तुति को प्रस्तुत करने में जहां उसके ऊपर आर्शीवादों की वर्षा संगीताचार्य लल्लू राम शुक्ल ने की वहीं तबले पर संगत के लिये मृदंग मार्तन्ड पं. अवधेश कुमार द्विवेदी मौजूद थे। पाठा क्षेत्र की कलाकार बूटी ने अपनी आवाज पहुचाई तो लोक विधाओं के संरक्षण और संर्वधन के काम में सालों से लगीं उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव ने अंचरी गाकर मां अम्बे की वंदना प्रस्तुत की।
इसके बाद तो जैसे सम्पूर्ण परिसर पाठा की विशिष्ठ प्रस्तुति जवारा के दो दर्जन कलाकारों के करतबों से आलोकित हो उठा। पंडाल के सामने से लगभग पचास मीटर से नगडिया और ढोलक, मंजीरे की थापों पर थिरकते बलखाते कलाकार ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न रुपों को दर्शाते मां का प्रदर्शन करते चले आ रहे थे। उनकी भाव भंगिमायें लोगों को आकर्षित कर रही थी। मंच पर सांग और तलवार की प्रस्तुतियों के बाद जब फूला माता के सीगों भरे झूले पर लोगों ने लेटकर बैठकर नृत्य किया तो लोगों की सांसें रुक गई। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने में संजो, कालका, दद्दू, चुनबदिया, कुंती, ज्योति व अन्य कलाकारों का योगदान रहा। इसके बाद हमीरपुर की अचरी, महोबा के रघुवीर सिंह का गोट गायन, धवा गांव की टीम का लमटेरा, जालौन के साहब सिंह की टीम का अचरी व लेद गायन के साथ ही अन्य नयनाभिराम प्रस्तुतियां हुई। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. ज्ञानेन्द्र ंिसह ने कहा कि लोक विधाओं के संरक्षण के लिये विवि भी काफी अग्रणी है। इस तरह के कार्यक्रम लगातार आयोजित होने चाहिये। इस दौरान पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र, दृष्टि संस्था के बलबीर सिंह, राष्ट्रदीप, कुलदीप, गजेन्द्र, महेन्द्र, कुबेर आशीष, टीपी सिंह तथा इंग्लैंड से आये प्रीट वायडन, ब्रायन वायडन व तमाम स्थानीय लोग मौजूद रहे।

एक ही विधा के गीतों का नाम है अलग-अलग

चित्रकूट। यह मौसम की मादकता का असर है या फिर धर्म नगरी का अपनापन, जो भी कलाकार मंच पर उतरता है उसकी आवाज में मानो खुद ही सरस्वती विराज जाती है। यह नजारा है लोकलय समारोह में होने वाली प्रस्तुतियों का।

उरई से आईं लोक कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिये वर्षो से प्रयासरत और लोक संगीत की नई लिपि बनाने वाली डा. वीणा श्रीवास्तव ने जब मंच पर अचरी की प्रस्तुति के प्रारंभ में 'सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहैं गणेश, पांच देव रक्षा करैं, ब्रह्मा विष्णु महेश' तो लगा कि वास्तव में 'चिमकी में गणेश, ढोलक में बैंठी मां शारदा' का माहौल कायम हो गया है।
लंगुरिया की विषद व्याख्या करते हुये उन्होंने कहा कि बुंदेली धरती अनेक करिश्माओं से भरी धरती है। जहां इसमें एक तरफ प्रभु श्री राम के त्याग और तप के दर्शन होते हैं वहीं दूसरी तरफ रानी लक्ष्मी बाई और राजा छत्रशाल, आल्हा उदल के शौर्य के चर्चे सुने और सुनाये जाते हैं। 'कोस- कोस में पानी बदलै, तीन कोस में बानी' को चरितार्थ करती इस धरती पर लोक विधायें भी थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदल जाती है। इस प्रकार यहां की संस्कृति में देवी गीतों का गायन कहीं अचरी तो कहीं ओ मां तो कहीं जवारा नृत्य के रुप में दिखाई देता है।

बजा रमतूला और गूंज उठी बुंदेली लोकलय

चित्रकूट। रानीपुर भट्ट स्थित भारत जननी परिसर में एक बार फिर राजशाही के जमाने के युद्धक बुंदेली वाद्ययंत्र 'रमतूला' की हुंकार से तीसरे लोकलय समारोह का आगाज हुआ। वयोवृद्ध लोककलाकार एवं ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद के पिता बुद्धि प्रसाद ने कांपती आवाज में अचरी गाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

लोक कलाकार बुद्धि प्रसाद ने नये संगीत के कारण पुराने संगीत को भले ही लोग भूलते जा रहे हों, लेकिन दिल को छू लेने वाला संगीत तो लोक संगीत ही है। इस दौरान उनका स्वागत व अभिनंदन प्रिया संस्था दिल्ली के राजेश टंडन, सहभागी शिक्षण केंद्र के अशोक भाई व अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने किया। लोकलय की पहली प्रस्तुति मीताक्षरा की गणेश वंदना से हुई। लमटेरा विधा की इस प्रस्तुति को में जहां उसके ऊपर आशीर्वादों की वर्षा संगीताचार्य लल्लू राम शुक्ल ने की वहीं तबले पर संगत के लिये मृदंग मार्तण्ड पं.अवधेश कुमार द्विवेदी मौजूद थे। पाठा क्षेत्र की कलाकार बूटी ने अपनी आवाज पहुचाई तो लोक विधाओं के संरक्षण और संवर्धन के काम में सालों से लगीं उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव ने अचरी गाकर मां अम्बे की वंदना प्रस्तुत की।
इसके बाद तो जैसे सम्पूर्ण परिसर पाठा की विशिष्ठ प्रस्तुति जवारा के दो दर्जन कलाकारों के करतबों से आलोकित हो उठा। पंडाल के सामने से लगभग पचास मीटर से नगडिया और ढोलक, मंजीरे की थापों पर थिरकते बलखाते कलाकार ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न रुपों को दर्शाते मां का प्रदर्शन करते चले आ रहे थे। उनकी भाव भंगिमायें लोगों को आकर्षित कर रही थी। मंच पर सांग और तलवार की प्रस्तुतियों के बाद जब फूला माता के सीगों भरे झूले पर लोगों ने लेटकर बैठकर नृत्य किया तो लोगों की जैसे सांसें थम गईं। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने में संजो, कालका, दद्दू, चुनबदिया, कुंती, ज्योति व अन्य कलाकारों का योगदान रहा। इसके बाद हमीरपुर की अचरी, महोबा के रघुवीर सिंह का गोट गायन, धवा गांव की टीम का लमटेरा, जालौन के साहब सिंह की टीम का अचरी व लेद गायन के साथ ही अन्य नयनाभिराम प्रस्तुतियां हुई। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. ज्ञानेन्द्र ंिसह ने कहा कि लोक विधाओं के संरक्षण के लिये विवि भी काफी अग्रणी है। इस दौरान ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र, दृष्टि संस्था के बलबीर सिंह, राष्ट्रदीप, कुलदीप, गजेन्द्र, महेन्द्र, कुबेर आशीष, टीपी सिंह तथा इंग्लैंड से आये प्रीट वायडन, ब्रायन वायडन व तमाम स्थानीय लोग मौजूद रहे।

खालिस देशी है लोकलय समारोह

चित्रकूट। देशी खाना और देशी मंच पर देशी गाना, जी हां यह लोकलय समारोह के तीसरे संस्करण की शुरुआत में देखने को मिला। बुंदेली सभ्यता और संस्कृति की खूबसूरत झांकी जहां मंच की साज सज्जा पर खडिया व गेरु के माध्यम से बनाई गई 'पुतरियों' पर दिखाई दी, वहीं गांव की झोपड़ी का दृश्य शहर के साथ ही गांव में रहने वालों को भी लुभा गया। देशीपन की बयार की सुगंध केवल इतने भर से पूरा नही होता दिखा तो होली की मादकता को अपने आपमें सदियों से छिपाये खूबसूरत पलाश के फूलों से मानो मंच का श्रंगार कर लोक जीवन की अनमोल थाती का संदेश चैत्र के महीने में दे दिया गया।

अपने प्रयोगवादी होने के कारण गांव के माहौल को मंच पर लाने के पीछे अखिल भारतीय संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई व निदेशक भागवत प्रसाद ने कहा कि वास्तव में बुंदेलखंड की थाती ये लोक कलाकार ही हैं जो सदियों से अपनी परंपराओं को संजो कर रखे हुये हैं। वैसे तो गांव में ये सामाजिक समरसता की बयार बहाकर एक सूत्र में पिरे रहते हैं, पर नये जमाने की हवा अब गांव में भी पहुंच रही है। कहा कि जिस गांव में लोक कलाकार भजन,फाग, कबीरी या फिर अन्य किसी भी लोक विधा के द्वारा आपस में बैठते हैं वहां लड़ाई झगड़ा नही होता है।
उन्होंने कहा कि लोकलय समारोह वास्तव में राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक सौहार्द के लिये समर्पित लोक विधाओं के संरक्षण संवर्धन के लिये बुंदेलखंड के सातों जिलों के कलाकारों के साथ आयोजित किये जाने की परंपरा दो साल पहले प्रारंभ की थी।
वास्तव में गांव का गरीब कलाकार जब मंच में अपनापन देखता है तो फिर उसे लगता है कि वह अपने गांव और घर पर ही प्रस्तुति दे रहा है। इसलिये न केवल मंच पर गांव का वातावरण स्रजित किया गया है बल्कि आमराई की नीचे झड़ती हुई बौर उन्हें और भी ज्यादा अपनेपन का अहसास दिला रही है। इसके साथ यहां पर साथम खायें का वातावरण दोना और पत्तल में भोजन लिपे मैदान में रोटी दाल के साथ पूरा होता है।

होने दे राई सखि होने दे राई

चित्रकूट। नगडिया और अलगोजा का मधुर संगीत और महिला कलाकार का मदहोश कर देने वाला नृत्य पर बोल ऐसे कि जिसमें भक्ति रस बहता हुआ नजर आये, चौकिंये मत यह कोई सूफी अदाज का कोई गायन नही बल्कि यह है बुंदेलखंड की मशहूर राई जिसको देखने के लिये लोग रात-रात भर ठंड व गर्मी के मौसम में डटे रहते हैं। यहां पर भी कुछ ऐसा ही हुआ जब लोक लय के मंच पर महोबा से आई साहब सिंह वर्मा की टीम ने रावला और राई को प्रस्तुत किया। पहले 'भज लो सीताराम, भज लो सीताराम, तुलसी की माला लै लो हाथ मैं' से शुरु हुआ रावला जब अपने पूरे शबाब में 'होने दे राई सखि होने दे राई' पर पहुंचा तो आनंद से लबरेज सारा वातावरण हो गया।

महिला कलाकार के साथ पुरुष नर्तक की भाव भंगिमायें एक अलग ही नजारा प्रस्तुत कर रही थी। दर्शकों की तालियों के साथ ही उनके लगातार झूमने के अंदाज बता रहे थे कि वास्तव में बुंदेलखंड में राई को क्यों इतना पसंद किया जाता है। केवल एक लाइन के गीत के सहारे रात भर नाचने वाली नर्तकी व नर्तक की भावभंगिमायें व आकर्षण सभी के चेहरों पर देखा जा रहा था। कुछ ऐसा ही हाल पाठा के मशहूर राई और कोलहाई, करमा नृत्य के प्रस्तुति करण में दिखाई दिया। घेरदार राई की प्रस्तुति में तो बूटी व संजो की आवाज व महिला व पुरुष के नृत्यों की मादकता में देशी तो देशी विदेशी मेहमान भी झूम उठे। कुछ सी तरह की प्रस्तुतियां जालौन के प्रसाद, चित्रकूट के लालमन, बांदा की संत की कबीरी के साथ ही पाठा की दूसरी टीम ने भी खासा मनोरंजन किया।

सोने का सूप सरैया तोरी अम्मा निहारै हो

चित्रकूट। एक ऐसी विधा जिसके नाम पर फिल्म बन कर सुपर हिट साबित हुई, फिल्म का नाम था हम आपके हैं कौन और इस कान्सेप्ट को कई फिल्मों में अजमाया गया और वे फिल्में भी सफल हुई। लोकलय के पहले दिन की देर शाम भी कुछ इसी तरह की घटना की गवाह बनी। बुंदेली बारात के कुछ अनमोल क्षण दर्शकों के सामने आये तो बधाई गीत गाने वाली महिलाओं का साथ देने की आवाजें दर्शकों के बीच से भी आने लगीं। सिर पर मौर हाथ में कंकन और शरीर पर पीला जामा, निहारन के दृश्यों में जहां 'सोने का सूप सरैया तोरी अम्मा निहारै हो' दर्शकों के बीच बैठी महिलायें आनंदित होकर गाने लगी। इसके साथ ही दुल-दुल घोड़ी व उसके बच्चे का नाच, भूत का स्वांग और पुतरिया की लटक और झटक वाले ठुमकों के साथ पीछे आ रहे दूल्हे के सिर पर छोटी बहन के राई और नमक से नजर उतारते हाथ देखने के लिये तो लोगों का नजरें अपने आप उठ रही थी। इस दौरान पारंपरिक शहनाई के साथ ठपली की धुनों पर महिलायें और पुरुष नृत्य कर रहे थे। जैसी ही विवाह की रस्में आगे बढ़ी लोगों का उत्साह आगे बढ़ता गया। द्वार चार के बाद फेरे व विदाई के दृश्यों के गीत लोगों को आनंदित करते रहे। यहां तक की विदाई के गीत के दौरान तो तमाम आंखें नम दिखाई दी।

इसके बाद सुबह के सत्र में जवारा नृत्य से आनंदित करने वाले पाठा के कलाकारों ने करमा और राई नृत्य प्रस्तुत कर अपनी धाक जमाई। 'लुरि-लुरि जाय कि अंगना मै कैसे बटोरौं' के साथ ही अन्य गीतों पर नृत्य करने वाले कलाकारों के कमर की लटकन व नृत्य संचलन में पैरों के इस्तेमाल की विविधता के दर्शन हो रहे थे।
बुंदेली विवाह परपंरा के बाद देर रात शुरु हुई बुंदेलखंड की मशहूर विधा नौटकी ने लोगों को आनंदित किया। इस नौटकी को बांदा के लगभग एक दर्जन कलाकारों ने प्रस्तुत किया।

लाल के प्रयास से रूठा केला भी फल उठा

चित्रकूट। 'धान ,पान अरु केला, इहै पानी के चेरा' प्यासी पाठा की धरती को चुनौती देने वाले किसान लाल प्रताप सिंह के अथक प्रयास परिणाम यह हुआ कि बेहाल बुंदेलखंड के किसानों को इस सूखी धरती से उम्मीद की किरण फूटती दिखाई देने लगी है। अधिक पानी में पैदा होने वाली केले फसल को इस किसान ने कुछ तरह से उगाया कि ये केले की फसल साल में एक दो बार नहीं बल्कि कई बार मिलती रही।

मुख्यालय के समीपवर्ती सिद्धपुर ग्राम पंचायत के किसान लाल प्रताप सिंह बोन्साई केले के पेड़ों से न केवल बड़ा उत्पादन ले रहे हैं बल्कि उनके पेड़ साल भर फलों से लद रहते हैं। केले के अलावा आंवला, आम, अनार, संतरा, मौसमी, नींबू, जामुन, सीताफल, आलू, प्याज, बैंगन, लौकी, कद्दू आदि की फसल भी सफलता पूर्वक कर कृषि विविधीकरण के क्षेत्र में नया काम कर रहे हैं।
प्रचार-प्रसार से दूर और सरकारी योजनाओं के बिना पानी की कमी के कारण जूझते पाठा के गांव में इस तरह का खेती में विशेष काम करने वाले इस किसान के बारे में जब जानकारी जिला कृषि अधिकारी हर नाथ सिंह के साथ ही अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के निदेशक भागवत प्रसाद को जानकारी मिली तो दोनो ही मौके पर पहुंचे।
बांकेसिंद्ध पहाड़ के नीचे तलहटी पर स्थित अपने फार्म हाउस पर लाल प्रताप सिंह ने बताया कि वर्ष 1971 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने गांव का रुख किया तो उन्हें अपने ननिहाल जाना पड़ा। वर्ष 2001 में जब पुन: यहां पर आने का मौका मिला तो पहाड़ की तलहटी की इस जमीन पर कुछ पैदा नही होता था। बंजर जमीन पर बाहर से लाकर पौधे रोपे गये और धीरे-धीरे पौधों की संख्या बढ़ती गई। केले का प्रयोग भी अचानक ही हो गया। जब केले ने एक साल के बाद फल दिये तो फिर उनकी कटिंग की गई। अब तो आंवला केवल एक ही पेड़ पर डेढ़ कुन्टल फसल देता है। इसके साथ ही बैगन व अनार तो एक-एक फल आधा किलो से ऊपर से उत्पादित हो चुके हैं। आम के पेड़ भी अच्छी फसल दे रहे हैं। बाजार वाद की हवा से दूर अभी लालप्रताप बाजार से ज्यादा लोगों को खिलाने में यकीन कर लोगों को फलों के उत्पादन की सलाह देते हैं।

लोकलय में जुटेंगे देसी कलाकार

चित्रकूट। लोककलाओं को संरक्षण और संवर्धन के लिए शुरू हुए लोकलय समारोह में इस बार खास होने वाला है। हो सकता है कि बुंदेलखंड के बेशकीमती लोक कलाकारों को विदेशों में प्रदर्शन का मौका मिल जाए। इस साल 20-21 मार्च को अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के भारत जननी परिसर में होने वाले लोकलय समारोह को देखने विदेशी भी मौजूद रहेंगे। ये जानकारी लोकलय महोत्सव के मुख्य आयोजक अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान के न्यासी गोपाल भाई ने पत्रकारों को दी।

उन्होंने बताया कि पिछले दो आयोजनों का प्रतिफल हमीरपुर जिले के बिवांर गांव में उस समय दिखाई दिया जब पूरा जिला प्रशासन लोक कलाकारों से मिलने गांव पहुंचा। वहां पर डीएम समेत सभी अफसरों ने पहुंचकर न सिर्फ लोक कलाकारों को सुना बल्कि 10 हजार रुपयों की सहायता के साथ कंबल भी दिये। कार्यक्रम में बुंदेलखंड के सातों जिलों के लगभग 150 लोक कलाकार शिरकत करेंगे। 20 मार्च को कार्यक्रम का शुभारंभ बांदा के वयोवृद्ध कलाकार बुद्धि प्रसाद करेंगे। इस मौके पर व‌र्ल्ड बैंक के सलाहकार व प्रिया संस्था के संस्थापक डा. राजेश टंडन व लोक कला मम‌र्ग्य उरई की डा. वीणा श्रीवास्तव मौजूद रहेंगी। यहां पहले दिन बुंदेली वाद्यों की सहायता से लमटेरा, अचरी, कछियाई, कुम्हरई, कहरई, राई, कोलहाई, गोट, बिरहा आदि विधाओं का मंचन होगा। समारोह के दूसरे दिन के खास मेहमान सूबे के संस्कृति मंत्री सुभाष पांडेय होगे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद करेंगे। समारोह के दूसरे दिन जवारा गीत व नृत्य, होरी गीत, नट कला, चंगेली नृत्य, गांवों के प्राचीन वाद्यों का प्रदर्शन व बुर्जुग कलाकारों का अभिनंदन किया जायेगा। इस दौरान बीबीसी समेत विदेश से आने वाले मेहमान समाजसेवी ब्रान लान क्रिस्टोफर, प्राट वायडन, क्रिंग्सले प्राट वायडन व सुहेल टंडन आदि मौजूद रहेगे। इस मौके पर समाजसेवी आलोक द्विवेदी मौजूद रहे।

Thursday, February 18, 2010

जब जवाहर लाल नेहरु ने निभाई थी रामलीला में भूमिका

चित्रकूट।   विशेष खबर  (संदीप रिछारिया) देश के स्वतंत्रता संग्राम में राम के चरित्र का क्या काम? पर वास्तव में राम के चरित्र को कभी लोगों के सामने प्रस्तुत करके ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने महात्मा गांधी के साथ हिंदुस्तान को आजाद कराने का काम किया था। यह कपोल कल्पना नही है बल्कि इलाहाबाद की राम लीला में उनके द्वारा सन् 1930 में निभाई गई भूमिका का चित्र उस सच्चाई को बयान कर देता है। राष्ट्रीय रामायण मेले के सभागार में संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली रामलीलाओं की जीवांत प्रस्तुतियों के चित्र इस बात का खुला सबूत देते हैं कि भले ही लोग इन्टरनेट का प्रयोग कर सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर चुके हैं पर तुलसी के राम का चरित्र आज भी प्रासंगिक ही है। रामलीलाओं में उमड़ती भीड़ के साथ हिंदू मुस्लिम की सहभागिता का यह मंच आज भी देश में साम्प्रदायिक सदभाव को बढ़ाने का काम कर रहा है। अयोध्या शोध संस्थान, तुलसी स्मारक भवन, अयोध्या से आये सुरेन्द्र साहू और सूर्य कांत पांडेय बताते हैं कि वास्तव में चित्रकूट ही वह स्थान है जहां पर राम लीला चित्र प्रदर्शनी लगाने की सार्थकता उन्हें दिखाई देती है। पिछले दो सालों में संस्थान ने प्रदेश की तीन रामलीलाओं को चित्रों में उतारकर भिन्न-भिन्न स्थानों में प्रदर्शित करने की मुहिम छेड़ी है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु द्वारा रामलीला के दौरान अभिनय किया जाने वाला चित्र तो विभाग की थाती है। यहां लगाई गई प्रदर्शनी में मैदानी रामलीला उरई के साथ ही रेश बाग लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब का दर्शन है। ये दोनो रामलीलायें लगभग डेढ़ सौ साल से अनवरत चल रही हैं और इन्हें हिंदू और मुसलमान प्रदशिर्त करते हैं। इसके साथ ही कानपुर देहात व प्रयाग की रामलीला के चित्र भी काफी सुन्दर हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर हनुमान जी के चित्र भी काफी देशों के लाकर लगाये गये हैं। कंबोडिया, वियतनाम व इंडोनेशिया के साथ ही अपने देश ही अन्य सुदूर राज्यों में पूजा की जाने वाली मूर्तियों के चित्र हैं।

सुन्दरीकरण के नाम पर बस मजाक


चित्रकूट। 'नया नौ दिन पुराना सौ दिन' कम से कम तीर्थ नगरी के रामघाट पर चल रहे पर्यटन विभाग से मिले सुन्दरी करण के काम को देखकर तो यही लगता है। जहां यहां पर हो रहे सुन्दरी करण के काम को लेकर कई बार नागरिक अधिकारियों के पास जाकर अपनी शिकायतें दर्ज करा चुके हैं वहीं दो तीन जांचों का रिजल्ट भी जीरो ही दिखाई देता है।

इस मामले में पूर्व सभासद अरुण गुप्ता, सभासद बाबा सिया राम दास सहित दर्जनों लोग कहते हैं कि बोर्ड में लिखे स्थानों का पता केवल अधिकारियों को ही है। आम लोग इनका पता नही जानते। कैनोपी का निर्माण असंगत है। क्योंकि हर साल की बाढ़ में तो इसका डूब जाना तय है और लाखों रुपयों का निर्माण अगर एक ही बाढ़ में बह गया तो फिर सरकार के पैसे की बर्बादी ही होगी। रामघाट के सुन्दरीकरण के नाम पर लगवाये जा रहे लाल पत्थर की भी क्वालिटी सही नही है। अभी पूरी तरह से पत्थर लगे नही है और इनमें टूटने की समस्या अभी से दिखाई दे रही है। परिक्रमा मार्ग पर भी बरहा के हनुमान जी के पास काम का स्तर अत्यंत घटिया है।
चरखारी मंदिर के महंत राजेन्द्र प्रसाद दीक्षित कहते हैं कि विभाग ने जबरन चार सौ साल पुराने बने इस पुरातात्विक महत्व के मंदिर की नींव ही खोद डाली और बुर्जो को काफी नुकसान पहुंचाया। अधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी जब विभाग के अधिकारियों ने नही सुना तो फिर मजबूरन मुकदमा किया। अभी भी पिछले दिनों केंद्रीय राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य से शिकायत करने पर जांच तो हुई पर कोई राहत नही मिली। उन्होंने कहा कि बसुन्धरा राजे सिंधिया के कार्यकाल में 1991 में भी सुन्दरीकरण का काम किया गया था, वह काम तो आज तक दिखाई देता है। जहां एक तरफ मध्य प्रदेश क्षेत्र की तरफ नये-नये घाट बन रहे हैं और पुराने घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। वहीं रामघाट में दस सालों से टूटी सीढि़यों की मरम्मत का काम तक नही कराया गया।

हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी में उत्पादों को खरीदने उमड़ी भीड़

चित्रकूट। राष्ट्रीय रामायण मेले में लगाई गई प्रदर्शनियों में भारी संख्या में भीड़ उमड़ रही है।

हस्तशिल्प की प्रदर्शनी में लोग हस्तशिल्प की चीजों की खरीददारी कर रहे हैं तो दीनदयाल शोध संस्थान, जगद्गुरु राम भद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, सूचना और जनसम्पर्क विभाग, उद्यान विभाग, पशु पालन विभाग, बेसिक शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग के साथ ही एडस पर काम करने वाली संस्था 'परख' व बाबा राम देव की पतंजलि योग समिति के स्टाल लोगों को लुभा रहे हैं।
खादी और ग्रामोद्योग हसतशिल्प की प्रदर्शनी में खरीददार तो मानो उमड़े पड़ रहे हैं। यहां पर आये अधिकारी विजय यादव बताते हैं कि प्रदेश भर के हसतशिल्पी यहां पर आकर अपने उत्पाद बेंच रहे हैं। बजट कम होने के कारण केवल चालीस स्टाल ही लगाये थे। काफी लोगों ने तो अपने स्टाल लगाये हुये हैं और काफी लोग वापस चले गये। उन्होंने कहा कि चित्रकूट में हस्तशिल्पियों की हुई बिक्री से वे भी उत्साहित हैं। अगली बार यहां पर कम से कम साठ स्टालों की व्यवस्था करवाने की कोशिश करेंगे।
इसके साथ ही जहां रामलीला की प्रदर्शनी लोगों को आकर्षित कर रही हैं वहीं अर्चना के माध्यम से मेला समिति श्री राम चरित मानस के पाठ को पांच दिनों तक अनवरत रुप से जारी किये हुये है। बच्चों के मनोरंजन की कमी को झूला पूरी कर रहा है। यहां पर बच्चों के साथ ही बड़े लोग भी झूला झूलते दिखाई दे रहे हैं। परख के राजेश केसरवानी ने कहा कि इस तरह के आयोजनों से लोगों के पास अपनी बात पहुंचाने में मदद मिलती है।

रामचरित मानस सभी समस्याओं का समाधान


चित्रकूट। 'राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु, तुलसी सुभग सनेह बन श्री रघुवीर विहारु' कुछ ऐसे ही उदाहरण राष्ट्रीय रामायण मेला के सैतीसवें संस्करण के समापन सत्र की यादगार बने। पद्म विभूषण नाना जी देशमुख ने अपने एक लाइन के उद्बोधन में कहा कि भगवान कामतानाथ के सुभार्षीवाद से सभी लोग सानंद हैं और रहेंगे। आचार्य बाबू लाल गर्ग ने डा. लोहिया को याद करते हुये कहा कि रामायण मेले की संकल्पना उनका अपना निजी मत था। सैंतीस पड़ाव पार कर चुका यह मेला अब आने वाले दिनों में इतिहास रचेगा। कहा कि नये युग का सृजन चित्रकूट की धरती से ही होगा। इस मौके पर डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ने कविता के माध्यम से चित्रकूट व नाना जी देशमुख को तमाम उपमाओं से विभूषित किया। समापन के सत्र में पूर्व सांसद भीष्म देव दुबे, डा. श्याम मोहन त्रिपाठी,प्रदुम्न दुबे लालू,डा. वीके जैन आदि लोग मौजूद रहे। समाजसेवी नानाजी देशमुख का स्वागत मेले का कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया व पूर्व विधायक भैरों प्रसाद मिश्र ने किया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम
सोमवार देर शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आगाज महोबा से आये लखन लाल एंड पार्टी ने किया। बेबी बावली ने 'उनके हाथों में लग जायें ताला, जो मइया की ताली न बजावै' से शुरुआत की। रानी सोनी ने 'मोरी छोड़ो न बहियां अवध के सैंया' व रघुवीर सिंह यादव ने राम नाम की माला जपेगा कोई दिल वाला गाया। कर्वी के ललित त्रिपाठी ने ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन व रामाधीन आर्य एंड पार्टी की रेखा राज ने हो जी हरि कित गये नैना लगायके गाया। पवन तिवारी ने गजब कर डालौ री, बरस भये रसिया बडै रसीलै नैना गाया। लखीमपुर खीरी से आई शिखा और राधा ने भाव नृत्य प्रस्तुत किया तो लखनऊ के घनश्याम मिश्र ने होली गीत व आरती गुप्ता ने होली गीतों की प्रस्तुति लोक नृत्यों के माध्यम से दी। कार्यक्रम का संचालन डा. करुणा शंकर द्विवेदी ने किया। इसके बाद वृन्दावन से आयी पं.देवकीनंदन शर्मा की प्रसिद्ध रामलीला व रास मंडली ने धमाल कर दिया। कोप भवन के दृश्यों के साथ ही मंथरा के भाव प्रवण दृश्यों के अलावा राजा दशरथ के विलाप के दृश्यों को काफी वाहवाही मिली।
विद्वत गोष्ठी
बांदा से आये डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ने कहा कि चित्रकूट विश्व शांति का केंद्र है। यह धरती जहां अपने आपमें तमाम अबूझ रहस्यों को छिपाये हुये है वहीं आधुनिक युग में भी लोगों को परिवार के साथ ही प्रकृति के साथ रिश्तों का निर्वहन कैसे करना चाहिये सिखाती है। उन्होंने साफ तौर पर कहा डा. लोहिया ने चित्रकूट को रामायण मेला के रुप में जो उपहार दिया है उसकी तुलना हो ही नही सकती। बिलासपुर से आये डा. बृजेश सिंह ने साकार और निराकार ब्रह्म के द्वन्द का चित्रण कर कहा कि जिस धरती के कण-कण में राम बसते हो वहां पर यह बातें बेमतलब की हैं। रामचरित मानस में मानव की सम्पूर्ण समस्याओं के समाधान हैं। लखनऊ से आये कैलास चंद्र मिश्र ने कहा कि वनवासी राम का चित्रण ही डा. लोहिया के मष्तिष्क में था तभी उन्होंने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित कराने की सोची। डा. विनय कुमार पाठक ,डा. हरि प्रसाद दुबे, डा. छेदी लाल कांसकार, डा. राधा सिंह, डा. देवेन्द्र दत्त, भक्ति प्रभा ने भी अपने विचार रखे। देवी दयाल यादव, घनश्याम मिश्र, राजेश करवरिया राजू, मनोज मोहन गर्ग,प्रशान्त करवरिया प्रिंस, ज्ञान चंद्र गुप्त, राम प्रकाश श्रीवास्तव, मो. यूसुफ, कलीमुद्दीन बेग, भोला राम आदि मौजूद रहे।
इसके पूर्व पहले सत्र की विद्वत गोष्ठी का संचालन डा. सीताराम सिंह'विश्व बंधु' ने किया। इस दौरान राम भरोसे तिवारी, आदित्य प्रकाश, विजय बहादुर त्रिपाठी, सूरजबली, सनत कुमार मिश्र, राम कृष्ण आर्य, अभिलाष शास्त्री, स्वामी राजेश्वरानंद आदि ने अपने विचार रखे।

आज बिरज में होली रे रसिया


चित्रकूट। भले ही अभी होली को आने में कुछ समय बांकी हो पर राष्ट्रीय रामायण मेले के सैतीसवें वर्ष की अंतिम शाम का आकर्षण चुराने का काम तो वृन्दावन से आये रास लीला के कलाकारों ने किया। बरसाने की छोरियों व नंद ग्राम छोरों ने जो शमा बांधा लोग आनंदित होकर नाचने लगे। भगवान श्री कृष्ण व राधा रानी द्वारा होली लीला के दौरान उछाले जाने वाले एक -एक फूल को पाने के लिये होड़ सी मच गयी। दिल्ली से आये रिवाइवल ग्रुप आफ इंडिया के द्वारा प्रस्तुत की गई भगवान श्री राम की लीलाओं का लयात्मक प्रदर्शन काफी लम्बे समय तक डा. लोहिया सभागार में मौजूद हजारों दर्शकों के दिलो दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया। इसके साथ ही डांस इंस्टीट्यूट आफ मुम्बई के कलाकारों ने लावनी, घूमर व भवई की जीवांत प्रस्तुति दी। इनके द्वारा कांच और लोहे की कीलों के ऊपर पीतल के कलशों को लेकर किया गया नृत्य बेजोड़ रहा।

शाम की सभा की शुरुआत पपिहा देसाई के निर्देशन से सजी लगभग दो घंटों में श्री राम चरित मानस की सम्पूर्ण प्रस्तुति से हुआ। इसमें श्री राम के जन्म से लेकर श्री राज्याभिषेक तक के दृश्यों की दिखाया गया। लाइट एंड साउंड के माध्यम से प्रस्तुत किये गये इस प्रदर्शन पर लोग मानो मंत्र मुग्ध हो गये थे। मुम्बई से आये डांस इंस्टीट्यूट के कलाकारों ने लावनी के नृत्य के दौरान जो जोश पैदा किया उसे बढ़ाने का काम घूमर और भवई तक जारी रखा। इसके पूर्व वृन्दावन से आये देवकी नंदन शर्मा की रास लीला ने लोगों को मोहने का काम किया। मयूर नृत्य के साथ ही श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के साथ ही होली लीला दृश्य अत्यंत प्रभावशाली थे। कार्यक्रमों को देखने के लिये हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे।
मेले के कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया, संचालक आचार्य पं. बाबू लाल गर्ग, पूर्व सांसद भीष्म देव दुबे, डा. श्याम मोहन त्रिपाठी, प्रदुम्न दुबे लालू, देवी दयाल यादव, घनश्याम मिश्र, राजेश करवरिया राजू, मनोज मोहन गर्ग,प्रशान्त करवरिया, ज्ञान चंद्र गुप्त, राम प्रकाश श्रीवास्तव, मो. यूसुफ, कलीमुद्दीन बेग, भोला राम आदि मौजूद रहे।

फांसी से बचने चित्रकूट आये थे सोमदत्त गिरि

चित्रकूट। राजसी वैभव की सच्चाई जब मालूम चली तो वैराग्य की राह पकड़ ली पर बाबा का आदेश था कि पहले पढ़ाई करो तो लंदन में जाकर डिग्री हासिल की। वहां से लौटते ही सुभाष बाबू और चंद्र शेखर आजाद से क्या मिलना हुआ, मानो लगा कि जीने की धारा ही बदल गई। अंग्रेजों के लिए कभी 'टारजन' नाम से खौफ का पर्याय माने जाने वाले 105 वर्षीय संत वेशधारी होल्कर घराने के वंशज सोमदत्त गिरि जब पुरानी यादों के पन्ने पलटाते हैं तो कुछ नयी कहानियों का जन्म हो जाता है।

उज्जैन से धर्मनगरी के भ्रमण पर आये सोमदत्त गिरि 'जागरण' से विशेष बातचीत में बताते हैं कि जब अंग्रेजों के राज में उन्हें फांसी की सजा हो गयी थी तब वे पहली बार साधु वेश में चित्रकूट आये थे। उस समय उनके साथ चंद्रशेखर आजाद, राम दास पांडरी, हजारी लाल महोबा, मुरारी लाल सूपा, रघुनाथ सिंह सेंगर नौंगाव व मान सिंह ग्वालियर सहित दो और लोग थे। यहां पर महलों वाला मंदिर परिक्रमा मार्ग, सिरसावन, स्फटिकशिला का श्मशान सहित तमाम ऐसी जगहें हैं जो उनका आश्रय स्थल बनी थीं। कहा कि तब के चित्रकूट में आज के चित्रकूट में काफी फर्क आ गया है। खाने की व्यवस्था गोदीन शर्मा, करवरिया परिवार व नयागांव के सेठ करते थे। उनकी टोली ने काफी दिनों तक महोबा के खोकर पहाड़, ओरक्षा के जंगल व सोनतलैया में शरण ली।
उन्होंने बताया कि उनका जन्म तत्कालीन होल्कर स्टेट के महाराजा सोवरन सिंह राणा के घर 25 अप्रैल सन् 1905 को इंदौर में हुआ था। बाद में पारिवारिक बटवारे में भांडेर की जागीर मिली। इस कारण पिता सबको लेकर भांडेर आ गये। उन्होंने बताया कि सनं् 1946 में खजुराहो की बावन इमली में उन्होंने व उनके साथियों ने मिलकर 52 अंग्रेजों को मार दिया था। इसलिये फरारी हालत में ही अंग्रेजों की अदालत ने उनको फांसी का हुक्म सुना दिया था। देश के आजाद होने पर उन्होंने सेना की नौकरी की व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा मिला। सेना में नौकरी के दौरान चीन के साथ युद्ध में वीरता के कारण इनाम भी मिला, पर फिर श्री पंच दत्त नाम अखाड़ा के गुरु महाराज मनोहर दास के आदेश पर पूर्ण रूप से विरक्त जीवन जीना प्रारंभ कर दिया।
वे बताते हैं अब उनके जीवन का लक्ष्य केवल मानव कल्याण ही है। इसलिये उनके गुरु ने उनको जो सिद्धियां दी है उनका उपयोग वे मानव की असाध्य बीमारियां दूर करने में कर रहे हैं। अभी तक हजारों लोगों को असाध्य रोगियों को ठीक करने की बात कहते हैं।

Wednesday, February 10, 2010

आज भी गौरवान्वित है पेशवा की बहू

चित्रकूट। 'आज ऐसा पहली बार लगा कि वास्तव में मैं एक बड़े राजवंश की बहू हूं'। अगर उनके पूर्वजों की बनवाई बेशकीमती धरोहर को देखने के लिये रोजाना ही देशी व विदेशी पर्यटक आने लगे तो यहां पर पर्यटन उद्योग काफी तेजी से खड़ा हो सकता है और इलाके में काफी हद तक बेरोजगारी को नियंत्रित किया जा सकता है। 'जागरण' से विशेष बातचीत में मराठा पेशवाओं की बहू जय श्री जोग ने कही।

जय श्री कहतीं है कि वास्तव में आज सुबह ही ददिया ससुर के पिता जी पेशवा अमृत राय जी को उन्होंने एक भाव भीनी श्रद्धाजलि अपने पति सुरेश राम हरि जोग के साथ दी। इस दौरान उनके पति ने कहा कि जिस काम को सोचकर बेशकीमती धरोहरें भारत सरकार को सौंपी गई थी वास्तव में उनका दुरपयोग हो रहा है। सरकार की पहल तो थोड़ा बहुत यहां के विकास को लेकर होती है पर विभाग का काम यहां पर होता दिखाई नहीं देता। उन्होंने खुशी जताई कि शायद अब यहां पर ऐसे ही पर्यटकों का आना जारी हो जाये तो कर्वी के दिन बहुर जायें।
चौकीदार की आंखों में आये आंसू
आरकोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया विभाग के अन्तर्गत गणेश बाग में वर्षो से चौकीदारी कर रहे गुलाब सिंह की आंखों में आंसू आ गये। शाम तीन बजे के बाद ही खुशी के आंसू लगातार बह रहे थे। उनका कहना था कि वे पिछले पन्द्रह सालों से यहां पर चौकीदारी का काम कर रहे हैं और पर्यटकों की राह तकते रहते हैं पर इतनी अच्छी मात्रा में लोग यहां पर पहली बार आये हैं। उन्होंने कार्यक्रम के आयोजकों को धन्यवाद दिया कि कम से कम उन्हें गणेश बाग याद तो रहा कि कम से कम यहां पर कार्यक्रम का आयोजन किया।

मिनी खजुराहो! इट्स वंडर फुल

चित्रकूट। विश्व यू3ए सम्मेलन में भाग लेने आयी साउथ अफ्रीका के केपटाउन की रहने वाली सिल्विया हैज के मुंह से तो यही निकला मिनी खुजराहो बहुत बढि़या है। अपनी पुत्री लुई लुइस के साथ यहां पर आई इस विदेशी मेहमान ने आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा कि चित्रकूट में पर्यटन के हिसाब से इतना कुछ है कि लोगों का मन ही नही भर सकता। जंगल, पहाड़, नदी और झरने तो हैं ही साथ ही कलात्मक मूर्तियों को देखने के बाद जब गणेश देखा तो वास्तव में मन भर गया।

मां और पुत्री दोनो ने कहा कि जहां के लोग इतना प्यार और सम्मान देने वाले हों वह स्थान इतना उपेक्षित है। विश्वास ही नही होता।
गणेश बाग की चंदेल कालीन मूर्तियों को देखकर कहा कि वास्तव में हिंदू बहुत बड़े कलाकार थे जिन्होंने सारे विश्व को इतने अनुपम उपहार विरासत के रुप में दिये हैं।
उन्होंने दुख प्रकट करते हुये कहा कि आरकोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया का काम आगरा, वाराणसी और अन्य जगहों पर उन्होंने देखा है पता नही क्यों वे लोग या भारत सरकार इतने विशेष स्थानों को उपेक्षित किये हुये है।